डॉक्टरों को दूसरा भगवान कहा जाता है, क्योंकि मरीजों को स्वस्थ करने की जिम्मेदारी इन्हीं पर होती है, लेकिन इसमें नर्स की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता है। देखा जाए तो मरीजों की तीमारदारी के मामले में कई स्तरों पर डॉक्टरों से ज्यादा अहम भूमिका नर्से निभाती हैं। यही कारण है कि जरूरत के हिसाब से नर्सो की संख्या काफी कम होना न केवल स्वास्थ्य सेवाओं के सुचारू रूप से चलने में बाधक है, बल्कि यह स्थिति कई बार संसाधनों की उपलब्धता को भी बेमानी कर देती है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में नर्सो की महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद इस समय दुनिया के कई देशों में प्रशिक्षित नर्सो की भारी कमी है। यह कमी इतनी गंभीर रूप धारण कर चुकी है कि उससे स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित होने लगी हैं। विकसित देशों में नर्सो की कमी के कई कारण हैं। जैसे, नर्सिग कॉलेजों में कम प्रवेश, नर्सो की बढ़ती उम्र और सबसे बढ़कर वैकल्पिक रोजगार के नए आकर्षक क्षेत्र। इन देशों में नर्सो की कमी ने इन्हें विदेश की प्रशिक्षित नर्सो पर निर्भर बना दिया है। विकसित देश अपने यहां की नर्सो की कमी को अन्य देशों से बुलाकर पूरा कर लेते हैं। उन्हें वहां पर अच्छा वेतन और सुविधाएं देते हैं। दूसरी ओर विकासशील देशों में नर्सो को अधिक वेतन और सुविधाओं की कमी रहती है। यही कारण है कि यहां की नर्से विदेश जाने के ऑफरों को ठुकरा नहीं पाती हैं। विश्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि अच्छे वेतनमान और सुविधाओं के लालच में आज भी विकासशील देशों से बड़ी संख्या में नर्से विकसित देशों में नौकरी के लिए जाती हैं। इससे विकासशील देशों को प्रशिक्षित नर्सो की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। चिकित्सा की आधुनिक पद्धतियों और नित नए उपकरणों के आने से प्रशिक्षित नर्सो की जरूरत बढ़ती जा रही है। नई और संक्रामक बीमारियों के फैलाव, पुरानी बीमारियों के जटिल रूप लेने और ऊंची मातृत्व तथा शिशु मृत्यु दर ने स्वास्थ्य को प्रमुख एजेंडा बना दिया है। फिर रोगियों की संख्या में लगातार इजाफा होने से रोगी और नर्स के अनुपात में अंतर बढ़ा है। यह समस्या विकासशील देशों में अधिक गंभीर है। भारतीय संदर्भ में देखें तो तेजी से खुल रही वाकहार्ट, अपोलो, फोर्टिस जैसे अस्पतालों की चेन और भारत के मेडिकल टूरिज्म हब के रूप में उभरने के कारण नर्सो की मांग में तेजी आई है। दरअसल, भारत की विश्वस्तरीय मेडिकल सुविधाएं बाकी देशों की तुलना में बेहद सस्ते में उपलब्ध हैं। सस्ते इलाज और अत्याधुनिक तकनीक के बूते अपने एशियाई प्रतिद्वंद्वी देशों सिंगापुर, थाईलैंड और मलेशिया को इस क्षेत्र में भारत ने कड़ी टक्कर दी है। यही कारण है कि प्रवासी भारतीय और विदेशी मरीज सस्ता इलाज कराने के लिए भारत आ रहे हैं। पिछले एक साल की अवधि में करीब पांच लाख मरीज यहां इलाज कराने के लिए आए। योजना आयोग के दस्ताावेजों के मुताबिक पांच मरीजों पर एक नर्स का होना आदर्श स्थिति है। इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के हिसाब से एक डॉक्टर पर तीन नर्स होनी चाहिए, लेकिन भारत में यह आंकड़ा तीन डॉक्टर पर दो नर्स का है। स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अनुमान के अनुसार, 11वीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) तक भारत में 10.43 लाख के करीब नर्सो की जरूरत होगी, लेकिन जिस तरह का मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर है, उसे देखते हुए मात्र 6.84 लाख नर्स ही उपलब्ध हो पाएंगी और 3.59 लाख नर्सो की कमी महसूस की जाएगी। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि अधिकांश नर्से शहरी क्षेत्रों में कार्यरत हैं, जबकि प्रसव, माता व शिशु स्वास्थ्य की सबसे गंभीर समस्या गांवों में है। गांवों में ऊंची मातृत्व और शिशु मृत्यु दर का कारण भी यही है। योजना आयोग के सदस्य अनवारूल होदा की अध्यक्षता में बनी समिति ने बताया कि चिकित्सकों, नर्सो और पैरा मेडिकल कर्मचारियों की कमी चिकित्सा क्षेत्र की दयनीय दशा के लिए जिम्मेदार है। दरअसल, देश में नर्सो की कमी का मुख्य कारण नर्सिग के पाठ्यक्त्रम में दाखिले के लिए तय की गई न्यूनतम 17 और अधिकतम 21 साल की उम्र सीमा रही है। दूसरे इस पाठ्यक्त्रम में अभी तक विवाहित महिलाओं को दाखिला नहीं मिलता था। ये दो शर्ते बहुत सारी महिलाओं को इस पेशे से दूर रहने के लिए मजबूर करती रही हैं(रमेश दुबे,दैनिक जागरण,23.10.2010)।
शर्तें तो अपनी जगह सही है । लेकिन नर्सिंग स्कूलों में सीट्स और बढ़नी चाहिए । अभी भी कितनी ही लड़कियां दाखिला लेना चाहती हैं लेकिन सीट्स कम होने से वंचित रह जाती हैं ।
जवाब देंहटाएंसही मुद्दा है विचार करने के लिए ।