ठंड के दिनों में सर्द तेज हवा और तेज धूप से त्वचा को बचना जरूरी होता है। अगर तेज सर्द हवा से हम त्वचा को बचाने में नाकाम रहते हैं तो इसकी पहली परत यानी एपिडर्मिस पर असर पड़ता। एपिडर्मिस में असर से कोशिकाएं टूटने लगती हैं तो त्वचा में झुर्रियां पड़ने लगती हैं। दूसरी ओर जाड़े में तेज धूप सनबर्न पैदा कर सकती है और त्वचा में एलर्जी हो सकती है। इसलिए.. - सर्द हवा के असर को कम करने के लिए अपनी त्वचा के मुताबिक कोल्ड क्रीम और माइश्चराइजर इस्तेमाल करें। - एंटी रिंकल क्रीम का इस्तेमाल करें और फेशियल करें। - चेहरे व शरीर पर विटमिन ई से युक्त क्रीम लगाएं। - एक्सफोलिएशन कराएं। कंडीशनिंग कराना न भूलें। - चेहरे को हलके हाथों से साफ करें। सर्दियों में त्वचा के मृत कोशों को हटाने के लिए तेज स्क्रब न करें। - अंडा एक अच्छा फेस मास्क है। इससे त्वचा में प्रोटीन जाता है और यह त्वचा में कसाव लाने में मदद करता है।
धूप से बचाव के तरीके - पंद्रह या इससे ज्यादा एसपीएफ वाली सनस्क्रीन क्रीम लगा कर निकलें। यह सूर्य की रोशनी से पैदा करने वाली पराबैंगनी किरणों को रोक सकती हैं। - होठों पर अच्छे किस्म का सनब्लॉक लगाएं। यह 20 या ज्यादा एसपीएफ का होना चाहिए। - धूप का चश्मा पहनें और लंबी आस्तीनों वाली कमीज।
सर्दी-जुकाम आम सर्दी को मेडिकल की भाषा में वायरल राइनाइटिस कहते हैं। सर्दी-जुकाम किसी भी मौसम में हो सकता है, लेकिन जाड़ों में इसका प्रकोप कुछ ज्यादा ही होता है। दरअसल, जुकाम या सर्दी ऊपरी सांस संक्रमण है। सर्दी-जुकाम के लिए 200 तरह के वायरसजिम्मेदार होते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा जिम्मेदार राइनोवायरस होते हैं। आम जुकाम एक सप्ताह में ठीक हो जाता है, लेकिन अगर यह ज्यादा खिंचता है तो कान, फेफड़ों या साइनस में बैक्टीरियाजनित संक्रमण हो सकता है। अगर आपको इसकी वजह से कान दर्द, साइनस, बदन में अकड़न, सांस लेने में तकलीफ या घरघराहट महसूस हो या तेज बुखार हो तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।
फूड-एलर्जी जाड़े में अंडे, दूध और मूंगफली आदि का इस्तेमाल बढ़ जाता है, लेकिन कुछ लोगों को इनसे एलर्जी हो सकती है। कुछ खास फलों से भी एलर्जी हो सकती है। एलर्जी से उल्टी आ सकती है। पेट दर्द, चेहरे और आंखों में सूजन डायरिया के लक्षण हो सकते हैं और खाना निगलने में तकलीफ जैसे लक्षण भी दिखते हैं। शरीर में खुजलाहट और मतली की समस्या भी हो सकती है। ऐसी स्थिति में डॉक्टर के पास जाएं और एलर्जी टेस्ट कराएं। जिन चीजों से एलर्जी हो उनका इस्तेमाल तुरंत बंद करें। फूड एलर्जी से एनाफाइलेक्सिस हो सकता है जो जानलेवा भी सकता है। जाड़ों में निकलने वाली चटख धूप से स्कीन एलर्जी हो सकती है। धूप से त्वचा जल जाती है। जाड़ों में सूरज की धूप से शरीर के खुले अंगों मसलन गर्दन, पीठ, हथेलियों के पीछे और हाथ में दाने हो सकते हैं। धूप पड़ते ही उसमें खुजली, जलन होने लगती है। यह सौरकिरणों से एलर्जी होती है जिसे फोटोएलर्जिक लक्षण कहते हैं। कई बार यह एलर्जी सनस्क्रीन, कॉस्मेटिक या डियोड्रेंट जैसे अन्य प्रसाधन सामग्री में मौजूद रसायनों से सूरज की रोशनी की प्रतिक्रिया के दौरान पैदा हो सकती है। गर्भनिरोधक गोलियों, उच्च रक्तचाप की दवा, हृदयाघात रोकने वाली दवा या मानसिक बीमारियों के लिए दवा का इस्तेमाल कर रहे लोगों को इस एलर्जी होने की संभावना रहती है। इन दवाओं का इस्तेमाल करने वाले धूप में निकलने से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
ऑस्टिओ आर्थराइटिस ऑस्टिओ आर्थराइटिस बुढ़ापे की गठिया है, जो जोड़ों की उम्र भर की टूट-फूट से उपजती है। कूल्हे, घुटने और रीढ़ में इसका खास असर होता है। हाथ की अंगुलियां भी इससे प्रभावित होती हैं। पुराने हड्डी रोग, चोट, संक्रमण, जन्मजात विकार और मोटापे से यह पैदा हो सकती है। इससे ग्रसित लोगों की तकलीफ जाड़े में काफी बढ़ जाती है। जोड़ों में दर्द, उनका कमजोर पड़ना, मांसपेशियां कमजोर होना और उनका अपने स्थान से खिसक जाना इस रोग के लक्षण हैं। जब ऑस्टियो आर्थराइटिस का दर्द या सूजन उभरे तो दवाएं राहत दे सकती हैं। जोड़ों में सेंक भी दर्द और सूजन को कम करता है। कुछ लोगों को बर्फ की सिंकाई से भी आराम मिलता है। जोड़ों की ताकत लौटाने और मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए खास व्यायाम की भी जरूरत पड़ती है। फिजियोथेरेपी से भी इसे काफी हद तक काबू किया जाता है। ज्यादा खराब जोड़ों को सुधारने या बदलने के लिए ऑपरेशन होते हैं। गठिया ऑस्टियो ऑर्थराइटिस का सबसे आम रूप है।
ब्रोंकिअल अस्थमा ब्रोंकिअल अस्थमा को दमा भी कहते हैं। इसमें श्वास नली सिकुड़ जाती है। यह सिकुड़न अस्थायी होती है, पर जब तक यह सिकुड़न रहती है तब तक सांस लेना कठिन रहता है। ठंड के दिनों में इसका ज्यादा असर दिखता है। दरअसल, इन दिनों प्रदूषण के कारण हवा में नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइक्साइड बढ़ जाती है। खर-पतवार, पेड़-पौधों को पराग कण, पालतू जीव-जंतुओं की झड़ी हुई खाल जैसी चीजें दमा के लगभग एक-तिहाई मामलों में इसके पैदा होने की वजह बन सकती हैं। केक-बिस्कुट और बेकरी की दूसरी चीजें, अचार, जैम, सॉस और कई डिब्बाबंद चीजों में डाले जाने वाले प्रिजरवेटिव भी इसे उकसा सकते हैं। कुछ दवाएं और खानपान में इस्तेमाल होने वाले रसायन भी इसका कारण बनते हैं। आजकल इनहेलर प्रयोग करने की सलाह दी जाती है। इसके कई लाभ हैं। इससे दवा तुरंत श्वास नलियों में पहुंचती है और कोई साइड इफैक्ट भी नहीं होता।
क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस क्रॉनिक ब्रोकाइंटिस सांस की नली की सूजन है। इससे फेफड़े में बलगम पैदा होती है। बार-बार खांसी आती है और सांस लेने या छोड़ने में तकलीफ होती है। दम फूलने लगता है और घरघराहट होने लगती है। यह बीमारी जाड़े के दिनों में खतरनाक हो जाती है। ज्यादातर मामलों में क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस पचास वर्ष की आयु के आसपास होती है। धूल, धुएं, सिगरेट, बीड़ी से इसके पीड़ितों को तकलीफ होती है। अगर ब्रोंकाइटिस की वजह से खांसी आती है तो ठंड के दिनों में कमरे को गर्म रखें। गरम तरल पदार्थ लें। भाप लें जिससे बलगम तरल होकर निकल जाए। ऑक्सीजन देकर डॉक्टर इसे काबू में लाते हैं। ब्रोंकोडाइलेटर जैसी दवाओं से इसका प्रभाव कम होता। श्वास संबंधी योग क्रियाओं से लाभ मिलता है।
(अनुजा भट्ट,हिंदुस्तान,दिल्ली,16.11.2010)
धूप से बचाव के तरीके - पंद्रह या इससे ज्यादा एसपीएफ वाली सनस्क्रीन क्रीम लगा कर निकलें। यह सूर्य की रोशनी से पैदा करने वाली पराबैंगनी किरणों को रोक सकती हैं। - होठों पर अच्छे किस्म का सनब्लॉक लगाएं। यह 20 या ज्यादा एसपीएफ का होना चाहिए। - धूप का चश्मा पहनें और लंबी आस्तीनों वाली कमीज।
सर्दी-जुकाम आम सर्दी को मेडिकल की भाषा में वायरल राइनाइटिस कहते हैं। सर्दी-जुकाम किसी भी मौसम में हो सकता है, लेकिन जाड़ों में इसका प्रकोप कुछ ज्यादा ही होता है। दरअसल, जुकाम या सर्दी ऊपरी सांस संक्रमण है। सर्दी-जुकाम के लिए 200 तरह के वायरसजिम्मेदार होते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा जिम्मेदार राइनोवायरस होते हैं। आम जुकाम एक सप्ताह में ठीक हो जाता है, लेकिन अगर यह ज्यादा खिंचता है तो कान, फेफड़ों या साइनस में बैक्टीरियाजनित संक्रमण हो सकता है। अगर आपको इसकी वजह से कान दर्द, साइनस, बदन में अकड़न, सांस लेने में तकलीफ या घरघराहट महसूस हो या तेज बुखार हो तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।
फूड-एलर्जी जाड़े में अंडे, दूध और मूंगफली आदि का इस्तेमाल बढ़ जाता है, लेकिन कुछ लोगों को इनसे एलर्जी हो सकती है। कुछ खास फलों से भी एलर्जी हो सकती है। एलर्जी से उल्टी आ सकती है। पेट दर्द, चेहरे और आंखों में सूजन डायरिया के लक्षण हो सकते हैं और खाना निगलने में तकलीफ जैसे लक्षण भी दिखते हैं। शरीर में खुजलाहट और मतली की समस्या भी हो सकती है। ऐसी स्थिति में डॉक्टर के पास जाएं और एलर्जी टेस्ट कराएं। जिन चीजों से एलर्जी हो उनका इस्तेमाल तुरंत बंद करें। फूड एलर्जी से एनाफाइलेक्सिस हो सकता है जो जानलेवा भी सकता है। जाड़ों में निकलने वाली चटख धूप से स्कीन एलर्जी हो सकती है। धूप से त्वचा जल जाती है। जाड़ों में सूरज की धूप से शरीर के खुले अंगों मसलन गर्दन, पीठ, हथेलियों के पीछे और हाथ में दाने हो सकते हैं। धूप पड़ते ही उसमें खुजली, जलन होने लगती है। यह सौरकिरणों से एलर्जी होती है जिसे फोटोएलर्जिक लक्षण कहते हैं। कई बार यह एलर्जी सनस्क्रीन, कॉस्मेटिक या डियोड्रेंट जैसे अन्य प्रसाधन सामग्री में मौजूद रसायनों से सूरज की रोशनी की प्रतिक्रिया के दौरान पैदा हो सकती है। गर्भनिरोधक गोलियों, उच्च रक्तचाप की दवा, हृदयाघात रोकने वाली दवा या मानसिक बीमारियों के लिए दवा का इस्तेमाल कर रहे लोगों को इस एलर्जी होने की संभावना रहती है। इन दवाओं का इस्तेमाल करने वाले धूप में निकलने से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
ऑस्टिओ आर्थराइटिस ऑस्टिओ आर्थराइटिस बुढ़ापे की गठिया है, जो जोड़ों की उम्र भर की टूट-फूट से उपजती है। कूल्हे, घुटने और रीढ़ में इसका खास असर होता है। हाथ की अंगुलियां भी इससे प्रभावित होती हैं। पुराने हड्डी रोग, चोट, संक्रमण, जन्मजात विकार और मोटापे से यह पैदा हो सकती है। इससे ग्रसित लोगों की तकलीफ जाड़े में काफी बढ़ जाती है। जोड़ों में दर्द, उनका कमजोर पड़ना, मांसपेशियां कमजोर होना और उनका अपने स्थान से खिसक जाना इस रोग के लक्षण हैं। जब ऑस्टियो आर्थराइटिस का दर्द या सूजन उभरे तो दवाएं राहत दे सकती हैं। जोड़ों में सेंक भी दर्द और सूजन को कम करता है। कुछ लोगों को बर्फ की सिंकाई से भी आराम मिलता है। जोड़ों की ताकत लौटाने और मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए खास व्यायाम की भी जरूरत पड़ती है। फिजियोथेरेपी से भी इसे काफी हद तक काबू किया जाता है। ज्यादा खराब जोड़ों को सुधारने या बदलने के लिए ऑपरेशन होते हैं। गठिया ऑस्टियो ऑर्थराइटिस का सबसे आम रूप है।
ब्रोंकिअल अस्थमा ब्रोंकिअल अस्थमा को दमा भी कहते हैं। इसमें श्वास नली सिकुड़ जाती है। यह सिकुड़न अस्थायी होती है, पर जब तक यह सिकुड़न रहती है तब तक सांस लेना कठिन रहता है। ठंड के दिनों में इसका ज्यादा असर दिखता है। दरअसल, इन दिनों प्रदूषण के कारण हवा में नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइक्साइड बढ़ जाती है। खर-पतवार, पेड़-पौधों को पराग कण, पालतू जीव-जंतुओं की झड़ी हुई खाल जैसी चीजें दमा के लगभग एक-तिहाई मामलों में इसके पैदा होने की वजह बन सकती हैं। केक-बिस्कुट और बेकरी की दूसरी चीजें, अचार, जैम, सॉस और कई डिब्बाबंद चीजों में डाले जाने वाले प्रिजरवेटिव भी इसे उकसा सकते हैं। कुछ दवाएं और खानपान में इस्तेमाल होने वाले रसायन भी इसका कारण बनते हैं। आजकल इनहेलर प्रयोग करने की सलाह दी जाती है। इसके कई लाभ हैं। इससे दवा तुरंत श्वास नलियों में पहुंचती है और कोई साइड इफैक्ट भी नहीं होता।
क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस क्रॉनिक ब्रोकाइंटिस सांस की नली की सूजन है। इससे फेफड़े में बलगम पैदा होती है। बार-बार खांसी आती है और सांस लेने या छोड़ने में तकलीफ होती है। दम फूलने लगता है और घरघराहट होने लगती है। यह बीमारी जाड़े के दिनों में खतरनाक हो जाती है। ज्यादातर मामलों में क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस पचास वर्ष की आयु के आसपास होती है। धूल, धुएं, सिगरेट, बीड़ी से इसके पीड़ितों को तकलीफ होती है। अगर ब्रोंकाइटिस की वजह से खांसी आती है तो ठंड के दिनों में कमरे को गर्म रखें। गरम तरल पदार्थ लें। भाप लें जिससे बलगम तरल होकर निकल जाए। ऑक्सीजन देकर डॉक्टर इसे काबू में लाते हैं। ब्रोंकोडाइलेटर जैसी दवाओं से इसका प्रभाव कम होता। श्वास संबंधी योग क्रियाओं से लाभ मिलता है।
(अनुजा भट्ट,हिंदुस्तान,दिल्ली,16.11.2010)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
एक से अधिक ब्लॉगों के स्वामी कृपया अपनी नई पोस्ट का लिंक छोड़ें।