देश में मलेरिया के बढ़ते प्रकोप के बारे में एक नई रिपोर्ट आई है। मेडिकल जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में मलेरिया से हर साल दो लाख लोग मरते हैं। यह आंकड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकलन (15 हजार मौतें) से 13 गुना और खुद हमारे नैशनल मलेरिया कंट्रोल प्रोग्राम के अनुमान (औसतन एक हजार मौतें) से 200 गुना ज्यादा है। इस हिसाब से मलेरिया हमारे लिए किसी महामारी से कम नहीं है। लैंसेट के शोधकर्ताओं ने आंकड़ों में इतने बड़े फर्क की वजह इस बीमारी से घरों में हो जाने वाली मौतों को न गिना जाना बताया है।
मच्छर काटने की वजह से होने वाली डेंगू, चिकुनगुनिया, मस्तिष्क ज्वर आदि बीमारियों की जैसी खबरें इधर कुछ सालों में आई हैं, उन्हें देखते हुए मलेरिया पर नए दावे को खारिज करना आसान नहीं है। सवाल यह है कि इलाज आसान होने के बावजूद देश में मलेरिया की स्थिति इतनी गंभीर क्यों है? इसके पीछे दवाओं के बेअसर होने, बीमारी की अनदेखी करने और देश में सामुदायिक चिकित्सा की उचित व्यवस्था नहीं होने जैसे कई कारण हैं। पिछले दिनों खबर आई थी कि मलेरिया की सबसे कारगर दवा आर्टेमिसिनिन के खिलाफ मच्छरों में प्रतिरोधी क्षमता विकसित हो गई है। क्लोरोक्विन और सल्फाडॉक्सीन आदि दवाएं पहले ही कमजोर पड़ गई थीं। दूसरी समस्या यह है कि मलेरिया में अक्सर लोग घरेलू इलाज आजमाते हैं या फिर घर पर ही बुखार-सिरदर्द की आम दवाएं मरीज को दे दी जाती हैं। गांव-देहात में तो समय से इस बात की जांच भी नहीं हो पाती कि बुखार की वजह कहीं मलेरिया तो नहीं। देश में सामुदायिक चिकित्सा का उचित प्रबंध न होने का आशय यह है कि सरकार और प्रशासन के स्तर पर मच्छरों, पिस्सुओं आदि से होने वाली बीमारियों की रोकथाम या बचाव का कोई प्रयास नहीं किया जाता।
अखबार में खबर छप जाने पर जब-तब फॉगिंग की रस्म अदायगी जरूर कर दी जाती है, लेकिन यह खानापूरी मच्छरों पर कोई स्थायी असर नहीं छोड़ पाती। विदेशी मदद से चलने वाले एंटी पोलियो कैंपेन के तहत लगभग हर महीने घर-घर जाकर पोलियो ड्रॉप पिलाने की व्यवस्था करने वाली सरकार ने मच्छरों से पैदा होने वाली बीमारियों से जूझने का जिम्मा लोगों पर ही छोड़ रखा है। चिकित्सा सेवाओं के निजीकरण के इस दौर में गरीब और मध्य वर्ग कहां जाए, जिसके लिए अब लगभग सभी अस्पतालों के दरवाजे बंद रहने लगे हैं। बिल गेट्स फाउंडेशन का कहना है कि स्मॉलपॉक्स की तरह दुनिया मलेरिया से भी हमेशा के लिए छुटकारा पा सकती है, लेकिन हमारे देश में जिस तरह महामारी बनते मलेरिया की अनदेखी की जा रही है, उसमें फिलहाल इससे कोई राहत मिलती नजर नहीं आती। नई रिपोर्ट को अपने आंकड़ों से झुठलाने की बजाय सरकार इसे एक चेतावनी की तरह ले और डेंगू-मलेरिया के खिलाफ एक बड़ा अभियान छेड़े(संपादकीय,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,22.10.2010)।
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