मरीजों के लिए कैशलेस सुविधा को लेकर स्वास्थ्य बीमा कंपनियों और अस्पतालों के बीच कशमकश जारी होने के बीच सरकार ने सभी नागरिकों के लिए 100 फीसदी कैशलेस स्वास्थ्य बीमा सुविधा का दरवाजा खोल दिया है। गरीबों के लिए यूपीए की प्रमुख स्वास्थ्य बीमा योजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) का विकल्प अब समाज के सभी वर्गों के लिए खुला रहेगा, जिसमें गरीबी रेखा से ऊपर जीवन यापन करने वाले भी शामिल हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से भारत में स्वास्थ्य बीमा बाजार का चेहरा बदल सकता है, क्योंकि आरएसबीवाई बीमा कंपनियों की बुनियादी समस्या का हल तलाशती है, जिसमें फर्जी दावों की वजह से होने वाले नुकसान का जोखिम, अस्पतालों की ओर से दर्ज कराए जाने वाले भारी-भरकम बिल और मेडिकल प्रक्रियाओं तथा सर्जरी के लिए मानक दरों की कमी शामिल है।
देश के नागरिक स्वैच्छिक आधार पर इस स्कीम से जुड़ सकते हैं, जबकि सरकार घरेलू नौकरों और सड़क पर रेहड़ी-खोमचे लगाने वालों जैसे समाज के वंचित तबकों को भी इसका फायदा देने की तैयारी कर रही है। गरीबी हटाने या कम करने के लिए एक प्रभावी स्वास्थ्य बीमा योजना काफी अहम है, क्योंकि स्वास्थ्स सेवा पर भारी खर्च की वजह से ज्यादातर भारतीय गरीबी रेखा के नीचे आते हैं।
श्रम मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, 'हमें ट्रक चालक और छोटे उपक्रम जैसे कई समूहों से आरएसबीवाई प्लेटफॉर्म इस्तेमाल करने की इजाजत देने के आग्रह मिल रहे थे।' खड़गे ने ईटी से कहा, 'जाहिर तौर पर लोगों को इस स्कीम में फायदा दिख रहा है और वे इसके लिए भुगतान करने को भी तैयार हैं। इसलिए, हमने इसके दरवाजे सभी नागरिकों के लिए खोल दिए हैं।'
अप्रैल 2008 में लॉन्च आरएसबीवाई उन तमाम सरकारी योजनाओं के बीच दुर्लभ कामयाबी की तरह दिखती है, जो आम तौर पर कमजोर कार्यान्वयन और वित्तीय लीकेज की वजह से सफलता से दूर ही रह जाती हैं। इस स्कीम के तहत 27 राज्यों के करीब 2 करोड़ गरीब परिवारों को 30,000 करोड़ रुपए का सालाना स्वास्थ्य कवर मिलता है।
आरएसबीवाई से जुड़ने में दिलचस्पी रखने वाले नागरिक समूहों को सदस्यों के आंकड़ों के साथ केंद्र सरकार के पास आवेदन करना होगा। खड़गे ने कहा, 'हम सिर्फ इतना कह रहे हैं कि ये समूह बड़े और स्वदेशी होने चाहिए।' समूहों पर इसलिए जोर दिया जा रहा है, ताकि केवल बीमार और बीमारी की आशंका रखने वाले लोग ही स्वास्थ्य कवर के लिए आवेदन न करें। हर राज्य में आरएसबीवाई के गरीब लाभार्थियों को कवर मुहैया कराने के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाली बीमा कंपनियों को अब गरीब और गरीबों से अलग समूहों के लिए प्रीमियम की दरें कोट करनी होंगी।
इस कदम से सरकार की ओर से गरीबों के लिए तय कुल प्रीमियम दरें नीचे आ सकती हैं, जबकि सामान्य समूहों को बेहतर दरें मिलने के अलावा व्यक्तिगत मेडिक्लेम पॉलिसी पर उपलब्ध बेनेफिट भी मिल सकते हैं। निजी क्षेत्र की एक बड़ी बीमा कंपनी के सीईओ ने कहा, 'अलग-अलग प्रोफाइल वाले समूहों के लिए रिस्क पूल करने से बीमा कंपनियों को फायदा होगा।' वास्तविक प्रीमियम कोट इस बात पर निर्भर करेंगे कि लाभार्थी समूहों का जोखिम प्रोफाइल कैसा है(विकास धूत / अमिति सेन,इकनॉमिक टाइम्स,1.10.2010)।
ये एक ऐसा कदम है जिसकी मीडिया में भी काफी चर्चा होनी चाहिए थी। पता नहीं क्यों रह गई। ये असल भारत से जुड़ा समाचार है। इसके बारे में जितना हो सके उतनी डिटेल लोगो तक पहुंचाए जाने का काम होना चाहिए।
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