आज मिर्गी दिवस है। मिर्गी का नाम आते ही आज भी भारत में बड़ी संख्या में लोग इसकी अलग-अलग तरह से व्याख्या करने लगते हैं। वैज्ञानिक युग में भी तमाम लोग मिर्गी की हकीकत से वाकिफ नहीं हैं। उनके लिए यह बीमारी कम, दैवीय प्रकोप या फिर कर्मो का फल आदि जैसी भ्रांतियां ज्यादा हैं। यही वजह है कि विकासशील देशों में जहां मिर्गी के मरीजों की संख्या का अनुपात प्रति लाख में 40 से 70 है, वहीं विकासशील देश भारत में यह अनुपात प्रति लाख में 100 से 190 है। यानि ढाई गुना ज्यादा। मिर्गी ऐसी बीमारी है जिसमें मस्तिष्क के इलेक्टि्रकल प्रवाह में व्यवधान होता है। मिर्गी की वजह से पूरे शरीर या कोई भी अंग अनियंत्रित गति से कंपन करता है और कुछ लोगों को बेहोशी भी आती है। लगभग 1.5 से 5 प्रतिशत जनसंख्या को जिंदगी में कभी न कभी एक दौरा महसूस होता है लेकिन दुबारा कभी नहीं आता। अगर दौरा दो बार आया हो तो मरीज को और भी दौरे आ सकते हैं, उसे मिर्गी की बीमारी हो सकती है। न्यूरो फिजीशियन डॉ. अमित शुक्ला बताते हैं कि मिर्गी के दौरे सबसे ज्यादा बच्चों में और 65 वर्ष की आयु के बाद आता है, लेकिन दौरे किसी भी उम्र में आ सकते हैं। सही दौरे की पहचान, सलाह और इलाज से मरीज मिर्गी से मुक्त हो सकता है, नहीं तो कम से कम उसकी तीव्रता कम हो सकती है।
लक्षण :
थोड़े समय के लिए व्याकुलता, बेहोशी या स्थिरता अथवा हाथ-पैर में अनियंत्रित कंपन हो सकता है। बहुत से मरीजों में हमेशा एक ही प्रकार का दौरा पड़ता है और कुछ मरीजों में कभी एक प्रकार का तो कभी दूसरे प्रकार का दौरा पड़ता है। ब्लड टेस्ट, इइजी, सीटी स्कैन, एमआरआइ, पीइटी आदि के जरिए इसका पता लगाया जा सकता है। मरीज का पूरा ध्यान और इलाज कराना ही इस समस्या का हल है। जागरूकता के अभाव में यह बीमारी फैल रही है(दैनिक जागरण,इलाहाबाद,17.11.2010)। मिर्गी के दौरे से परिवार बिखर रहे हैं। शादी के समय बीमारी का राज छिपा लेने से तलाक तक की नौबत आ रही है। वहीं बीमारी है कि लोगों का पीछा ही नहीं छोड़ रही। मिर्गी के मरीजों को बीमारी के साथ ही समाज के भेदभाव से आहत होना पड़ता है। लड़कियों को शादी में परेशानी होती है। वहीं शादी हो भी जाती है तो इसके बाद तलाक तक बात पहुंच जाती है। प्रति 200 में से एक व्यक्ति इस बीमारी का शिकार है। वहीं 60 प्रतिशत मामलों में मिर्गी के कारणों का पता नहीं लग पाता है। ऐसे मरीजों को लंबे समय तक दवाएं लेने से बीमारी से निजात मिल जाती है। वहीं 20 प्रतिशत मरीजों को दवाओं से बीमारी कंट्रोल हो जाती है। ऐसे मरीज बहुत कम हैं जिनका इलाज मुश्किल है।
जूता सुंघाने और जादू टोने से बचें-
चिकित्सा क्षेत्र में मिर्गी पर अध्ययन चल रहा है। दूसरी तरफ अभी भी तमाम लोग मिर्गी के इलाज के लिए जूता सुंघाने सहित जादू टोने का सहारा लेते हैं। मिर्गी का दौरा तीन मिनट में खत्म हो जाता है। इसके चलते लोगों को लगता है कि जूता सुंघाने और जादू टोने से मरीज ठीक हो गया। मिर्गी का इलाज दवाओं से ही संभव है। सही प्रकार की मिर्गी की पहचान आवश्यक है और न्यूरोलॉजिस्ट की सलाह पर नियमित दवा लेनी चाहिए। जूता सुंघाने से दौरा नहीं ठीक होता है(अमर उजाला)
उधर,आज दैनिक भास्कर के हिसार संस्करण की रिपोर्ट कहती है कि पौष्टिक और सेहत के लिए अच्छा माना जाने वाला हरा और पत्तेदार सलाद पानी में अच्छी तरह धोए बिना तैयार किया जाए,तो किसी को भी मिर्गी का रोगी भी बना सकता है! मनोचिकित्सक करणजीत सिंह के हवाले से अखबार लिखता है कि पत्ता गोभी, गाजर, मूली की तरह पत्तेदार और हरी सब्जियों के साथ लगे गंद में सिस्टी सर्कोसिस नामक एक कीटाणु होता है। अगर यह शरीर में चला जाए तो खून के प्रवाह के साथ दिमाग तक पहुंच जाता है। रिंग नुमा यह कीटाणु खून के प्रवाह को रोक देता है और व्यक्ति को मिर्गी के दौरे शुरू हो जाते हैं। इसका यह मतलब नहीं कि हम सलाद खाना छोड़ दें। जरूरत है केवल सावधानी की। सलाद में कच्ची सब्जियों को खाने से पहले पानी से अच्छी तरह से धोना चाहिए। किसी बर्तन में डालकर नहीं बल्कि चलते हुए पानी के नीचे। दूसरी तरफ न्यूरो सर्जन डॉ. जेपी बर्मन बताते हैं कि जो व्यक्ति अत्याधिक नशा करता है, उसे मिर्गी का दौरा आने की ज्यादा संभावना रहती है। इसके अलावा पोर्क ईटर्स यानि सूअर का मीट खाने वाले व्यक्ति को भी मिर्गी होने की प्रबल संभावना होती है क्योंकि इसके मीट के साथ कीटाणु सिस्ट व ट्यूबर क्लोमा कीटाणु दिमाग में खून के प्रवाह के साथ प्रवेश कर जाता है। चिकनाईयुक्त खाद्य पदार्थ जिसमें अत्याधिक कोलस्ट्रोल होता है, उसका सेवन करने से एथिरोस्क्रोसिस कीटाणु खून की नली में थक्का जमाता है और नली में क्लोट बनने से मिर्गी का दौरा आने लगता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के ताजा आंकड़ों के अनुसार विश्व में फिलहाल 0.6 प्रतिशत लोग मिरगी से पीड़ित है। प्रतिवर्ष 0.03 प्रतिशत रोगी बढ़ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस रोग से पीड़ित कुल रोगियों में 20 प्रतिशत लोग डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं, अगर वह चिकित्सकों से परामर्श नहीं लेते। विभिन्न कारणों से आत्महत्या करने वालों की तुलना में मिर्गी के रोगी चार गुना अधिक होते हैं।
एकटक देखना मिर्गी का लक्षणः
अगर कोई व्यक्ति एकटक किसी चीज को देख रहा है। बात करते हुए झटके लगाकर या ऐंठन के साथ हलचल कर रहा है या फिर बेसुध होकर इधर—उधर भटकने लगता है तो वह सामान्य नहीं है। ये सभी मिर्गी रोग के लक्षण हैं। अगर ऐसा होता है तो उसे तुरंत चिकित्सक की सेवाएं लेनी चाहिए।
मिर्गी लाइलाज नहीं-
हरियाणा के एक पूर्व मंत्री की बेटी को मिर्गी के दौरे आते थे। जब उसे पता लगा तो वह डिप्रेशन का शिकार हो गई। मगर जब उसने इलाज लेना शुरू किया तो बिलकुल ठीक हो गई। अब वह दो बच्चों की मां है और उसके दोनों बच्चे स्वस्थ हैं। डा. बर्मन बताते हैं कि समय रहते और निर्धारित समय तक दवाएं लेने के बाद इस रोग से मुक्ति मिल जाती है। इस रोग से पीड़ित 10 वर्ष से नीचे की उम्र के बच्चे को 3 वर्ष तक दवा लेनी चाहिए। 15 वर्ष तक की उम्र के रोगी को 3 से 5 वर्ष तक दवा लेनी चाहिए। 16 से अधिक वर्ष की उम्र के रोगी को 7 से 10 वर्ष तक दवा लेनी चाहिए।
लक्षण :
थोड़े समय के लिए व्याकुलता, बेहोशी या स्थिरता अथवा हाथ-पैर में अनियंत्रित कंपन हो सकता है। बहुत से मरीजों में हमेशा एक ही प्रकार का दौरा पड़ता है और कुछ मरीजों में कभी एक प्रकार का तो कभी दूसरे प्रकार का दौरा पड़ता है। ब्लड टेस्ट, इइजी, सीटी स्कैन, एमआरआइ, पीइटी आदि के जरिए इसका पता लगाया जा सकता है। मरीज का पूरा ध्यान और इलाज कराना ही इस समस्या का हल है। जागरूकता के अभाव में यह बीमारी फैल रही है(दैनिक जागरण,इलाहाबाद,17.11.2010)। मिर्गी के दौरे से परिवार बिखर रहे हैं। शादी के समय बीमारी का राज छिपा लेने से तलाक तक की नौबत आ रही है। वहीं बीमारी है कि लोगों का पीछा ही नहीं छोड़ रही। मिर्गी के मरीजों को बीमारी के साथ ही समाज के भेदभाव से आहत होना पड़ता है। लड़कियों को शादी में परेशानी होती है। वहीं शादी हो भी जाती है तो इसके बाद तलाक तक बात पहुंच जाती है। प्रति 200 में से एक व्यक्ति इस बीमारी का शिकार है। वहीं 60 प्रतिशत मामलों में मिर्गी के कारणों का पता नहीं लग पाता है। ऐसे मरीजों को लंबे समय तक दवाएं लेने से बीमारी से निजात मिल जाती है। वहीं 20 प्रतिशत मरीजों को दवाओं से बीमारी कंट्रोल हो जाती है। ऐसे मरीज बहुत कम हैं जिनका इलाज मुश्किल है।
जूता सुंघाने और जादू टोने से बचें-
चिकित्सा क्षेत्र में मिर्गी पर अध्ययन चल रहा है। दूसरी तरफ अभी भी तमाम लोग मिर्गी के इलाज के लिए जूता सुंघाने सहित जादू टोने का सहारा लेते हैं। मिर्गी का दौरा तीन मिनट में खत्म हो जाता है। इसके चलते लोगों को लगता है कि जूता सुंघाने और जादू टोने से मरीज ठीक हो गया। मिर्गी का इलाज दवाओं से ही संभव है। सही प्रकार की मिर्गी की पहचान आवश्यक है और न्यूरोलॉजिस्ट की सलाह पर नियमित दवा लेनी चाहिए। जूता सुंघाने से दौरा नहीं ठीक होता है(अमर उजाला)
उधर,आज दैनिक भास्कर के हिसार संस्करण की रिपोर्ट कहती है कि पौष्टिक और सेहत के लिए अच्छा माना जाने वाला हरा और पत्तेदार सलाद पानी में अच्छी तरह धोए बिना तैयार किया जाए,तो किसी को भी मिर्गी का रोगी भी बना सकता है! मनोचिकित्सक करणजीत सिंह के हवाले से अखबार लिखता है कि पत्ता गोभी, गाजर, मूली की तरह पत्तेदार और हरी सब्जियों के साथ लगे गंद में सिस्टी सर्कोसिस नामक एक कीटाणु होता है। अगर यह शरीर में चला जाए तो खून के प्रवाह के साथ दिमाग तक पहुंच जाता है। रिंग नुमा यह कीटाणु खून के प्रवाह को रोक देता है और व्यक्ति को मिर्गी के दौरे शुरू हो जाते हैं। इसका यह मतलब नहीं कि हम सलाद खाना छोड़ दें। जरूरत है केवल सावधानी की। सलाद में कच्ची सब्जियों को खाने से पहले पानी से अच्छी तरह से धोना चाहिए। किसी बर्तन में डालकर नहीं बल्कि चलते हुए पानी के नीचे। दूसरी तरफ न्यूरो सर्जन डॉ. जेपी बर्मन बताते हैं कि जो व्यक्ति अत्याधिक नशा करता है, उसे मिर्गी का दौरा आने की ज्यादा संभावना रहती है। इसके अलावा पोर्क ईटर्स यानि सूअर का मीट खाने वाले व्यक्ति को भी मिर्गी होने की प्रबल संभावना होती है क्योंकि इसके मीट के साथ कीटाणु सिस्ट व ट्यूबर क्लोमा कीटाणु दिमाग में खून के प्रवाह के साथ प्रवेश कर जाता है। चिकनाईयुक्त खाद्य पदार्थ जिसमें अत्याधिक कोलस्ट्रोल होता है, उसका सेवन करने से एथिरोस्क्रोसिस कीटाणु खून की नली में थक्का जमाता है और नली में क्लोट बनने से मिर्गी का दौरा आने लगता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के ताजा आंकड़ों के अनुसार विश्व में फिलहाल 0.6 प्रतिशत लोग मिरगी से पीड़ित है। प्रतिवर्ष 0.03 प्रतिशत रोगी बढ़ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस रोग से पीड़ित कुल रोगियों में 20 प्रतिशत लोग डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं, अगर वह चिकित्सकों से परामर्श नहीं लेते। विभिन्न कारणों से आत्महत्या करने वालों की तुलना में मिर्गी के रोगी चार गुना अधिक होते हैं।
एकटक देखना मिर्गी का लक्षणः
अगर कोई व्यक्ति एकटक किसी चीज को देख रहा है। बात करते हुए झटके लगाकर या ऐंठन के साथ हलचल कर रहा है या फिर बेसुध होकर इधर—उधर भटकने लगता है तो वह सामान्य नहीं है। ये सभी मिर्गी रोग के लक्षण हैं। अगर ऐसा होता है तो उसे तुरंत चिकित्सक की सेवाएं लेनी चाहिए।
मिर्गी लाइलाज नहीं-
हरियाणा के एक पूर्व मंत्री की बेटी को मिर्गी के दौरे आते थे। जब उसे पता लगा तो वह डिप्रेशन का शिकार हो गई। मगर जब उसने इलाज लेना शुरू किया तो बिलकुल ठीक हो गई। अब वह दो बच्चों की मां है और उसके दोनों बच्चे स्वस्थ हैं। डा. बर्मन बताते हैं कि समय रहते और निर्धारित समय तक दवाएं लेने के बाद इस रोग से मुक्ति मिल जाती है। इस रोग से पीड़ित 10 वर्ष से नीचे की उम्र के बच्चे को 3 वर्ष तक दवा लेनी चाहिए। 15 वर्ष तक की उम्र के रोगी को 3 से 5 वर्ष तक दवा लेनी चाहिए। 16 से अधिक वर्ष की उम्र के रोगी को 7 से 10 वर्ष तक दवा लेनी चाहिए।
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