अक्सर देखा गया है कि हम किसी बीमार रिश्तेदार, दोस्त या परिजन से मिलने जाते हैं तो ये भूल जाते हैं कि मरीज और उसका परिवार किस मानसिक अवस्था में होंगे। उस मुश्किल दौर में मरीज और उसके परिवार को मानसिक संबल और सकारात्मकता की जरूरत होती है, जबकि होता बिलकुल इसका उल्टा है। देखने आने वाले दोस्तों या शुभचिंतकों के पास सलाहों का भंडार होता है जिसे वे पूरा का पूरा बीमार व्यक्ति और उसके परिजनों पर उड़ेल देते हैं। दुनियाभर के नकारात्मक उदाहरण होते हैं और बजाय इसके कि वे मरीजों को बीमारी से उबरने में और परिवार का मनोबल बढ़ाने के उन्हें मानसिक रूप से परेशान व निराश कर देते हैं।
कई बीमारियाँ ऐसी होती हैं जिनका इलाज लंबे समय तक चलता है। इस दौरान मिलने वालों में मित्र, रिश्तेदार, शुभचिंतक सभी होते हैं जो अनजाने में अनचाहे ही कई बार ऐसी स्थिति निर्मित कर देते हैं कि मरीज व उसके परिवार के लोग दुःखी हो जाते हैं। उनके मन में एक अनजाना सा डर बना रहता है कि पता नहीं सामने वाला क्या प्रश्न करेगा? क्या कहेगा और उससे मरीज की मनःस्थिति पर क्या प्रभाव पड़ेगा? ऐसे ही कुछ उदाहरण आपके सामने प्रस्तुत हैं-
- एक कैंसर के मरीज से उसका मित्र मिलने आया व गले मिलकर रोने लगा। कहता है कि अरे तुम्हारे बारे में २-३ माह पहले सुना था, बहुत दुःख हुआ। क्या करो ईश्वर को यही मंजूर था। इस बीच उनके छोटे-छोटे बच्चे व पत्नी भी आ गई। वह उनके मित्र के इस व्यवहार से अचंभित थी। वह सोच रही थी इससे बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? परंतु इस स्थिति में स्वयं मरीज ने अपने मित्र से कहा- क्या हुआ मुझे? मैं ठीक हूँ, मेरा इलाज चल रहा है। इसलिए मेहरबानी कर मेरे लिए शोक मत मनाओ।
- श्रीमान ख के बीमार होते ही सब उनसे इस तरह मिल रहे थे जैसे उनका अंत समय आ गया हो, जबकि ऐसा कुछ नहीं था। उन्हें हार्ट अटैक आया था परंतु सामने सब इस तरह से खड़े थे जैसे अंतिम दर्शन के लिए खड़े हों। जबकि सब जानते हैं अटैक के बाद भी आदमी सालों-साल जीता है।
- कई बार डॉक्टर व घर के लोगों द्वारा मना करने के बावजूद मरीज से मिलने की जिद करना, उसे देखने व बार-बार बोलकर उससे बात करने की इच्छा करना। अनचाहे ही ऐसी स्थिति निर्मित करना जो संबंधों में खटास पैदा करती है।
- मरीज के परिजनों से ऊटपटाँग से सवाल करना जैसे- अरे वो चलते फिरते हैं या नहीं? खाना खा रहे हैं? अरे आप तो कह रहे थे तबियत खराब है, हमने तो उन्हें घूमते देखा? अच्छे से तो खा रहे थे?
- क्या हुआ? कैसे हुआ? कब हुआ? किसका इलाज ले रहे हो? अरे ये डॉ. तो बेकार है इसका नहीं उसका लेना था। अरे ये बीमारी आपको कैसे लग गई। अरे हमारे तो फलाँ रिश्तेदार को ये हुआ था ज्यादा दिन जिए नहीं। वैसे भी धीरे से फुसफुसा कर ये कहने से भी नहीं चूकते कि बेकार में पैसा बर्बाद कर रहे हो, कोई मतलब नहीं है।
- परिजन किसी तरह से अपने-आपको संभाल कर मुस्कुराने का प्रयत्न करें तो उन पर कटाक्ष करना यह कहकर कि- लग ही नहीं रहा था कि उनकी लड़की इतनी बीमार है, उनके चेहरे पर तो दुःख का कोई चिह्न ही नहीं था।
- कहीं भी मिलने पर सामने वाले को छेड़ देना। उसे जब तक कुरेदना जब तक कि वह रो न दे। फिर उससे सहानुभूति जताना कि हिम्मत से काम लो, जबकि वह इंसान हिम्मत रखे हुए था। उसकी हिम्मत आपने उससे बार-बार पूछकर तोड़ी है।
- एक कैंसर के मरीज कीमोथैरेपी होने के बाद रेडियोथैरेपी लेने हेतु अस्पताल जा रहे थे स्कूटर से। रास्ते में उनके एक मित्र ने उन्हें रोककर कहा- अरे मैंने तो सुना था आपको कोई बीमारी हो गई है और आप इस तरह स्कूटर चला रहे हैं।
- बीमारी के विषय को छोड़कर अन्य किसी विषय पर भी बात की जा सकती है।
- वातावरण को हल्का-फुल्का बनाने कर प्रयास करें।
- यदि उनके घर-बाहर से संबंधित कोई कार्य कर सकते हैं तो अवश्य करें। जब भी मिलने जाएँ ज्यादा समय न बैठें न ही अनावश्यक सलाह दें।
- हो सके तो अच्छे उदाहरण प्रस्तुत करें जिन्होंने अपने जीवन को कई कमियों के बावजूद हँसते-हँसते गुजारा है।
- कोई प्रेरणा देने वाली पुस्तक भेंट कर सकते हैं।
- यदि आप बाहर से जा रहे हैं तो अपने रहने-खाने का इंतजाम अन्यत्र कर लें- ताकि आपके जाने से मरीज की तीमारदारी में अनावश्यक खलल न पड़े, न ही उसके परिजनों पर कोई भार।
बहुत सार्थक लेख ..बिलकुल सही कहा है आपने ..अक्सर ऐसे मित्र और सम्बन्धी मिल जाते हैं जो मनोबल को और तोड़ देते हैं ...
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