हाल के दिनों में सिजेरियन केसों में तेजी आई है। कई महिलाएं डिलीवरी के पेन से बचने के लिए सिजेरियन को तवज्जो दे रही हैं। वहीं कई नर्सिंग होम मोटा पैसा बनाने के लिए भी सिजेरियन कर रहे हैं। एक्सपर्ट्स इस बारे में क्या मानते हैं, चलिए जानते हैं उन्हीं से :
क्रेज भी, सिचुएशन भी
कहते हैं मां बनना दुनिया की सबसे बड़ी खुशी है और कोई भी मां इसे शब्दों में बयां नहीं कर सकती है, लेकिन वक्त के साथ इसके मायने बदल चुके हैं। दरअसल, अब महिलाएं मेडिकल में हो रही नई टेक्नोलॉजी को अपनी सुविधा के मुताबिक यूज कर रही हैं। यही वजह है कि वह नॉर्मल डिलीवरी में घंटों पेन झेलने के बजाय सिजेरियन को तवज्जो दे रही हैं। इसकी एक वजह जगह-जगह खुल गए नर्सिंगहोम भी हैं, जो पैसा कमाने के लिए अकसर नॉर्मल केस को सिजेरियन केस बना देते हैं। ऐसा करने से नर्सिंगहोम को मोटी रकम जो मिलती है, जोकि नॉर्मल डिलीवरी में मुमकिन नहीं हैं। गौरतलब है कि नॉर्मल डिलीवरी में आमतौर पर 3-5 हजार रुपये का खर्च आता है, वहीं सिजेरियन में 15-30 हजार रुपये तक खर्च होते हैं। इस बारे में मूलचंद मेडसिटी में सीनियर गाइनोकॉलिजस्ट डॉ. शीला मेहरा के अनुसार, 'आजकल सिजेरियन के केसों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। इसकी वजह महिलाओं की मॉडर्न सोच है, जो थोड़ा-सा भी दर्द सहना नहीं चाहती हैं। सिजेरियन की दूसरी वजह है कि महिलाएं उसी डॉक्टर से डिलीवरी करवाने को तरजीह देती हैं, जो उनका चेकअप करते आए हैं। दरअसल, डिलीवरी एक लॉन्ग लास्टिंग एक्टिविटी है, ऐसे में जो डॉक्टर उनका चेकअप करते हैं, वह अपनी एनर्जी और टाइम को बचाने की सिचुएशन में सिजेरियन कर देते हैं। तीसरे आजकल लोग शादी काफी लेट कर रहे हैं, जिस कारण डिलीवरी में दिक्कतें आ जाती हैं। ऐसी सिचुएशन में सिजेरियन करना पड़ जाता है। अगर डिलीवरी के समय आईवीएफ प्रॉब्लम होती है, तो ऐसी कंडीशन में सिजेरियन ही करना पड़ता है।'
वास्तविक कारण
सर गंगाराम हॉस्पिटल की डॉ. आभा मजूमदार के अनुसार, 'कमर की हड्डी की शेप, पेलविक बोन छोटी होना या योनि मार्ग की हड्डियां फ्लैक्सिबल ना होने से भी डिलीवरी में मुश्किलें आती हैं। कई बार फायब्रॉयड या सिस्ट की वजह से भी सिजेरियन करना जरूरी हो जाता है। हालांकि प्रेग्नेंसी के दौरान अल्ट्रासाउंड में यह पता चल जाए की बच्चा उल्टा है, तो भी सिजेरियन ही किया जाता है। अगर मां को पहले से कोई गंभीर बीमारी मसलन शुगर, आर एच इम्युनाइजेन इक्लंपसिया यानी मां की हाइट कम है या बच्चे का आकार बड़ा है, गर्भ में बच्चे की मूवमेंट ना होना, गर्भाशय का बाहर आ जाना या फिर जुड़वां बच्चों की स्थिति में भी ऑपरेशन ही एकमात्र सॉल्यूशन है।' कई बार लोगों को लगता है कि नर्सिंग होम पैसा कमाने के लिए बिना वजह ही सिजेरियन को प्रिफरेंस देते हैं। इस बारे में डॉ. आभा कहती हैं, 'पैसों के कारण सिजेरियन करवाया जाए। ऐसा मुझे तो बिल्कुल भी नहीं लगता है। कई बार नार्मल और सिजेरियन का खर्च लगभग बराबर ही आता है। दरअसल, आजकल लोग अपनी डाइट का ख्याल नहीं रखते हैं। उनकी टमी पर इतना फैट जमा हो जाता है कि नॉर्मल डिलीवरी से बेबी पैदा करना मुश्किल हो जाता है। मगर कई बार कुछ डॉक्टर केस बिगड़ने की परेशानी से बचने के लिए सिजेरियन कर देते हैं।'
धार्मिक पहलू
कई लोग चाहते हैं कि उनके बच्चे शुभ मुहूर्त में जन्म लें। ऐसी स्थिति में जब नॉर्मल डिलीवरी से बच्चा नहीं होता है , जो वह सिजेरियन करवा देते हैं। इस बारे में डॉ . शीला कहती हैं कि कई बार इसी सोच के साथ ऑपरेशन आते हैं , लेकिन हम उसी कंडीशन में ऑपरेशन करते हैं , जब जरूरी होता है। वैसे , इस तरह की धार्मिक सोच रखना बिल्कुल बेकार है। महिलाओं को एक पॉजिटिव अप्रोच के साथ डिलीवरी के लिए आना चाहिए। रेग्युलर एक्सरसाइज और एक्टिव ना रहने के कारण भी डिलीवरी में दिक्कतें आ जाती हैं , इसलिए बेकार के वहम की बजाय टेंशन फ्री होकर डिलीवरी करवानी चाहिए। '
अगर आप समय - समय पर डॉक्टर की सलाह लेती रहेंगी , तो एक नॉर्मल डिलीवरी में ही स्वस्थ व प्यारे बच्चे को जन्म देकर अपनी जिंदगी खुशियों से भर सकती हैं।
नॉर्मल डिलीवरी की आसान बातें
- रेग्युलर एक्सरसाइज करें।
- खुद को मरीज ना समझें। यह नेचरल प्रोसेस है और आप घर के हर काम को बखूबी कर सकती हैं।
- बैलेंस डाइट लें।
- बिना किसी मिथ में पड़े डिलीवरी टाइम तक हल्की एक्सरसाइज या वॉक करती रहें।
- एक ही पॉजिशन में ज्यादा देर तक ना बैठे। समय - समय पर पॉजिशन चेंज करते रहें।
- डॉक्टर के पास समय - समय पर जरूरी टिके लगवाते रहें।
(मीनाक्षी झा,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,25.11.2010)
समयपरक जानकारी हेतु धनयवाद
जवाब देंहटाएं