सैद्धांतिक रूप से यह सही है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने चिकित्सकों को प्रोन्नति के लिए अपनी नियुक्ति से चार वर्ष गांवों में बिताने की व्यवस्था की, लेकिन मौजूदा स्थितियों में इस व्यवस्था पर अमल मुश्किल ही है। ऐसा न करने वाले चिकित्सकों की प्रोन्नति तो तब रोकी जाएगी जब कोई चिकित्सक गांव में चार वर्ष सेवा देने से इनकार करेगा। राज्य सरकार इससे अवगत ही होगी कि एक बड़ी संख्या में चिकित्सक महज इसलिए सरकारी नौकरी छोड़ दे रहे हैं, क्योंकि उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं न देनी पड़ें। इसके चलते ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी अस्पतालों में एक बड़ी संख्या में चिकित्सकों के पद रिक्त हैं। राज्य सरकार यह कहकर कर्तव्य की इतिश्री नहीं कर सकती कि उसने चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा नियमावली में संशोधन कर चिकित्सकों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करना अनिवार्य कर दिया। यदि इस व्यवस्था के कोई बेहतर परिणाम सामने नहीं आते हैं तो फिर इस निर्णय का कोई मूल्य नहीं। बेहतर होता कि राज्य सरकार उन कारणों पर गौर करती जिनके चलते एक बड़ी संख्या में चिकित्सक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा की ओर रुख ही नहीं कर रहे हैं। यह आश्चर्यजनक है कि राज्य सरकार ने वस्तुस्थिति से अवगत होते हुए भी सैद्धांतिक रूप से सही नजर आने वाली नीति तो बना दी, लेकिन इस नीति से डाक्टरों के प्रोत्साहित होने की कोई व्यवस्था नजर नहीं आती। राज्य सरकार के नीति-नियंताओं को इसका अहसास होना चाहिए कि बिना किसी प्रोत्साहन के चिकित्सक ग्रामीण क्षेत्रों में सेवाएं देने के लिए शायद ही तैयार हों। इस संदर्भ में केवल इस अपेक्षा के भरोसे रहने का कोई मतलब नहीं कि चिकित्सकों को अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करने के लिए आगे आना चाहिए। नि:संदेह, चिकित्सकों से ऐसी अपेक्षा की जाती है, लेकिन यह भी देखना चाहिए कि जो चिकित्सक ऐसा करने के लिए तैयार हैं उन्हें कैसी सुविधाएं मिल पा रही हैं? यह किसी से छिपा नहीं कि उत्तर प्रदेश में सरकारी स्वास्थ्य ढांचा लगातार संसाधन विहीन होता जा रहा है और अब तो स्थिति यह है कि अनेक जिलों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र प्राथमिक एवं अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के मानकों को भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं(संपादकीय,दैनिक जागरण,लखनऊ,24.11.2010)।
SIR NORMALLY, ABLE DOCTOR WILL NEVER OPT GOV.JOB.DEFICIENCY DRIVEL TOGETHER.ANY HOW GOOD SUSPICION.
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