शनिवार, 27 नवंबर 2010

खुद ही बीमार न हो जाए इंसेफलाइटिस का टीका

पूर्वी उत्तर प्रदेश में दिमागी बुखार (जापानी इंसेफलाइटिस) की रोकथाम के लिये होने वाले टीकाकरण में हद दर्जे की लापरवाही बरती जा रही है। टीकों के रखरखाव में खिलवाड़ से मासूमों की जान खतरे में पड़ सकती है। अभियान के दौरान स्वास्थ्य केंद्रों पर टीकों की कोल्ड चेन बनाए रखने की व्यवस्था नहीं होने से टीके खराब हो सकते है। टीकों को सुरक्षित रखने के लिये मौजूद रेफ्रिजरेटरों के लिये जहां बिजली मिलना मुश्किल है वहीं जेनरेटरों के लिए डीजल तक का इंतजाम नहीं है। गोरखपुर-बस्ती मंडल के सात जिलों में होने वाले टीकाकरण के लिये इस समय कुल 75 लाख टीकों में से 25-25 लाख गोरखपुर, बस्ती तथा वाराणसी के स्टोर में रखे गये हैं। जिला मुख्यालयों पर कोल्ड चेन बनाए रखने की पूरी व्यवस्था है लिहाजा टीके सुरक्षित है, लेकिन यहां से बाहर जाने के बाद टीकों की सुरक्षा सवालों के घेरे में हैं। अभियान के दौरान, जिन स्वास्थ्य केंद्रों पर टीके तीन से चार दिन रखे जाने हैं वहां इनकी सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। विशेषज्ञों के अनुसार, टीकों को सुरक्षित रखने के लिये उनको 2 से 8 डिग्री के तापमान पर रखा जाना है। साथ ही इंजेक्शन के साथ प्रयुक्त होने वाले डाइलूएन्ट भी इसी तापमान पर रखे जाने हैं। इसके लिये स्वास्थ्य केंद्रों पर आईएलआर या आईस लाइन रेफ्रिजरेटर तो हैं पर इनके लिये न तो बिजली आपूर्ति की व्यवस्था है और न हीं जेनरेटरों को चलाने के लिये डीजल के मद में कोई धन मिला है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में दिमागी बुखार (जापानी इंसेफलाइटिस) की रोकथाम के लिये होने वाले टीकाकरण में हद दर्जे की लापरवाही बरती जा रही है। टीकों के रखरखाव में खिलवाड़ से मासूमों की जान खतरे में पड़ सकती है। अभियान के दौरान स्वास्थ्य केंद्रों पर टीकों की कोल्ड चेन बनाए रखने की व्यवस्था नहीं होने से टीके खराब हो सकते है। टीकों को सुरक्षित रखने के लिये मौजूद रेफ्रिजरेटरों के लिये जहां बिजली मिलना मुश्किल है वहीं जेनरेटरों के लिए डीजल तक का इंतजाम नहीं है। गोरखपुर-बस्ती मंडल के सात जिलों में होने वाले टीकाकरण के लिये इस समय कुल 75 लाख टीकों में से 25-25 लाख गोरखपुर, बस्ती तथा वाराणसी के स्टोर में रखे गये हैं। जिला मुख्यालयों पर कोल्ड चेन बनाए रखने की पूरी व्यवस्था है लिहाजा टीके सुरक्षित है, लेकिन यहां से बाहर जाने के बाद टीकों की सुरक्षा सवालों के घेरे में हैं। अभियान के दौरान, जिन स्वास्थ्य केंद्रों पर टीके तीन से चार दिन रखे जाने हैं वहां इनकी सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। विशेषज्ञों के अनुसार, टीकों को सुरक्षित रखने के लिये उनको 2 से 8 डिग्री के तापमान पर रखा जाना है। साथ ही इंजेक्शन के साथ प्रयुक्त होने वाले डाइलूएन्ट भी इसी तापमान पर रखे जाने हैं। इसके लिये स्वास्थ्य केंद्रों पर आईएलआर या आईस लाइन रेफ्रिजरेटर तो हैं पर इनके लिये न तो बिजली आपूर्ति की व्यवस्था है और न हीं जेनरेटरों को चलाने के लिये डीजल के मद में कोई धन मिला है। दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित अधिकांश स्वास्थ्य केंद्रों पर महज आठ से नौ घंटे ही बिजली रहती है। ऐसे में निर्धारित तापमान पर टीकों को रखने की बात सपने जैसी है। सूत्रों के अनुसार, स्वास्थ्य केंद्रों पर आईएलआर टीकों का कोल्ड चेन बनाए रखने के काम भी आते ही हैं, साथ ही आइस पैक भी जमाए जाते हैं जो टीकों को बूथ तक लेने जाने वाले वैक्सीन कैरियर में रखने के काम आते हैं। आइस पैक जमाने के लिये चौबीस घंटे बिजली की जरूरत होती है। लेकिन जो स्थिति है उससे आइस पैक जमाना तो दूर स्वास्थ्य केंद्रों पर निर्धारित तापमान पर वैक्सीन रखना मुश्किल है। इस समय अधिकतम तापमान 25 डिग्री चल रहा है, ऐसे में लापरवाही से टीके खराब होने की आशंका है। ऐसे में टीके खराब होने की आशंका से अभियान से जुड़े अधिकारियों के हाथ-पांव फूल गये हैं। पिछले दिनों दिनों इस मुद्दे पर लखनऊ में हुई आला अधिकारियों की बैठक में यह मामला उठाया गया था लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। विशेषज्ञों का कहना है कि टीकों को सुरक्षित रखने के लिये उनका कोल्ड चेन बनाए रखना बेहद जरूरी है। इसी को देखते हुए पोलियो टीकाकरण अभियान के दौरान छह दिनों तक सरकार अलग से धन देती है, लेकिन इंसेफलाइटिस टीकाकरण के महत्वपूर्ण अभियान में इसकी कोई व्यवस्था है। 2006 में इंसेफलाइटिस टीकाकरण हुआ था तब तत्कालीन प्रमुख सचिव स्वास्थ्य नीता चौधरी ने विद्युत विभाग को निर्देशित किया था कि अभियान के दौरान स्वास्थ्य केंद्रों से जुड़े फीडरों को लगातार बिजली दी जाए। इस बार ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। इस बारे में पूछे जाने पर एडी हेल्थ डा.यू.के. श्रीवास्तव ने कहा, टीकों की सुरक्षा को लेकर स्वास्थ्य विभाग सतर्क है। पूरी कोशिश की जा रही है कि कोल्ड चेन हर हाल में बनाए रखा जाए। उल्लेखनीय है कि राज्य में हर साल इस बीमारी की चपेट में आकर बच्चों समेत सैकड़ों लोग काल का ग्रास बनते हैं(हेमंत कुमार पाठक,दैनिक जागरण,गोरखपुर,27.11.2010)।

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