दुनिया में हर दस सेकंड में मधुमेह से एक व्यक्ति की मौत होती है। दुनिया का हर 5वां मधुमेह मरीज भारतीय है। दिल्ली में हर सातवां व्यक्ति मधुमेह की गिरफ्त में है। करीब 32 फीसद बच्चे जुवेनाइल मधुमेह से पीड़ित हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि लाइफ स्टाइल में सुधारकर इस बीमारी को खुद से दूर रखा जा सकता है। विश्व मधुमेह दिवस की पूर्व संध्या पर शनिवार को दिल्ली में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में ये बातें निकलकर सामने आईं। विशेषज्ञों के मुताबिक मधुमेह जीवनशैली संबंधी या वंशानुगत बीमारी है। जब पैक्रियाज नामक ग्लैड शरीर में इंसुलिन बनाना कम कर देता है या बंद कर देता है, तो इस बीमारी का जन्म होता है। इंसुलिन ब्लड में ग्लूकोज को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसकी मदद के बिना सेल्स शुगर (ग्लूकोज) को एनर्जी के लिए इस्तेमाल नहीं कर पाते और यह बढ़ा शुगर लेवल डायबीटीज के रूप में सामने आता है। वैसे, 45-50 फीसद मरीज वे होते है, जिनके परिवार में पहले से किसी को डायबीटीज रही हो। मधुमेह बीमारी कई प्रकार की होती है।
टाइप-एक या इंसुलिन आधारित डायबिटीज :
इसमें इंसुलिन हारमोन्स बनना बंद हो जाते है। ऐसा किसी एंटीबॉडीज की वजह से बीटा सेल्स के पूरी तरह काम करना बंद होने से होता है। ऐसे में शरीर में ग्लूकोज की बढ़ी हुई मात्रा को नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन के इंजेक्शन की जरूरत होती है। ऐसा न करने पर मरीज बेहोश हो सकता है। कभी-कभी कोमा में भी चला जाता है। यह 3 से 25 साल तकी उम्र के लोगों में ज्यादा होती है। इसके मरीज काफी कम होते है।
टाइप-टू या बिना इंसुलिन आधारित डायबिटीज :
इसमें इंसुलिन कम मात्रा में बनता है या पैक्रियाज सही से काम नहीं कर रहा होता है। इस तरह की डायबिटीज आमतौर पर वयस्कों में पाई जाती है। डायबिटीज के 90 फीसद मरीज इसी कैटेगरी में आते है(राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,14.11.2010)।
डायबिटीज (शूगर) की बढ़ती बीमारी को यदि नहीं रोका गया तो वह दिन दूर नहीं जब भारत में हर तीसरा नागरिक साइलेंट किलर के नाम से जाने वाली इस बीमारी की चपेट में होगा। विश्व में पहले ही भारत को डायबिटीज की राजधानी का खिताब दिया जा चुका है।
आंकड़ों के अनुसार देश में चार करोड़ 37 लाख लोग इस जानलेवा बीमारी की चपेट में हैं। लगभग इतने ही मरीज ऐसे हैं, जिन्हें यह बीमारी तो है, लेकिन वह इससे अनभिज्ञ हैं। इस बार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विश्व डायबिटीज दिवस पर संदेश जारी कर कहा है कि इस बीमारी को ‘जल्दी पहचानो और अपनी जान बचाओ।’
आज दैनिक भास्कर के अमृतसर संस्करण में दीपक भँडारी ने शूगर व हृदय रोग विशेषज्ञ डा. रोहित कपूर के हवाले से कहा है कि आम आदमी की तुलना में शूगर के पीड़ित मरीज को दिल की बीमारी होने की आशंका पांच गुणा अधिक रहती है। छह से सात गुना ब्रेन स्ट्रोक होने तथा अधरंग होने का खतरा अधिक है।
आठ से 10 गुना उच्च रक्तचाप की आशंका अधिक है। शूगर को ही गुर्दे फेल होने का सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। वहीं इसकी वजह से हर वर्ष हजारों शूगर के मरीज अपनी आंखों की रोशनी गंवा रहे हैं। मोटापा शूगर की बीमारी होने का सबसे बड़ा का कारण है।
आज हिंदुस्तान,दिल्ली संस्करण की रिपोर्ट कहती है कि दिल के बाद डायबिटीज ने गुर्दे पर हमला किया है। इंडियन डायबिटिक फाउंडेशन का हालिया सर्वे कहता है कि टाइप-टू डायबिटीज के 45 प्रतिशत मरीज डायलिसिस पर हैं।यह वह मरीज हैं जिन्हें पांच से छह साल से डायबिटीज थी, लेकिन वह रक्त में ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित नहीं कर पाएं। गुर्दे से पहले हृदयघात को डायबिटीज का सबसे अहम कारण माना जाता था। डायबिटीज के कारण हर साल2.9 प्रतिशत मानव श्रम की क्षति हो रही है। आईडीएफ के अनुसार डायबिटीज के 52 प्रतिशत मरीजों में हृदयघात की संभावना हैं। तीन साल पहले बीमारी की वजह से गुर्दे को होने वाला खतरामात्र 25 प्रतिशत माना जाता था, जबकि हालिया आंकड़ा 45 प्रतिशत तक पहुंच गया हैं। फोर्टिस एस्कार्ट अस्पताल के नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ.एससी तिवारी का कहना है कि किडनी के जरिए शरीर से प्रोटीन पेशाब के जरिए तेजी से बाहर जाने लगता है। गुर्दे की झिल्ली ग्लोमेरूलम यूरिन के माध्यम से प्रोटीन के बहाव को रोकती है। दिल्ली में 15 प्रतिशत डायबिटीज मरीजों की किडनी खराब हो चुकीहै। दिल्ली डायबिटीक फोरम के डॉ. ए. के झिंगन के अनुसार, देश में हर साल 500 लोग डायबिटीज की वजह से आंखों की रौशनी खो रहे हैं,जबकि इतने ही लोग हर साल विकलांग हो रहे हैं। मधुमेह के ख़तरे पर,जानी-मानी ब्लॉगर फ़िरदौस ख़ान जी का एक आलेख यहां है।
दरअसल,मीठे पदार्थो के सेवन से जठाराग्नि और पाचकग्नि मंद हो जाती है। कफवर्द्धक पदार्थो का पाचन न होने से मधुरस ग्लूकोज में बदलकर रक्त में बिना घुले चले जाते हैं। इससे इंसुलिन इसे पचा नहीं पाती। इससे यह शर्करा रक्त तथा यूरिया में मिल जाती है। इस रोग में अत्यधिक इंसुलिन के प्रयोग से पक्षाघात का खतरा भी रहता है। मधुमेह से बचने के लिए पांच काली मिर्च और पांच तुलसी की पत्ती सुबह खाली पेट लेने की सलाह दी जाती है। सोने से पहले त्रिफला चूर्ण का सेवन भी कर सकते हैं।
इंसुलिन हमारे भोजन में शर्करा को पचाने में सहायता करती है। इंसुलिन की कमी से शर्करा कोशिकाओं में पहुंच नहीं पाती है। इससे खून में शर्करा सामान्य से अधिक हो जाती है। अग्नाश्य में बनने वाली इंसुलिन का स्त्रोत बीटा सेल होते हैं। इनके आधार पर मधुमेह रोग भी दो प्रकार का होता है। पहले प्रकार के शिकार 30 साल अधिक आयु वर्ग के लोग होते हैं। इसके लक्षण दो तीन सप्ताह में सामने आते हैं। इसमें इंसुलिन बनाने वाली बीटा सेल पूरी तरह नष्ट हो जाती है। इसका इलाज इंसुलिन से ही संभव है। दूसरी प्रकार की मधुमेह में बीटा सेल की कमी से इंसुलिन की मात्रा शरीर में पूरी नहीं हो पाती, लेकिन इसका इलाज नियमित दवाओं से किया जा सकता है।
अनुसंधान से पता चला है कि बीटा सेल लैब में विकसित किए जा सकते हैं। अगर इस सैल का माइक्रोबाइलॉजी रिसर्च लैब में निर्माण शुरू हो जाने पर, 15 दिन तक इंसुलिन की दो सुई लगाने पर,मधुमेह के रोगियों को कई दिनों तक राहत पहुंचाने का दावा किया जा रहा है।
बहरहाल,आज के राष्ट्रीय सहारा में ही,ज्ञानप्रकाश की एक रिपोर्ट शुगर के मरीजों के लिए राहत देने वाली है। रिपोर्ट कहती है कि डायबिटिक लोगों के लिए सरकार मात्र पांच रुपये में जांच किट उपलब्ध कराएगी। इस किट का इस्तेमाल कहीं पर कोई भी कर सकता है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा यह स्वदेशी किट जेनरिक तत्वों से विकसित की गई है। विकसित की गई किट से ब्लड शुगर, खून का गाढ़ापन, टी सेल्स की सक्रियता, फॉस्टिंग सीरम ट्राइग्लाइसरराइड, एवं बैड एलडीएल कोलेस्ट्रोल, लिपिड लोवरिंग थेरेपी की स्थिति का भी पता लगाया जा सकेगा। इसके इस्तेमाल के तरीकों के लिए अभी आईसीएमआर गाइड लाइन तैयार कर रहा है। ईजाद जांच किट सरकारी अस्पतालों व दवा दुकानों पर फरवरी 2011 तक उपलब्ध होने की संभावना है। अब तक किए गए सभी चरणों के क्लीनिकल परीक्षणों में परिणाम सकारात्मक पाए गए है। केंद्र सरकार की प्रधान स्वास्थ्य सचिव सुजाता राव ने कहा कि यह किट मधुमेह रोगियों के लिए फायदेमंद साबित होगी। आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. वीएम कटोच ने कहा कि इस किट का इस्तेमाल राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य योजना में शामिल करने पर विचार किया जा रहा है। जिसे देशभर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर मुफ्त में प्रदान की जाएगी। इसकी शुरुआत दिल्ली से होगी। दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. नरेंद्र सैनी ने कहा कि दुनियाभर में मधुमेह रोग से होने वाली बीमारियों पर 333.6 बिलियन डालर अगले 10 सालों में खर्च होंगे। यह बीमारी महामारी का रूप लेती जा रही है। ऐसे में यह किट रोकथाम के लिए प्रभावकारी सिद्ध होगी।
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जवाब देंहटाएंA wonderful, informative and very useful post .
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