क्या आप जानते हैं, फसल में डाले गए कीटनाशक का महज दो से तीन प्रतिशत रसायन कीटों को मारने में इस्तेमाल होता है। शेष कीटनाशक मिट्टी, हवा, पानी और अनाज के माध्यम से मानव व पशुओं के शरीर में पहुंचता है। यह शरीर में पहुंचकर मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं, इसकी वजह से शरीर में कई बीमारियां होने की आशंका रहती है। केन्द्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान की युवा वैज्ञानिक डॉ.सुप्रिया स्वर्णकार ने यह शोध किया है। गुरुवार को गोमतीनगर स्थित इन्दिरा गांधी प्रतिष्ठान में आयोजित कांग्रेस ऑफ फाओन्स एंड इंडियन एकेडमी ऑफ न्यूरोसाइंसेज की 28वीं वार्षिक बैठक में उनके इस शोध पत्र पर भी चर्चा हुई। इसमें यह बात भी सामने आई कि कीटनाशक में मिला रोटीनोन नाम का पदार्थ दिमाग पर दुष्प्रभाव डालता है। इसकी वजह से दिमाग की कोशिकाएं यानी न्यूरॉन मरने लगती हैं। इसकी वजह से दिमाग में आक्सिडेटिव स्ट्रेस पैदा होता है जो शरीर के लिए हानिकारक है। चार दिवसीय इस कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर गुरुवार को नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो.टॉर्स्टन वीजेल, इंडियन एकेडमी ऑफ न्यूरोसाइंसेज के अध्यक्ष डॉ.राकेश शुक्ला, प्रो.पीके सेठ, डॉ.विनय खन्ना, डॉ.बीएन धवन, प्रो.पीएन टंडन, समेत देश-विदेश के लगभग पांच सौ वैज्ञानिक मौजूद थे। अल्जाइमर्स से दूर रखेगा एस्ट्रोजन आल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज की डॉ.सोनाली कटारिया ने अपने शोध से निष्कर्ष निकाला है कि महिलाओं में बनने वाला एस्ट्रोजेन हार्मोन दिमाग की कोशिकाओं को सुरक्षित रखता है। हालांकि रजोनिवृत्ति के बाद यह हार्मोन बनना कम हो जाता है। दृष्टि पर गहरा असर कार्यशाला में नोबेल पुरस्कार विजेता प्रो.टॉर्स्टन वीजेल ने बताया कि मानव शरीर में यदि एक आंख क्षतिग्रस्त हो जाए या किसी कारणों से काम करना बंद कर दे इसका गहरा असर दृष्टि पर पड़ता है क्योंकि मानव दिमाग बाइनॉक्यूलर विजन के हिसाब से काम करता है। प्रो.वीजेल ने बंदरों पर प्रयोग करके यह निष्कर्ष निकले हैं(दैनिक जागरण,लखनऊ,27.11.2010)।
वास्तव में सही कहा आपने रासायनिक कीटनाशकों के कारण पर्यावरण इस कदर प्रदूषित हो चुका है कि अब पूरा विश्व इसकी भरपाई के लिए जैविक खेती की ओर देख रहा है। अगर दुनिया को आने वाली प्रलय से बचाना है तो जैविक खेती या प्राकृतिक खेती ही एकमात्र रास्ता है।
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