बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

समय से पहले जवान होते बच्चे

घर परिवार में होने वाले झगड़े, कलह, ब्रेकडाउन आदि बच्चों पर विपरीत असर डालते हैं। विभिन्न अध्ययनों से यह बात सामने आयी है कि जिन घरों में अकसर झगड़ा, कलह होता रहता है वहां बच्चे जल्दी वयस्क हो जाते हैं। माता-पिता को हर समय लड़ते-झगड़ते देखना, उनका अलगाव होना और झगड़ालू पिता, बच्चों के साथ मारपीट करने वाले माता-पिता के साथ रहने वाले बच्चे उम्र से पहले ही परिपक्व होने लगते हैं। घर में होने वाले तनाव, लड़ाई-झगड़े का असर बच्चों पर सबसे ज्यादा पड़ता है। अपने इस तनाव से अपने को दूर करने के लिए यह बच्चे पोर्न फिल्में देखना, ब्लू लिटरेचर पढऩा जैसी गतिविधियों में भी संलग्न होने लगते हैं। विभिन्न अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि लंबे समय तक तनाव में रहने वाले इन बच्चों में विभिन्न हार्मोन असंतुलन आ जाता है। उनके भीतर इस तरह के हार्मोनों का निर्माण होने लगता है जो उन्हें असमय ही परिपक्व बना देता है। इसके अलवा शरीर में होने वाले विभिन्न रासायनिक परिवर्तन उन्हें कम उम्र में ही शारीरिक व मानसिक रूप से परिपक्व बना देता है। लेकिन उनकी शारीरिक और मानसिक असंतुलन पैदा हो जाता है जिसके कारण ऐसे बच्चे कम उम्र में ही सेक्स की ओर उन्मुख हो जाते हैं। लड़कियां टीनएज में मां बन जाती हैं या नशा करने लगती हैं। लड़के भी बुरी संगत पड़कर नशा करने लगते हैं। लिवरपूल की जॉन मूव्स यूनिवर्सिटी में हुए अध्ययन में यह पाया गया कि आजकल बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति सचेत माता-पिता और उनकी अच्छी आर्थिक स्थिति भी बच्चों को जल्दी वयस्क बना देती है। वह कम उम्र में सेक्स और पोर्न लिटरेचर की ओर बढ़ते देखे जाते हैं। टीनएज प्रिग्नेंसी, नशे और शराब की जकड़ में आने के बाद यह टीनएज हिंसक प्रवृत्ति का शिकार होकर अपना नुकसान करते हैं। इस अध्ययनकर्ता ने समस्या को उठाया है कि तनाव से बच्चे जल्दी वयस्क होते हैं। दबंग पिता के व्यवहार का प्रभाव बच्चों में गहरा नकारात्मक असर डालता है। उन्होंने इस बात के लिए आगाह किया है कि बच्चों में असमय वयस्क होने से उनकी सोच, उनका मानसिक स्तर, असमय शैक्षिक और शारीरिक परिपक्वता के कारण वह चीजों को जिस आधे-अधूरे ढंग से समझते या जानते हैं इस सबका उन पर नकारात्मक असर होता है। यूरोप में 12 साल के बच्चे शारीरिक रूप से परिपक्व होने लगे हैं। अध्ययनों से यह बात सामने आयी है कि आज से 20 हजार साल पहले ऐसी स्थितियां थीं जब बच्चे इस उम्र में शारीरिक रूप से परिपक्व हो जाते थे। आजकल उपभोक्तावादी संस्कृति का बुरा प्रभव सबसे अधिक कम उम्र के बच्चों में दिखाई देता है। ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने की दौड़ में विभिन्न कंपनियां और फैशन उद्योग टीनएजर्स को सुंदर दिखने और सेक्स सिम्बल बनने की ओर लालायित कर रही हैं। बाजारवादी सोच का असर कुछ इस कदर टीनएज पर हावी हो गया है कि बच्चे पूरी तरह से नकारात्मक असर का शिकार हो रहे हैं(नीलम अरोड़ा,दैनिक ट्रिब्यून,26.10.2010)

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