बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

सोयाबीन पर नया अध्ययन

सोयाबीन सिर्फ इंसान नहीं, प्रकृति की सेहत के लिए भी गुणकारी है। एक शोध में सोयाबीन के ऐसे गुणों का पता लगा है, जिनसे पोलिथिन और रासायनिक खादों के जहरीले तत्वों से प्रभावित मिट्टी का शोधन संभव है। शोध से जुड़े वैज्ञानिकों की मानें तो सोयाबीन में ऐसे गुण हैं जो मिट्टी की उत्पादन क्षमता को भी बढ़ाते हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान विभाग में सोयाबीन पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि इसकी जड़ों में बड़े-बड़े गुण छिपे हैं, जिससे मृदा के जहरीले तत्व को अवशोषित किया जा सकता है। इसके बारे में डॉ. गिरजेश कुमार बताते हैं, सोयाबीन की खेती यदि उस स्थान पर की जाए, जहां भारी लौह तत्व पाए जाते हैं तो भूमि का शोधन किया जा सकता है। लौह तत्व मृदा के प्रदूषण के प्रमुख कारणों में से एक हैं। डॉ.कुमार के मुताबिक फैक्टि्रयों से निकला गंदा पानी जहां भी छोड़ा जाता है, मिट्टी को प्रदूषित करने का कार्य करता है। इससे निजात पाने का वैसे अभी तक कोई सीधा तरीका नहीं मिला है, लेकिन यदि उक्त भूमि पर सोयाबीन की खेती की जाए तो हालात बदले जा सकते हैं। मिट्टी के जहरीले तत्व अवशोषित होने के साथ उर्वरा शक्ति भी खासी बढ़ जाती है। डॉ. गिरजेश बताते हैं, विषाक्तता बढ़ाने वाले तत्वों में फैक्टि्रयों के निकलने वाले भारी मेटल के साथ ही मरकरी, कैडमियम, लेड, ट्राई नाइट्रो टाल्वीन प्रमुख हैं। एक चौंकाने वाली बात यह भी है कि जहरीले तत्वों का अवशोषण करने के बाद भी सोयाबीन के तेल और बीज की गुणवत्ता में किसी भी प्रकार का दोष उत्पन्न नहीं होता है। और भी सफलता : कृषि वैज्ञानिकों ने शोध के दौरान बहुगुडि़का विधि के प्रयोग से बीज के आकार को बढ़ाने में भी सफलता पाई है। इससे सोयाबीन की पैदावार में बढ़ोत्तरी होने व दानों से से अधिक तेल प्राप्त करने में भी सहायता मिली है। इसके दानों से 18-30 फीसदी तेल मिलता है, जिसमें 38 से 44 फीसदी प्रोटीन होता है। बुहुगुडि़का विधि के प्रयोग से गुणसूत्रों का विशेष अध्ययन किया जाता है। इसमें कोल्चीसीन नाम के रसायन का प्रयोग कर क्रोमोसोम की संख्या को बढ़ाया या घटाया जा सकता है(अमलेन्दु त्रिपाठी,दैनिक जागरण,इलाहाबाद,27.10.2010)।

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