नेब सराय में एक राशन की दुकान से फूड इंस्पेक्टर ने अरहर की दाल खरीदी और उसे जांच के लिए सैंपल बनाया। टेस्ट में पता चला कि दाल में केमिकल मिलाया गया है ताकि दाल की चमक बढ़े। इस मामले में निचली अदालत ने दुकानदार को छह महीने की सजा सुनाई, जिस फैसले को दुकानदार ने हाई कोर्ट में चुनौती दी हुई है। मिलावट के ऐसे बहुत-से मामले सामने आते रहते हैं। फूड इंस्पेक्टर तो सैंपल भरते ही हैं लेकिन आम लोग भी मिलावट की शिकायत कर सकते हैं। अगर किसी को लगता है कि जो सामान वे खरीद रहे हैं या रेस्तरां आदि में जो कुछ खा रहे हैं, उसमें मिलावट है तो शिकायत जरूर करनी चाहिए। कानूनी जानकार बताते हैं कि अगर आपको इस बात का शक है कि अमुक दुकानदार मिलावट करता है तो आप इसके लिए कानून का सहारा ले सकते हैं।
एसडीएम से भी कर सकते हैं शिकायतः
दिल्ली हाई कोर्ट में सरकारी वकील नवीन शर्मा ने बताया कि ऐसे मामलों में पुलिस को शिकायत नहीं की जाती, बल्कि इसके लिए अलग डिपार्टमेंट बना हुआ है। जब भी किसी शख्स को ऐसी शिकायत हो तो वह इलाके के एसडीएम को शिकायत कर सकता है। एसडीएम हर जिले में होते हैं। साथ ही प्रिवेंशन ऑफ फूड एडल्टरेशन के डायरेक्टर या इंस्पेक्टर से इसकी शिकायत की जा सकती है। एसडीएम को प्रिवेंशन ऑफ फूड एडल्टरेशन एक्ट के तहत ऐसी शिकायत सुनने का अधिकार मिला हुआ है। जब भी इस तरह की शिकायत होती है तो फूड इंस्पेक्टर और एसडीएम उस दुकान या होटल आदि से सैंपल उठाता है। जो भी सैंपल उठाए जाते हैं, उन्हें तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक सैंपल लैब में भेजा जाता है। वहां की रिपोर्ट में अगर इस बात की पुष्टि होती है कि सैंपल में मिलावट है तो आरोपी के खिलाफ इलाके के एसीएमएम (अडिशनल चीफ मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट) के पास शिकायत भेजी जाती है। एसीएमएम आरोपी को नोटिस जारी करती है। हालांकि आरोपी को इस बात की छूट होती है कि वह सैंपल को दोबारा से फॉरेंसिक जांच के लिए भेजने की गुहार लगाए। लेकिन फॉरेंसिक रिपोर्ट में जैसे ही मिलावट की पुष्टि हो जाती है तो आरोपी के खिलाफ केस चलता है।
हो सकती है उम्रकैद भीः
इसके अलावा, किसी को यह लगता है कि अमुक दुकानदार मिलावट करता है तो वह खुद भी ग्राहक बनकर वहां से सामान खरीद सकता है। उसे दुकानदार से रसीद लेनी होगी और साथ ही उस खरीद के पक्ष में दो गवाह भी रखने होंगे। सुनवाई के दौरान वे गवाह शिकायती पक्ष के केस को मजबूत करता है। वह सीधे उसका सैंपल बनाकर प्रिवेंशन ऑफ फूड एडल्टरेशन विभाग के इंस्पेक्टर या डायरेक्टर को दे सकता है। इसके बाद उस सैंपल की विभाग जांच कराता है और अगर मिलावट पाई जाती है तो उस पर कार्रवाई होती है। आरोपी के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ फूड एडल्टरेशन एक्ट के तहत केस चलता है और इसमें आरोप साबित होने पर कम-से-कम 6 महीने कैद की सजा का प्रावधान है। साथ ही, ऐसी किसी मिलावट के कारण मौत हो जाए या जान पर बन आए तो उम्रकैद तक की सजा हो सकती है(राजेश चौधरी,नवभारत टाइम्स,3.10.2010)।
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