शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

डाइटिंग और भोंदापन

नया शोध कहता है कि भूखे रहने का मतलब दिमाग को कमजोर बनाना है। इस शोध के अनुसार अगर आपने अपने भोजन में से महत्वपूर्ण तत्व कार्बोहाइड्रेट यानी रोटी, चावल, शकर, आलू, बीन्स या फलियाँ, सीरियल्स या अनाजों को शामिल नहीं किया तो आपकी बुद्धि का बेड़ा गर्क होना तय है। शोध के अनुसार इसलिए ही ज्यादातर मॉडल्स दिमाग से पैदल दिखाई देती हैं। यह सच है कि बहुत ज्यादा मात्रा में खाई गई कोई भी चीज़ अंततः आपको नुकसान ही पहुँचाएगी लेकिन चाहे कार्बोहाइड्रेट हो या फिर फैट्स, आपके भोजन में हर चीज़ का बैलेंस होना बहुत जरूरी है। यह आपके शरीर की बेसिक माँग है। अगर आपने वजन कम करने या डायटिंग के चक्कर में इसकी अनदेखी की तो गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। चिकित्सक कहते हैं कि अक्सर किशोरियाँ और युवतियाँ वजन कम करने के लिए सबसे पहले साधारण भोजन को छोड़ देती हैं जो सबसे ज्यादा नुकसानदायक बन जाता है। रोटी-सब्जी-दाल-चावल वाला सादा भोजन सबसे ज्यादा पौष्टिक है अगर सही तरीके और संतुलन के साथ लिया जाए तो।
वजन कम करने के लिए आप रोटी-चावल जैसे पदार्थों की मात्रा कम कर सकती हैं और दही, फल, सलाद की मात्रा बढ़ा सकती हैं और जंक फूड, मैदा, मिठाई आदि को नजरअंदाज कर सकती हैं। असल में कार्बोहाइड्रेट पर नियंत्रण से आपकी कमर तो पतली हो सकती है लेकिन यही असर आपके मस्तिष्क पर भी होगा। क्योंकि कार्बोहाइड्रेट वो एकमात्र ईंधन हैं जो दिमाग को दौड़ाने में मदद करते हैं। मस्तिष्क की कोशिकाएँ कार्ब्स में पाए जाने वाले ग्लूकोज़ को ही एकमात्र ऊर्जा के स्रोत के रूप में उपयोग में लाती हैं। मस्तिष्क के न्यूरॉन्स ग्लूकोज को संग्रहीत करके नहीं रख सकते। लिहाजा वे इसके लिए लगातार शरीर में होने वाले रक्तप्रवाह पर निर्भर करते हैं और जाहिर है कि इसके लिए नियमित रूप से रक्त को ग्लूकोज की सप्लाई होते रहना चाहिए। मतलब आपके भोजन में कार्ब्स की सप्लाई भी नियमित होती रहना चाहिए। जहाँ आप चूके कि मस्तिष्क के काम करने की गति भी धीमी हुई। इससे याददाश्त, सीखने की क्षमता तथा किसी चीज़ को समझने की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे मस्तिष्क द्वारा शरीर के दूसरे अंगों को जाने वाले संदेश भी प्रभावित होते हैं और शरीर में बनने वाले कुछ प्रमुख हार्मोन्स के निर्माण में भी दिक्कत आने लगती है। नतीजा आप चिड़चिड़ापन, बालों का गिरना, लो बल्डप्रेशर, थकान, अनिंद्रा, डिप्रेशन तथा माँसपेशियों के दर्द से पीड़ित हो सकती हैं। विशेषज्ञों ने बाकायदा शोध करके इस बात का पता लगाया कि अधिकांश मॉडल्स या वे युवतियाँ जो ग्लैमर जगत से जुड़ी हैं और छरहरी बने रहने के चक्कर में कार्बोहाइड्रेट्स को जिंदगी से एकदम "आउट" कर देती हैं, उनके दिमाग पर इसका कैसा और क्या असर पड़ता है। वैसे यह कोई नई बात नहीं पूरी दुनिया में लोग इस धारणा को मन के कोने में रखकर चलते हैं कि मॉडल्स भोंदू होती हैं। ९५ प्रतिशत ऐसी युवतियाँ अपने भोजन में से रोटी, अनाज, चावल और ब्रेड जैसे खाद्यों को भुला चुकी होती हैं। भूख लगने पर वे ज्यादातर केवल फलों के रस, कुछ निश्चित सब्जियों या ऐसी ही किसी चीज़ से काम चलाती हैं..(च..च..च.. बेचारियाँ) ऊपर से भूख के एहसास को भुलाने के लिए सिगरेट या ऐसे ही किसी नशीले पदार्थ का भी सहारा ले लेती हैं। एक मनुष्य के लिए खुराक में कम से कम १३० ग्राम कार्बोहाइड्रेट का नियमित सेवन जरूरी होता है। मॉडल्स तथा कई अन्य युवतियाँ इस कम से कम मात्रा तक को भोजन में शामिल नहीं करतीं। एक डॉक्टर के पास पिछले दिनों १५ वर्षीय एक किशोरी का कुछ ऐसा ही केस आया। वजन कम करने के लिए उसने डायटिंग के साथ ही जिम भी ज्वॅाइन किया था। उसका कहना था कि उसके जिम इंस्ट्रक्टर ने उससे कहा है कि उसे रात के भोजन में कार्बोहाइड्रेट्स लेना बिलकुल बंद कर देने चाहिए, क्या उसे इस पर अमल करना चाहिए? डॉक्टर ने उससे कहा कि उसकी उम्र के हिसाब से फिलहाल उसके शरीर को हर तरह के पोषक तत्व भरपूर मात्रा में चाहिए। वो नियमित व्यायाम करती रहे और खाने में फल-सब्जियों को ज्यादा शामिल करे तो वजन को कंट्रोल में रख सकती है लेकिन पूरी तरह कार्बोहाइड्रेट बंद करने के बारे में उसे सोचना भी नहीं चाहिए। अगर वह शाम को कार्बोहाइड्रेट की मात्रा को बंद या कम करती भी है तो उसे इस बात का ध्यान रखना होगा कि दिनभर में वह पर्याप्त मात्रा में कार्बोहाइड्रेट ले वरना इससे उसके शरीर के साथ ही दिमाग पर भी गलत असर पड़ेगा। खैर.. वह किशोरी इस बात को समझ कर चली गई लेकिन उक्त डॉक्टर का कहना था कि अक्सर किशोरियाँ और युवतियाँ उनके पास तब आती हैं जब वे बिना मार्गदर्शन की डायटिंग के कारण गंभीर बीमारी का शिकार हो चुकी होती हैं। विशेषज्ञ फिलहाल इस बात पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं कि महानगरों के अलावा कस्बों तक की किशोरियों तथा युवतियों में बिना सोचे-समझे भूखे रहकर डायटिंग करने का ट्रेंड सा बन गया है और इसे फैशन, आधुनिकता तथा बुद्धिमता का प्रतीक माना जा रहा है जो आगे जाकर गंभीर मुसीबत पैदा कर सकता है। मॉडल्स और अन्य वजन के प्रति चिंतित युवतियों का यह मानना होता है कि कार्बोहाइड्रेट खाने से न केवल उन पर माँस की परतें चढ़ जाएँगी बल्कि उनका चेहरा भी फूला हुआ सा दिखने लगेगा। इसलिए वे कार्ब्स का पूर्णतः बहिष्कार कर देती हैं। एक आम धारणा यह भी है कि रात को कार्बोहाइड्रेट्स लेने से वे रातभर में फैट्स में कन्वर्ट होकर आपके शरीर की चर्बी में बढ़ोतरी कर डालते हैं। यह बात एक हद तक सच भी है लेकिन यदि आप रात के खाने में कार्बोहाइड्रेट की कम मात्रा लें और उसके बाद करीब आधा घंटा टहलने के लिए निकाल लें तो आपकी यह शिकायत काफी हद दूर हो सकती है। हाँ, एक उम्र के बाद जरूर आपको रात के खाने के प्रति विशेष रूप से सतर्क रहना चाहिए लेकिन युवावस्था में तो आपको सारे पौष्टिक तत्व चाहिए ही(अनु श्रीवास्तव,नायिका,नई दुनिया,दिल्ली,1.10.2010)।

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