थैलीसीमिया से पीड़ित बच्चों का इलाज अब पहले से अधिक आसान तरीके से हो सके गा। जेनेटिक विकृति के कारण इस तरह के बच्चों को हर महीने रक्त चढ़ाना पड़ता था। लेकिन डॉक्टरों के एकदल ने बीमारी के लिए कारक जीन की पहचान का दावा किया है जिसके बाद जीन थेरेपी से एक बार इलाज के बाद आजीवन के लिए रक्त नहीं चढ़ना पड़ेगा। जेनेटिक डिसआर्डर के लिए कारक जीन की पहचान विशेष बायोटेक्नॉलॉजी की मदद से की गई है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के हेमेटोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. वीपी चौधरी का कहना है कि बीटासेल्स इंजेक्शन को थैलीसीमिया में रक्त में पाई जाने वाली विकृति को दूर करने की क्षमता पाई गई है। डॉ. चौधरीने बताया कि जीन थेरपी का प्रयोग शुरू होने के बाद बीमारी की पहचान आने के बाद एक से दो बार की जीन थेरेपी से बच्चों की रक्त संबंधी विकृति को दूर किया जा सकेगा। इंजेक्शन के माध्यम से रक्त में पहुंचाया गया नया जीन विकृत जीन की जगह ले लेगा,जिसके बाद यदि दोबारा भी कोई विकृत जीन बनता है तो ट्रांसफ्यूज किया गया जीन उसकी जगह ले लेगा(हिंदुस्तान,दिल्ली,18.11.2010)।
badhiya jaankaari..........
जवाब देंहटाएंdhnyavaad !