सोमवार, 1 नवंबर 2010

यूपीःबुखार का कहर, सोया प्रशासन

इस समय समूचा उत्तर प्रदेश बुखार की चपेट में है। उत्तराखंड, हरियाणा और मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों में भी बुखार अपना कहर बरपा रहा है। बुखार से मरने वालों की संख्या हजारों तक पहुंच गई है। अस्पतालों और निजी क्लीनिकों में बुखार पीड़ितों की लाइन खत्म होने का नाम नहीं ले रही। नामी-गिरामी डॉक्टर तो मरीजों को देखने के लिए तीन-चार दिन बाद का नंबर दे रहे हैं। अधिकांश मरीज डेंगू, वायरल बुखार और मलेरिया से पीडित हैं। डेंगू और वायरल बुखार में प्लेटलेट्स तेजी से कम हो रही हैं। यही कारण है कि जनता में प्लेटलेट्स को लेकर एक अजीब तरह का डर व्याप्त है। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि जनता के इस डर का फायदा कुछ डॉक्टर और पैथोलॉजी लैब के संचालक उठा रहे हैं। कुल मिलाकर मरीजों को दोहरे शोषण का शिकार होना पड रहा है और सरकार इस व्यवस्था को सुधारने में असहाय और लाचार नजर आ रही है। आयुर्वेद के अनुसार बुखार अपने आप में कोई रोग नहीं है, बल्कि यह शरीर के अस्वस्थ होने का संकेत है। लेकिन इस दौर में बदलती जीवन शैली के अनुरूप बुखार भी एक गंभीर बीमारी बन चुका है। कुछ लोग मीडिया में इसे रहस्यमयी बुखार के तौर पर प्रचारित-प्रसारित कर रहे हैं। ये लोग बुखार के माध्यम से अपनी दुकानदारी चलाना चाहते हैं। आज जब विज्ञान रोज जानकारी के नए द्वार खोल रहा है, तब रहस्यमयी बुखार की बात गले नहीं उतरती है। वैज्ञानिक अनुसंधानों और सूचना क्रांति के इस दौर में प्रत्येक बुखार का स्रोत ज्ञात है। ऐसे में, रहस्यमयी बुखार जैसे शब्द से समाज में अनावश्यक डर पैदा होता है। जाहिर है, इस तरह के बुखार के पीछे कोई रहस्य नहीं, बल्कि वैज्ञानिक आधार है। यही कारण है कि जो रोगी अंधविश्वास के चक्कर में न पड़कर धैर्य के साथ योग्य डॉक्टरों से इलाज करा रहे हैं, वे जल्दी सेहतमंद भी हो रहे हैं। इस बार बुखार के संक्रमण की तीव्रता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि सरकारी अस्पतालों में मरीजों को बेड तक उपलब्ध नहीं हो रहे। अनेक सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। नतीतजन कुछ जगहों पर डॉक्टरों और मरीजों के बीच झड़प होने की खबरें भी आ रही हैं, तो कहीं-कहीं मजबूरी में मरीज अपना बेड लेकर इलाज के लिए अस्पतालों में पहुंच रहे हैं। ऐसी स्थिति को देखते हुए भी सरकार हाथ पर हाथ धरकर बैठी हुई है। लगभग महामारी के रूप में फैलते जा रहे बुखार की तीव्रता को देखते हुए भी सरकारी अस्पतालों में अतिरिक्त इंतजाम नहीं किए गए, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान बचाई जा सके। हालांकि लूट-खसोट के इस माहौल में कुछ डॉक्टर अपने पेशे की गरिमा बचाए हुए हैं, लेकिन अधिकांश चिकित्सक मरीजों की मजबूरी का भरपूर फायदा उठा रहे हैं। इस पूरे तंत्र में अनेक परीक्षण केंद्रों के क्रियाकलाप भी संदिग्ध हैं। कहीं-कहीं पर पैथोलॉजिस्ट जान-बूझकर प्लेटलेट्स की संख्या कम बता रहे हैं। हालांकि वातावरणीय एवं जैविक कारणों से दो पैथोलॉजिस्ट की रिपोर्ट में अंतर होना सामान्य बात है, लेकिन जब जान-बूझकर ऐसे काम किए जाएं, तो नीयत पर सवाल उठना लाजिमी है और चिकित्सीय पेशा भी कलंकित होता है। अभी हाल में कुछ पैथालॉजी केंद्रों पर छापे मारने पर पाया गया कि वहां दसवीं पास लड़के परीक्षण कर रहे थे। जांच करने पर पता चला कि चार-चार पैथोलॉजी केंद्रों से एक ही पैथोलॉजिस्ट संबद्ध है। यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि चार-चार पैथोलाजी केंद्रों में परीक्षण करने के लिए एक पैथालॉजिस्ट को समय कैसे मिलता होगा? क्या यह मरीजों के जीवन के साथ खिलवाड़ नहीं है? दरअसल सरकार न तो मच्छर मारने के लिए कोई व्यापक कदम उठा रही है, न ही स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने के लिए कोई सार्थक पहल कर रही है। यही कारण है कि न ही तो फॉगिंग अभियान ठीक तरह से चल रहा है और न ही किसी को मरीजों की परेशानियों का एहसास है। पिछले दिनों केंद्र सरकार द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 16 फीसदी डॉक्टरों की कमी है, जबकि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी 68 फीसदी है। स्वास्थ्य जनता का मौलिक अधिकार है। ऐसे में सरकार चुपचाप बैठी नहीं रह सकती, उसे स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने के लिए गंभीर पहल करनी ही होगी(रोहित कौशिक,अमर उजाला,31.10.2010)।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

एक से अधिक ब्लॉगों के स्वामी कृपया अपनी नई पोस्ट का लिंक छोड़ें।