शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

फार्मा कंपनियों के आगे झुकी सरकार !

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने फार्मा कंपनियों के दबाव में एंटी-बायोटिक दवाओं के इस्तेमाल को लेकर बनाए जा रहे नियमों को कमजोर कर दिया है। मंत्रालय ने एंटीबायोटिक के अंधाधुंध इस्तेमाल को हतोत्साहित करने के लिए जोर-शोर से कड़े प्रावधान का ऐलान किया था। लेकिन अब सरकार इससे पीछे हटती दिख रही है। नए नियमों को अगले दो-चार दिनों में अधिसूचित किया जाएगा लेकिन सर्वाधिक इस्तेमाल होने वाली करीब 60 फीसदी एंटीबायोटिक दवाओं को इन नियमों से अलग रखा जा रहा है। सिर्फ 30-40 फीसदी महंगी और कम इस्तेमाल होने वाली दवाओं की बिक्री के लिए ही कड़े प्रावधान होंगे। स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार विशेषज्ञों ने एंटीबायोयिक दवाओं की बिक्री को लेकर जो सुझाव दिए थे उसके अनुसार इन्हें दवाओं की बिक्री के एच शिड्यूल से हटाकर एक नए शिड्यूल एचएक्स में रखने की बात कही थी। सभी अधिकारी इस पर सहमत थे। अभी एंटीबायोटिक एच शिड्यूल में हैं यानी उन्हें डाक्टर के लिखने पर ही केमिस्ट से खरीदा जा सकता है जबकि एक्स शिड्यूल में मार्फीन जैसी दवाएं रखी जाती हैं जिनकी बिक्री का पूरा रिकार्ड डाक्टर को रखना पड़ता है। डाक्टर ऐसी दवाओं के लिए दो पर्चे लिखता है। प्रस्तावित नियमों को लेकर फार्मा कंपनियों में भारी हलचल मची और इनके प्रतिनिधियों ने स्वास्थ्य मंत्रालय पर दबाव बनाया जो कामयाब रहा। अभी तक नए नियमों की अधिसूचना जारी नहीं हुई है लेकिन खबर है कि अब इसमें बदलाव कर दिया है। अब एचएक्स शिड्यूल बनाने का भी खयाल छोड़ दिया गया है बल्कि इसकी जगह एच-1 शिड्यूल बनेगा जिसमें जनरेशन-3 और फोर के एंटीबायोटिक को ही शामिल किया जाएगा(मदन जैड़ा,हिंदुस्तान,दिल्ली,17.11.2010)।

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