राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के मुताबिक अगर कोई डॉक्टर मरीज से अपनी डिग्री के बारे में झूठी जानकारी देकर उसका इलाज करता है तो इलाज में होने वाली गड़बड़ी के लिए उसके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है। आयोग के मुताबिक डॉक्टर का यह कृत्य गलत व्यापारिक प्रक्रिया के अंतर्गत माना जाएगा। मामले के मुताबिक मेरठ निवासी सुरेंद्र कुमार त्यागी ने वहां के एक स्थानीय डॉक्टर एसके शर्मा के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई कि उसने यह कहकर कि वह एमएस है,ऑपरेशन किया और इससे उनकी एक किडनी हमेशा के लिए खराब हो गई। जब यह मामला आयोग पहुंचा तो इसके निर्णय में कहा गया कि सर्जरी की मास्टर डिग्री न होने के बावजूद डॉक्टर ने मरीज का ऑपरेशन किया। इससे यह साबित हुआ कि उसने मरीज से झूठ बोलकर ऐसा किया और साथ मेडिकल प्रैक्टिस के एथिक्स के खिलाफ भी अपने फायदे के लिए गलत कार्य किया। शर्मा ने सर्जरी में स्नातकोत्तर डिग्रीधारी होने का दावा कर त्यागी का ऑपरेशन किया था। एनसीडीआरसी की पीठ ने कहा, हालांकि डॉक्टर ने खुद के एमएस (मास्टर इन सर्जरी) होने का दावा किया लेकिन वह उस योग्य नहीं था। यह साफ तौर पर अपनी डिग्री और अनुभव को लेकर शिकायतकर्ता को बहकाने वाली बात थी। फैसले के अनुसार, यह सेवा में लापरवाही का मामला है। हम कह सकते हैं कि यह चिकित्सकीय व्यवसाय का गलत इस्तेमाल था। त्यागी के तर्क और उत्तर प्रदेश राज्य उपभोक्ता आयोग के निष्कर्ष से राष्ट्रीय आयोग ने सहमति जताई।इस कृत्य के लिए आयोग ने डॉक्टर को मरीज को मुआवजे के तौर पर ढाई लाख रुपए देने को कहा(दैनिक जागरण और नई दुनिया,दिल्ली,8.11.2010)।
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