गुरुवार, 18 नवंबर 2010

प्रत्याहार

प्रत्याहार योग का पांचवां चरण है। पहले चार चरण यम, नियम, आसन और प्राणायाम हैं । योग मार्ग का साधक जब यम (मन के संयम), नियम (शारीरिक संयम) रखकर एक आसन में स्थिर बैठकर अपने वायु रूप प्राण पर नियंत्रण सीखता है, तब उसके विवेक को ढंकने वाले अज्ञान का अंत होता है। तब जाकर मन प्रत्याहार और धारणा के लिए तैयार होता है। सूक्ष्म साधना का सोपान- प्रत्याहारचेतना, शरीर और मन से ऊपर उठकर अपने स्वरूप में रुक जाने की स्थिति है प्रत्याहार। प्राणायाम तक योग साधना आंखों से दृष्टिगोचर होती है। प्रत्याहार से साधना का रूपांतरण होता है और साधना सूक्ष्मतर होकर मानसिक हो जाती है। प्रत्याहार का अर्थ है- एक और आहरण यानि खींचना। प्रश्न उठता है किसका खींचा जाना? मन का। योग दर्शन के अनुसार मन इंद्रियों के माध्यम से जगत के भोगों के पीछे दौड़ता है। बहिर्गति को रोक उसे इंद्रियों के अधीन से मुक्त करना, भीतर की ओर खींचना प्रत्याहार है। मन का प्रशिक्षण
मन क्या है? यह विचारों, कल्पनाओ,अनुभवों और इच्छाओं का समूह है। सामान्यत: हम अपना जीवन इसी स्तर पर जीते हैं। विचारों के परे अस्तित्व की हमें खबर भी नहीं होती। प्राणायाम से जब हम स्थिर होते हैं, तब स्थिर हुए चंचल मन को उसके रूप में स्थित करने का कार्य प्रत्याहार में होता है। अपने मूल स्वरूप को प्राप्त होने से मन का बाह्यï ज्ञान नहीं रह जाता। योग दर्शन में उल्लेख है-तत: परमा वश्यतेन्द्रियाणाम्। -2/55अर्थात् उस प्रत्याहार से इंद्रियां पूरी तरह से वश में हो जाती हैं। प्रत्याहार की साधना का मार्ग
स्वामी विवेकानंद ने प्रत्याहार की साधना का सरल मार्ग बताया है। वे कहते हैं मन को संयत करने के लिए--कुछ समय चुपचाप बैठें और मन को उसके अनुसार चलने दें।-मन में विचारों की हलचल होगी, बुरी भावनाएं प्रकट होंगी। सोए संस्कार जाग्रत होंगे। उनसे विचलित न होकर उन्हें देखते रहें।-धैर्यपूर्वक अपना अभ्यास करते रहें।-धीरे-धीरे मन के विकार कम होंगे और एक दिन मन स्थिर हो जाएगा तथा उसका इंद्रियों से संबंध टूट जाएगा(सुशील शर्मा,दैनिक भास्कर,उज्जैन,23.1.2010)।

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