बुधवार, 6 अक्तूबर 2010

मानसिक रोग में झाड़फूंक नहीं,उपचार कराएं

अधिक गुस्सा, अधिक चिंता, घबराहट, उदासी आदि के साथ मन में आत्महत्या के विचार आने, सोच विचार के दौरान अनचाहे परिवर्तन होने, शारीरिक विकार के लक्षण, बिना कुछ बोले आवाज सुनाई देना, भाषा का सही विकास न होने जैसी बातें यदि आप के साथ हो रही हों तो निश्चित रूप से मानसिक रोग के शिकार हैं। इसके लिए किसी झाड़ फूंक करने वाले ओझा आदि के पास जाने की जरूरत नहीं है। आवश्यकता है तो बस किसी चिकित्सक से मिलने की। नियमित इलाज से कुछ ही दिनों में इन सभी चीजों से छुटकारा मिल जायेगा। विक्षिप्त प्रतीत होने वाले लोग आम तौर पर सिझोफ्रेनिया/मोनिया डिसआर्डर से पीडि़त होते हैं। कई बार मानसिक रोग को दैवीय प्रकोप, भूत-प्रेत, जादू-टोना या टोटका, बुरी नजर, बाहरी या ऊपरी हवा से जोड़कर देखा जाता है लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। इस संबंध में डा. वीके सिंह (एसो.प्रो. मानसिक रोग) बताते हैं कि ज्यादातर मानसिक रोग वंशानुगत प्रवृत्ति और मस्तिष्क पर शारीरिक रोग/प्रतिकूल पारिवारिक-सामाजिक परिवेश के चलते उत्पन्न होते हैं। मानसिक रोग भी दवाओं के माध्यम से ठीक किये जा सकते हैं। नशे की आदत भी इसी बीमारी का अंग है। यदि ठीक से उपचार किया जाए तो नशे की आदत से छुटकारा मिल सकता है। डा. सिंह यह भी बताते हैं कि ऐसा नहीं है कि इस बीमारी के इलाज में प्रयुक्त होने वाली दवाओं में नींद लाने का भी प्रयास किया जाता है। कई ऐसी दवाएं होती हैं जिनमें नशा बिल्कुल नहीं होता है। दवाओं के साथ ही मनोचिकित्सा और विद्युत चिकित्सा का भी प्रयोग किया जाता है। यह भ्रांति भी है कि ईसीटी के दौरान रोगी को कष्ट उठाना पड़ता है। इस प्रक्रिया के दौरान रोगी बेहोशी की हालत में रहता है इससे उसे किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता। मानसिक रोगी का विवाह तभी किया जाना चाहिए जब वह पूरी तरह से स्वस्थ हो जाए(दैनिक जागरण,इलाहाबाद,6.10.2010)।

6 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय राधारमण जी

    आप बहुत नेक कार्य कर रहे हैं

    लोक स्वास्थ्य की ध्वजा लेकर आप संपूर्ण मानवता का हित कर रहे हैं

    आपको प्रणाम करने का मन करता है

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  3. समाज को जागरूक करती हुई इस पोस्ट के लिए आपका धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. सही है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    मध्यकालीन भारत-धार्मिक सहनशीलता का काल (भाग-२), राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

    जवाब देंहटाएं

एक से अधिक ब्लॉगों के स्वामी कृपया अपनी नई पोस्ट का लिंक छोड़ें।