अस्पताल मरीजों को सस्ता इलाज देने के उद्देश्य से खोले गए थे, जहां उन्हें अस्पताल के ही दवाखाने से मुफ्त दवाएं देने की भी व्यवस्था की गई थी। लेकिन सरकारी अस्पतालों की स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है। जहां एक ओर इन अस्पतालों में डॉक्टरों व अन्य सहयोगी कर्मचारियों की कमी एक आम बात हो गई है, वहीं अव्यवस्था का आलम भी करीब-करीब हर सरकारी अस्पताल में एक जैसा ही है। दुर्भाग्य की बात यह है कि चाहे वह देश के किसी दूरदराज के इलाके का सरकारी अस्पताल हो या कि राजधानी दिल्ली का, इनकी स्थिति कमोबेश एक जैसी ही है। राजधानी के अस्पतालों में भी मरीज मुफ्त दवाओं व अन्य जरूरी सेवाओं के लिए तरसते हैं और यहां के अस्पतालों में भी अव्यवस्था कुछ कम नहीं है। ताजा बानगी बाहरी दिल्ली के रोहिणी सेक्टर-22 इलाके के एक कूड़े के ढेर में भारी मात्रा में पड़ी मिली सरकारी अस्पताल की दवाओं की है। ये दवाएं किस सरकारी अस्पताल की हैं, इस बात का तो फिलहाल खुलासा नहीं हुआ है। लेकिन इस घटना से एक बात जरूर साफ होती है कि जो दवाएं मरीजों के इलाज में काम आ सकती थीं और उनमें से कई की जान बचा सकती थीं, उन्हें किसी ने गैर-जिम्मेदारी और लापरवाही का परिचय देते हुए बर्बाद कर दिया। दवाएं सरकारी दवाखाने की जरूर थीं, लेकिन उनपर उन मरीजों का हक था, जो अस्पताल में इलाज के लिए आते हैं। फेंकी गईं दवाएं पशुओं के लिए तो नुकसानदायक हैं ही ये निश्चित तौर पर पर्यावरण के लिए भी हानिकारक हैं। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि मामले की गंभीरता से जांच की जाए और इस घटना के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान कर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। मरीजों के साथ अन्याय करने वालों को किसी भी स्थिति में बख्शा नहीं जाना चाहिए। अस्पतालों में ऐसी पुख्ता व्यवस्था बनाई जानी चाहिए कि उनके दवाखानों में जरूरी दवाओं की कमी न होने पाए। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि दवाएं एक्सपायर न होने पाएं और यदि वे एक्सपायर होती भी हैं तो उन्हें ऐसे ही कहीं भी सड़क किनारे फेंकने से रोका जाना चाहिए। एक्सपायर हो चुकी दवाओं के निस्तारण की उचित व्यवस्था की जाए ताकि इन दवाओं का कोई इस्तेमाल न कर सके(संपादकीय,दैनिक जागरण,23.11.2010)।
ऐसे लोगो को उम्र कैद से कम सजा नहीं होनी चाहिए। मौत की सजा का प्रावधान भी हो तो कोई शायद ही विरोध करेगा।
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