अविभाजित यूपी में रजिस्टर्ड आयुष चिकित्सकों को उत्तराखंड में रजिस्ट्रेशन के लिए भारतीय चिकित्सा परिषद ने मानक तय कर दिए हैं। परिषद ने इसके लिए एक कमेटी भी बनाई है। कमेटी आयुष चिकित्सकों के लिए निर्धारित मानकों की जांच के साथ ही दोनों प्रदेशों के बीच सेतु का काम भी करेगी। राज्य गठन से पहले आयुष के करीब साढ़े सात हजार डॉक्टर उत्तराखंड में प्रेक्टिस कर रहे हैं। जाहिर है इनके पास यूपी का रजिस्ट्रेशन है। अब इन चिकित्सकों को उत्तराखंड में रजिस्टर्ड करने की अनिवार्यता पर विचार शुरू हुआ। इसके लिए भारतीय चिकित्सा परिषद ने उत्तराखंड चैप्टर का गठन किया। राज्य सरकार और परिषद के स्तर पर हीला-हवाली के कारण राज्य में रजिस्ट्रेशन के मसले पर निर्णय नहीं हो सका। नतीजा यह हुआ कि काफी संख्या में ऐसे डॉक्टरों ने सूबे में अपने पांव जमा लिए, जो खुद को यूपी का बताते तो हैं, वास्तव में हैं नहीं। राज्य बनने के बाद आने वाले कई चिकित्सक भी सूबे में 15 से 20 वर्ष काम के अनुभव का दावा करते हैं। जाहिर है ऐसे में फर्जी चिकित्सकों और झोला छाप चिकित्सकों की खासी तादाद बढ़ी है। इसका खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है। अब सरकार हरकत में आई और उत्तराखंड में रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू कराने के निर्देश परिषद को दिए। इसका मकसद फर्जीवाड़े को रोकना भी है। रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया की निगरानी को लेकर परिषद की तीन सदस्यीय एक कमेटी बनाई गई है डा.एमसी बहुगुणा इसके चेयरमैन होंगे। कमेटी जल्द ही यूपी जाकर अपना काम शुरू करेगी। इसके तहत सबसे पहले यूपी में चिकित्सकों के रजिस्ट्रेशन, शैक्षणिक व मूलनिवास प्रमाण-पत्रों का वेरीफिकेशन होगा। उत्तराखंड में प्रेक्टिस करने की अवधि, कार्य स्थलों का परीक्षण और मौजूदा क्लीनिक की जांच की जाएगी। कमेटी यूपी और उत्तराखंड सरकार को इस बारे में अपनी रिपोर्ट देगी। कमेटी सदस्य जेएन नौटियाल के मुताबिक मानकों पर खरा नहीं उतरने वालों का उत्तराखंड में रजिस्ट्रेशन संभव नहीं होगा(सत्येंद्र पांडेय, दैनिक जागरण,देहरादून,७.११.२०१०)।
ये जांच बहुत जरूरी थी। फर्जी डाक्टर्स की भीड़ छंटनी ही चाहिए।
जवाब देंहटाएंझोला छाप डॉक्टरों का सफाया करने के लिए सरकार क़ो सख्त कदम उठाने पड़ेंगे ।
जवाब देंहटाएंअभी तक तो इंतजार ही है ।