मंगलवार, 23 नवंबर 2010

कृत्रिम गर्भाधान के तरीक़े

मां बनना हर महिला की चाहत होती है लेकिन कई बार किन्हीं वजहों से कुछ महिलाएं कुदरती तरीके से गर्भधारण नहीं कर पातीं। तकनीक ने ऐसी महिलाओं को सहारा दिया और अब कई ऐसे तरीके हैं, जो नाउम्मीद हो चुकी महिलाओं में उम्मीद जगा सकते हैं। गर्भधारण करने की ऐसी ही कुछ तकनीकों के बारे में बता रही हैं गरिमा ढींगड़ा :
ART यानी असिस्टेड रिप्रॉडक्टिव टेक्नॉलजी
जो कपल प्राकृतिक तरीके से माता-पिता नहीं बन पाते या जिन्हें किसी तरह की बड़ी या जिनेटिक बीमारी (एड्स, थायरॉइड, आदि) होती है, उनके लिए एआरटी वरदान साबित हुई है। इसके तहत विभिन्न आर्टिफिशल तरीकों से गर्भाधान कराया जाता है।

किसे पड़ती है जरूरत : एआरटी के जरिए गर्भाधान करने से पहले कुछ बातों को जरूर देखा जाता है :

1. शादी 30 साल या उससे ज्यादा उम्र में हुई हो और पिछले छह महीने से बच्चे के लिए कोशिश कर रहे हों, लेकिन कामयाब नहीं हो पा रहे हों।

2 . शादी 30 साल से कम उम्र में हुई हो और पिछले एक साल से गर्भधारण की कोशिश कर रहे हों।

3. प्रेग्नेंसी में रिस्क हो। मां या बच्चे की जान को खतरा हो या होने वाले बच्चे में शारीरिक या मानसिक विकलांगता का खतरा हो।

4. कपल को एड्स, आरएच फैक्टर, पीसीओडी जैसी समस्याएं हो।

डॉक्टर जांच कराने के बाद तय करता है कि कपल को किस तकनीक की जरूरत है। उसी के मुताबिक इलाज किया जाता है।

1 . IVF इनविट्रो फर्टिलाइजेशन

2.IUI इंट्रा यूरीन इनसेमिनेशन

3. ICSI इंट्रासाइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन

4.GIFT गामेट इंट्राफैलोपियन ट्रांसफर

5 . ZIFT जायगोट इंट्राफैलोपियन ट्रांसफर

टेस्ट ट्यूब बेबी
इस तकनीक में एग सेल्स को यूटरस के बाहर फर्टिलाइज किया जाता है। जब गर्भधारण के बाकी उपाय नाकाम रहते हैं, तब यह इलाज कारगर साबित हो सकता है।

किसके लिए : इस तकनीक का इस्तेमाल उन कपल्स को करना चाहिए, जिसमें-

- महिला की फलोपियन ट्यूब्स ब्लॉक हों

- अगर महिला टीबी की मरीज हो

- महिला की ओवरी में अंडे न बन पाते हों (इसे पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम भी कहते हैं)

- बहुत ज्यादा उम्र (50 साल के बाद) में बच्चे की चाहत रखना

- महिला में मीनोपॉज हो जाना

- प्री-मैच्योर ओवरियन फेल्योर यानी 30 साल की उम्र में ही पीरियड बंद हो जाना

इसके अलावा कई बार पति-पत्नी दोनों की जांच के बाद पता ही नहीं चल पाता कि आखिर समस्या कहां है। ऐसे कपल आईवीएफ करवा सकते हैं।

प्रॉसेस : 1. पहले महिला के सारे टेस्ट कराए जाते हैं। पीरियड के तीसरे दिन महिला का ब्लड सैंपल लिया जाता है, जिसके जरिए यह जानने की कोशिश की जाती है कि वह किसी तरह की बीमारी से पीडि़त तो नहीं है। टेस्ट के आधार पर आगे बढ़ा जा सकता है।

2. अल्ट्रासाउंड के जरिए यह जानने की कोशिश की जाती है कि यूट्रस, सर्वाइकल कनाल और ओवरी की स्थिति क्या है। यह भी जांच की जाती है कि इस तकनीक के जरिए महिला को गर्भ ठहरने में कोई दिक्कत तो नहीं होगी।

3. तीसरे स्टेप की ओर बढ़ा जाता है। जब महिला का अंडा 18-20 मिमी हो जाता है तो उसे बाहर निकाल लिया जाता है। आमतौर पर अंडा का यह आकार 36 घंटे में बनता है और इसके बाद वह खुद-ब-खुद छोटा होने लगता है। इस प्रॉसेस में अंडे को 36 घंटे से पहले ही बाहर निकाल लिया जाता है। इसके बाद र्स्पम्स को इन अंडों पर छोड़ दिया जाता है। जब कोई अंडा स्पर्म से अच्छी तरह फर्टिलाइज हो जाता है, तो उसे महिला के यूट्रस में डाल दिया जाता है।

समय : कितना वक्त लगेगा, यह महिला की उम्र और गर्भधारण न होने के कारण पर निर्भर करता है। महिला की उम्र 30 साल से कम है, तो समय कम लगेगा। उसकी कामयाबी की उम्मीद भी 40 फीसदी तक होगी। इससे ज्यादा उम्र की महिला को ज्यादा समय लग सकता है। 30 साल से ज्यादा हो तो सफलता 35 फीसदी या उससे कम हो सकती है। 30 साल उम्र के साथ-साथ महिला का वजन भी गर्भधारण में बहुत अहम होता है। महिला का वजन ज्यादा है तो उसे वजन कम करना होगा। अंडे की क्वॉलिटी और मात्रा उम्र के साथ गिर जाती है।

खर्चा : आईवीएफ तकनीक में हर स्टेप पर 80 हजार रुपये से 1.25 लाख रुपये तक का खर्चा आता है। कुल मिलाकर चार से पांच लाख रुपये खर्च हो जाते हैं। ज्यादातर सभी बड़े प्राइवेट अस्पतालों में इस तकनीक की व्यवस्था है, लेकिन सरकारी हॉस्पिटलों में कुछ में ही यह सुविधा मौजूद है। सरकारी अस्पतालों में इस तकनीक का पूरा खर्चा करीब 50 से 60 हजार रुपये पड़ता है।

कामयाबी : इस तकनीक में ज्यादातर जुड़वां बच्चे होते हैं। इसकी कामयाबी 20 से 30 फीसदी आंकी गई है, यानी इसमें रिस्क लेना पड़ता है।

एहतियात : आईवीएफ तकनीक अपनाने वाले पुरुषों को डर होता है कि उनके स्पर्म वापस मिलेंगे या नहीं। इस तकनीक का कई संस्थान गलत फायदा उठाते हैं। इसी के कारण आजकल यह एक धंधा-सा बनता जा रहा है। अच्छे संस्थान एक दिन में एक या दो मरीजों का सैंपल ही लेते हैं, ताकि गलती से भी किसी दूसरे के स्पर्म या अंडा आपस में न मिल जाएं। इस बात का ध्यान उन कपल्स को भी रखना चाहिए, जो इस तकनीक से गर्भधारण करा रहे हैं। जब भी प्रक्रिया शुरू हो, हर बार नाम सुनकर ही हां में जवाब दें। एहतियात के लिए प्राइवेट संस्थान बार-बार नाम बोलते रहते हैं।

IUI

कई बार देखा जाता है कि पुरुषों के स्पर्म (शुक्राणु) अच्छी हालत में नहीं होते या इंटरकोर्स के समय ओवरी के बाहर ही रह जाते हैं। ऐसे में इस तकनीक के जरिए स्पर्म को बाहर लैब में अच्छी तरह धोकर उनमें से अच्छे स्पर्म छांटकर सीधे महिला के यूटरस में डाल दिए जाते हैं।

किसके लिए : जिन कपल्स को नीचे लिखी समस्याएं हों, वे इस तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं :

- स्पर्म बहुत कम हों या खराब हों

- महिला की एक फलोपियन ट्यूब ठीक न हो

- सर्विक्स (बच्चेदानी का मुंह) में गड़बड़ी

- कपल सेक्स से दूर रहता हो या सेक्स की इच्छा न हो

स्पर्म बैंक : अगर स्पर्म कम हैं तो स्पर्म बैंक के जरिए गर्भधारण कर सकते हैं। अगर पुरुष किसी बीमारी से पीड़ित है तो भी स्पर्म खराब हो सकते हैं। ऐसे में बैंक से स्पर्म खरीद कर प्रेग्नेंसी हो सकती है।

स्पर्म डोनर : अगर आप चाहते हैं कि आपका ही कोई अपना आपके लिए स्पर्म दें तो आप अपने किसी दोस्त या रिश्तेदार से स्पर्म ले सकते हैं। ऐसे आदमी को स्पर्म डोनर करते हैं।

समय : 24 घंटे यानी एक दिन। स्पर्म फर्टिलाइज होने के बाद उसे महिला के यूटरस में डाल दिया जाता है।

खर्चा : वैसे तो हर बैंक के अलग-अलग रेट हैं, लेकिन आमतौर पर 600 रुपये से 2000 रुपये के बीच स्पर्म मिल जाते हैं। इसके अलावा ट्रीटमेंट के जरिए स्पर्म को बेहतर बनाया जाता है, जिसमें करीब 30 से 40 हजार तक का खर्चा आ जाता है।

कामयाबी : यों तो इस तकनीक से पैदा होने वाले बच्चे ठीक ही होते हैं, लेकिन कुछ मामलों में जन्म के समय बच्चे का वजन बहुत कम होता है। ऐसे बच्चे बहुत नाजुक होते हैं।

एहतियात : इस तकनीक से गर्भधारण करनेवाली महिलाओं को ज्यादा एक्सरसाइज नहीं करनी चाहिए। जॉगिंग और एरोबिक्स तो बिल्कुल नहीं करनी चाहिए। शुरुआती दिनों में आराम करना चाहिए। बिना डॉक्टर की सलाह कोई दवा नहीं लेनी चाहिए।

ICSI
इस तकनीक में पुरुष के स्पर्म और महिला के अंडे को बाहर फर्टिलाइज किया जाता है। सिर्फ एक स्पर्म को नली के जरिए अंडे के बीचोबीच डाल दिया जाता है। फर्टिलाइज होने के बाद उसे यूटरस में डाल दिया जाता है।

किसके लिए : महिला में सब कुछ ठीक हो, लेकिन पुरुष में बिल्कुल स्पर्म न हों।

स्पर्म बैंक : इसमें पुरुष में स्पर्म बिल्कुल नहीं होते, इसलिए किसी तीसरे आदमी के स्पर्म इस्तेमाल किए जाते हैं। ऐसे में स्पर्म बैंक बेहतर विकल्प है। स्पर्म डोनर की भी मदद ले सकते हैं। यह जांच करा लें कि स्पर्म डोनर को कोई बीमारी न हो।

समय : बाहर अच्छी तरह फर्टिलाइज करने में 2-3 दिन लग जाते हैं। उसके बाद उसे यूटरस में डाल दिया जाता है।

खर्चा : स्पर्म खरीदने और बाकी ट्रीटमेंट आदि पर 40 से 50 हजार तक का खर्चा आ जाता है।

कामयाबी : इस तकनीक की कामयाबी के आसार एक-तिहाई रहते हैं, यानी इस तकनीक के जरिए आपको बच्चा मिल ही जाएगा, इसकी सौ फीसदी गारंटी नहीं है।

कुछ और तकनीकें

ऊपर लिखी तकनीकों के अलावा ये तरीके भी आर्टिफिशल गर्भधारण के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं :

GIFT
इस तकनीक के जरिए पुरुष के स्पर्म और महिला के अंडे के मिक्सचर को एक मशीन के जरिए फलोपियन ट्यूब में सीधा डाल दिया जाता है, जहां से वह महिला के गर्भ में आ जाता है। इसमें महिला की ट्यूब का ठीक होना जरूरी है। इस तकनीक का इस्तेमाल आर्टिफिशल इंटरकोर्स के रूप में किया जाता है। इस तकनीक का इस्तेमाल आमतौर पर कम ही होता है।

ZIFT
इस तकनीक में महिला की ओवरी में बने अंडे को बाहर निकाल लिया जाता है और उसे लैब में स्पर्म के साथ फटिर्लाइज किया जाता है। इसके बाद फटिर्लाइज्ड एग को फलोपियन ट्यूब में डाल दिया जाता है। इस तकनीक में भी आईएफटी की तरह महिला की ट्यूब और पुरुष के स्पर्म का ठीक होना बहुत जरूरी है।

एक्सपर्ट्स पैनल
डॉ. इंद्रा गणेशन, सीनियर गाइनिकॉलजिस्ट, बी. एल. कपूर हॉस्पिटल
डॉ. शशि प्रतीक, सीनियर कंसलटेंट, गाइनिकॉलजी डिपार्टमेंट, सफदरजंग अस्पताल
डॉ. जे. पी. शर्मा, असोसिएट प्रफेसर, गाइनिकॉलजी डिपार्टमेंट, एम्स
डॉ. शारदा जैन, चेयरमैन, पुष्पांजलि इंस्टिट्यूट ऑफ इनफर्टिलिटी
डॉ. भावना मित्तल, डायरेक्टर एंड कोऑडिर्नेटर, आईवीएफ सेंटर, पुष्पांजलि क्रॉसले 
(नवभारत टाइम्स,दिल्ली,21.11.2010)

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