सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

कश्मीरियों को मनोरोगी बना रही हिंसा

जुनैद (17) बात-बात पर झगड़े पर उतर आता है। अब उसे न रेयन स्टार का आडियो-वीडियो पसंद है और न दोस्तों के साथ मोटरसाइकिल पर डल झील के किनारे सैर करना। उसके पिता डॉ. तंजील उसकी इस हालत से परेशान हैं। लेकिन न जुनैद अकेला है और न ही डॉ. तंजील जो कश्मीर में इस स्थिति से अकेले गुजर रहे हैं। गत चार माह से जारी अलगाववादियों द्वारा प्रायोजित लगातार बंद, हिंसक प्रदर्शनों ने अगर कश्मीर को आर्थिक नुकसान के बाद सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है तो वह युवा पीढ़ी है। बड़ी संख्या में किशोर और व्यस्क अति अवसाद का शिकार होने लगे हैं। राजकीय मनोरोग अस्पताल रैनावारी और मनोरोग विशेषज्ञों व मनोचिकित्सकों के पास मनोरोगियों की तादाद भी लगातार बढ़ने लगी है। कई रोगियों को न दिन का पता है न तिथि का। उनके लिए सोमवार, मंगलवार या अन्य कोई दिन महत्व नहीं रखता। कई तो बात-बात पर हिंसक हो उठते हैं। हालांकि अधिकारिक तौर पर कोई इन मरीजों की संख्या की पुष्टि नहीं करता, लेकिन सिर्फ श्रीनगर शहर में ही एक नामी मनोरोग विशेषज्ञ ने गत एक माह में करीब एक हजार नए मरीजों का उपचार शुरू किया है। कश्मीर के प्रसिद्ध मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. मुश्ताक मरगूब ने दैनिक जागरण के साथ इस संदर्भ में बात करते हुए कहा कि साइकोलॉजिस्ट डिसआर्डर अब एक महामारी बनता जा रहा है। 1990 के दशक के दौरान उनके पास एनजायटी के मरीज ज्यादा आते थे, जिनकी संख्या वर्ष 2000 के बाद घटती गई। लेकिन गत दो माह से उनके पास अति अवसादी और सवेयर डिप्रेशन के मरीज आ रहे हैं। इनमें नकारात्मक और हिंसक मानसिकता बढ़ी है और ये किसी से बातचीत करना पसंद नहीं करते। उनके पास आने वाले ऐसे मरीजों में ज्यादातर की आयु 16 से 25 साल के बीच है। डॉ. अरशद हुसैन के मुताबिक उन्होंने अपने पास आने वाले मरीजों के केस स्टडी के बाद पाया कि उनमें मेंटल डिसआर्डर जून माह में शुरू हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद ही बढ़ा है। लगातार घर में बंद रहने, न स्कूल जाना और न कार्यालय में जाना, बाजार भी नहीं जा पाने के कारण अधिकांश लोगों के लिए दिनों के नाम बेमतलब हो गए हैं। इसके अलावा लगातार हिंसक प्रदर्शन, उसके बाद कभी पत्थरबाजों द्वारा जुलूस में शामिल होने का दवाब तो कभी पुलिस द्वारा पकड़े जाने का डर(नवीन नवाज़,दैनिक जागरण,श्रीनगर,18.10.2010)।

2 टिप्‍पणियां:

  1. मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है लेकिन इस देश की सरकार में ज्यादातर असामाजिक लोगों के उच्च पदों पर होने की वजह से हर सरकारी प्रयास लोगों को असामाजिक बनाने की दिशा की और जाती दिखाई दे रही है ...घोर स्वार्थ की अवस्था है ,जनहित तो मानों ख़त्म ही हो चुका है सरकारी नीतियों और प्रयासों से ....

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  2. स्थिति गंभीर है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
    उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़!

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