लाइलाज बीमारी को ठीक करने का दम भरना दो डॉक्टरों को महंगा प़ड़ा है। आयोग का कहना है कि विज्ञापन देकर मरीजों को गुमराह कर उनसे पैसे ऐंठना सेवा में कोताही बरतना है।
आयोग ने दो डॉक्टरों द्वारा केरल राज्य उपभोक्ता आयोग के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करते हुए उस व्यक्ति को एक लाख रूपए देने के लिए कहा है, जिसके कैंसर पीड़ित बेटे का इलाज धोखे में रखकर किया गया था। बाद में उसकी मौत हो गई। आयोग ने ऐसे प्रैक्टिस को बेहद शर्मनाक बताया है। आयोग ने कहा है कि यह तकलीफदेह स्थिति होती है जब आयुर्वेदिक डॉक्टर और एमबीबीएस डॉक्टर लोगों में भ्रांतियां फैलाने की कोशिश करते हैं कि उनके पास बच्चों के कैंसरयुक्त ट्यूमर का इलाज करने का कौशल है।
दोनों डॉक्टरों की दलीलों को ठुकराते हुए आयोग ने कहा कि एक लाख रूपये का मुआवजा मुनासिब है। यह रकम न तो अधिक है और न ही कठोर है। केरल के आयुर्वेदिक डॉक्टर कुनहलन गुरुकुल और एमबीबीएस डॉक्टर फिरदौस इकबाल ने संयुक्त रूप से राज्य उपभोक्ता आयोग के उस फैसले को चुनौती थी जिसमें उन्हें सेवा में कोताही बरतने का दोषी ठहराते हुए शिकायतकर्ता एएम मोहम्मद को मुआवजा देने का आदेश दिया गया था। उनका २१ वर्षीय बेटा हड्डी के कैंसर रोग से पी़ड़ित था। उसका इलाज तिरुवनंतपुरम के नेशनल कैंसर सेंटर में इलाज चल रहा था। कैंसर सेंटर ने टांग कटवाने की सलाह दी थी। इसी दौरान एएम मोहम्मद ने अखबार में विज्ञापन देखा जिसमें दो डॉक्टरों ने रोग के इलाज का दावा किया था। संपर्क करने पर डॉक्टरों ने कहा कि वे उसके बेटे का इलाज कर देंगे। इलाज शुरू होने के कुछ दिनों बाद से ही मरीज की हालत बिग़ड़ती गई। आखिरकार उसकी मौत हो गई। बाद में एएम मोहम्मद ने उपभोक्ता अदालत में याचिका दाखिल कर छह लाख रूपये मुआवजा देने की गुहार की थी(राजीव सिन्हा,नई दुनिया,दिल्ली,19.11.2010)।
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