सोमवार, 1 नवंबर 2010

बचपन में जो़ड़ों के दर्द से आगे विकलांगता

बचपन में घुटनों का दर्द या चलने में दिक्कत को नजरअंदाज करना घातक हो सकता है क्योंकि यह आगे जाकर अर्थराइटिस का रूप ले सकता है । विशेषज्ञों की मानें तो ऐसी स्थिति में तुरंत यूर्मेटॉलॉजिस्ट से सलाह लें ।
बच्चों की कुल आबादी में से करीब दो फीसदी बच्चे "जुवेनाइल अर्थराइटिस" के शिकार हैं लेकिन जानकारी के अभाव में ज्यादातर अभिभावक उनकी जो़ड़ों में दर्द, जलन और चलने में दिक्कत होने संबंधी शिकायत को नजरअंदाज कर जाते हैं, जिसका खामियाजा विकलांगता के रूप में भुगतना प़ड़ सकता है । देश में यूर्मेटॉलॉजिस्ट्स की कमी और बाल अर्थराइटिस के बारे में जागरूकता के अभाव के चलते मरीज आर्थोपेडिक सर्जन के पास चले जाते हैं जबकि बाल अर्थराइटिस का इलाज यूर्मेटोलॉजिस्ट ही कर सकता है । इंडियन स्पाइनल इंज्युरीज सेंटर में कन्सल्टेंट डॉ. ए. एन. मालवीय ने बताया कि देश भर में यूर्मेटोलॉजिस्ट्स की संख्या मुश्किल से १०० से १२० के आसपास है जो अर्थराइटिस का इलाज कर सकते हैं । बच्चों में अर्थराइटिस का इलाज करने वाले यूर्मेटोलॉजिस्ट की संख्या तो और भी कम है । उन्होंने बताया कि बीमारी की जानकारी और विशेषज्ञों के अभाव में लोगसमस्या होने पर अकसर अस्थिरोग विशेषज्ञ यानी आर्थोपेडिक सर्जन के पास चले जाते हैं । उन्हें पेनिसिलीन दे दी जाती है और कभी टीबी की दवा दे दी जाती है। जबकि समय रहते इलाज न होने पर बाल अर्थराइटिस से बच्चा विकलांग भी हो सकता है। यह बीमारी आम तौर पर १६साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करती है(नई दुनिया,दिल्ली,1.11.2010) ।

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