सोमवार, 22 नवंबर 2010

पॉलिसी ख़रीदने से पहले शर्त समझना ज़रूरी

ज्यादातर लोगों को बीमा पॉलिसी खरीदना या म्यूचुअल फंड में निवेश करना आसान लगता है। हालांकि पॉलिसी या म्यूचुअल फंड लेते वक्त लोग अक्सर लोग डॉक्युमेंट पढ़े बगैर फॉर्म पर हस्ताक्षर कर देते हैं। उन्हें इसका अंदाजा नहीं होता कि इस लापरवाही के लिए बाद में भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। इस बारे में आप पॉलिसी लेने वाले से पूछेंगे तो यही जवाब मिलेगा कि डॉक्युमेंट में लिखी बातें कहां पल्ले पड़ती हैं। यह बात काफी हद तक सच भी है। यही वजह है कि इरडा चेयरमैन जे. हरिनारायण ने हाल में पॉलिसी डॉक्युमेंट को आसान बनाने के लिए कहा है। इरडा के इस निर्देश के बाद बीमा कंपनियां ऐसी कोशिश कर सकती हैं। जब तक ऐसा नहीं होता, आपके लिए डॉक्युमेंट पर हस्ताक्षर करने से पहले उसमें लिखी बातों को ध्यान से पढ़ना फायदेमंद रहेगा। याद रखें कि इसमें उन शर्तो का जिक्र होता है, जिन पर आपका क्लेम निर्भर करता है। 

हेल्थ इंश्योरेंस एक्सक्लूजन: 
इसका मतलब उन बीमारियों से है, जो हेल्थ इंश्योरेंस कवर से बाहर हैं। इस मामले में बीमा कंपनियों के नियम अलग-अलग हैं। हेल्थ कवर खरीदने से पहले आपको एक्सक्लूजन लिस्ट ध्यान से पढ़नी चाहिए। मिसाल के तौर पर अधिकतर पॉलिसी में पहले साल बवासीर, रतौंधी जैसी बीमारियों के इलाज के लिए क्लेम नहीं मिलता। कई पॉलिसी में प्रेगनेंसी और डेंटल कवर शामिल नहीं होते। हालांकि कुछ बीमा कंपनियां अब ऐसी पॉलिसी बेच रही हैं, जिनमें इस तरह के खर्च को भी शामिल किया गया है। इसके अलावा डायग्नोस्टिक जांच, प्रिवेंटिव केयर, विटामिन और टॉनिक, बाहरी उपकरण जैसे पेसमेकर और व्हीलचेयर्स खर्च को भी शामिल नहीं किया जाता है। हालांकि, अगर बीमा कराने वाला व्यक्ति किसी सर्जरी से संबंधित मेडिकल जांच कराता है तो इस तरह की जांच के खर्च और उस दौरान ली गई दवाओं पर होने वाले खर्च का भुगतान प्री-हॉस्पिटलाइजेशन एक्सपेंसेज के रूप में कर दिया जाता है। कई हेल्थ पॉलिसी में अस्पताल में भर्ती होने से 30 दिन पहले और डिस्चार्ज के 60 दिन बात तक के खर्च के भुगतान का प्रावधान होता है। 

पुरानी बीमारियां
अधिकतर पॉलिसी वेटिंग पीरियड के बाद ही पुरानी बीमारियों (जो पॉलिसीधारक को पहले से हैं) के इलाज पर आने वाले खर्च का भुगतान करती हैं। पुरानी या प्री-एक्जिस्टिंग बीमारी उसे कहते हैं जिसका इलाज पॉलिसी खरीदने से पहले के 48 महीने में किया गया हो। हालांकि, यदि बीमारी क्रॉनिक नहीं है या इलाज के बाद दोबारा नहीं हुई है तो चिंता करने की कोई बात नहीं है। उदाहरण के लिए यदि आपने अपेन्डिसाइटिस का ऑपरेशन कराया है तो इसे प्री-एक्जिस्टिंग बीमारी नहीं माना जाएगा। इसके अलावा आम तौर पर हेल्थ कवर दुर्घटना को छोड़ पॉलिसी खरीदने के 30 दिन बाद ही शुरू होता है। 

वेटिंग पीरियड
यह प्री-एक्जिस्टिंग बीमारियों में लागू होता है, जो कवर के तहत नहीं आती हैं। पॉलिसी और बीमा कंपनी के मुताबिक यह अवधि एक से चार साल हो सकती है। यह तब ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है जब आप बीमा कंपनी बदलने का फैसला करते हैं, क्योंकि नई बीमा कंपनी आपके लिए फिर से वेटिंग पीरियड तय कर सकती है। 

प्रतिबंध
उन बीमारियों के बारे में जानना जरूरी है, जिन्हें आपकी पॉलिसी कवर करती है। यह भी जानना जरूरी है कि आप उन पर कितनी रकम खर्च कर सकते हैं। अधिकतर पॉलिसी ने रूम रेंट और ऑपरेशन थिएटर चार्ज की सीमा तय कर रखी है। रक्षा टीपीए के सीईओ पवन भल्ला कहते हैं, पॉलिसीधारकों की आम जानकारी से अलग खर्च की सीमा सिर्फ रूम रेंट के लिए ही नहीं तय की गई है। दावा का भुगतान करने के दौरान दूसरे चार्ज में भी समान अनुपात में कटौती कर दी जाती है। यदि पॉलिसी में को-पेमेंट की शर्त है तो आपको दावे के एक हिस्से का भुगतान पहले से तय अनुपात के मुताबिक करना होगा। यह 10-25 फीसदी के बीच हो सकता है। को-पेमेंट वाली पॉलिसी का फायदा यह है कि इसमें आपका प्रीमियम कम हो जाता है। 

वाजिब और जरूरी खर्च
आपकी पॉलिसी में इस बात का जिक्र होता है कि सिर्फ वाजिब और जरूरी खर्च का ही भुगतान किया जाएगा। मान लीजिए आपने इलाज पर 50,000 रुपये खर्च किए हैं और आम तौर पर इसका खर्च 40,000 आता है तो बीमा कंपनी कम रकम का भुगतान करेगी। 

खर्च का दावा
बीमा कंपनी से क्लेम की जल्द मंजूरी के लिए आपको अस्पताल में भर्ती होने के 7 दिन के अंदर टीपीए/बीमा कंपनी को इसकी जानकारी देनी पड़ेगी और डिस्चार्ज होने के 15 दिन के अंदर जरूरी डॉक्युमेंट भेजने होंगे। 

रिन्यूवल गारंटी : 
इरडा के नियम के मुताबिक हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां इस आधार पर पॉलिसी रिन्यूवल के आवेदन को खारिज नहीं कर सकतीं कि शुरुआती साल में पॉलिसीधारक द्वारा दावा किया गया है। धोखाधड़ी और गलत जानकारी देने पर ही रिन्यूवल आवेदन खारिज किया जा सकता है। पॉलिसी के प्रॉस्पेक्टस में रिन्यूवल की शर्तो के बारे में व्यापक जानकारी होनी चाहिए(दिलीप कुमार गुप्ता,दैनिक जागरण,भोपाल,22.11.2010)।

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