सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

यूरोलॉजी में स्वर्णिम भविष्य

मेडिकल सिस्टम के तेजी से होते विकास ने इसे कई शाखाओं में विभाजित कर दिया है। इसके विकास का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब इन शाखाओं की भी उप-शाखाएं विकसित हो चुकी हैं जिनमें कई अलग-अलग क्षेत्रों में काम किया जाता है। मानव शरीर के सबसे नाजुक अंग यूरोलॉजी के अंतर्गत आते हैं। इस विषय में सर्जरी का विशेषज्ञ बनना अपने आप में काफी महत्व रखता है। यूरोलॉजी के अंतर्गत महिलाओं और पुरुषों के यूरीनरी टै्रक्ट से संबंधित डिसऑर्डर का इलाज किया जाता है। प्रत्यारोपण के आधे से ज्यादा कार्य यूरोलॉजी के अंतर्गत आते हैं। इस क्षेत्र में प्रवेश के लिए एमएस के बाद एक सुपर स्पेशल डिग्री जिसे कि मास्टर ऑफ चीरर्जिकल कहते हैं। इसे प्राप्त करने के बाद ही कॉम्प्लेक्स सर्जरी और ट्रांसप्लांट से जुड़े केस हल करने का अवसर मिलता है। यूरोलॉजी के क्षेत्र में करिअर बनाने के लिए कठिन परिश्रम के साथ-साथ तकनीक का विशेष ज्ञान होना भी जरूरी है। पित्त की थैली में गांठ हो जाने पर इसे ऑपरेट करने का जिम्मा यूरोलॉजी विभाग पर होता है। पित्त की थैली में गांठ हो जाने की शिकायत इतनी तेजी से बढ़ रही है कि देश में इसके रोगी ज्यादा हैं और सर्जन कम। भारत में इस समय सिर्फ 1900 यूरोलॉजिस्ट ही हैं जो जटिल सर्जरी की प्रक्रियाओं से लगातार जूझते रहते हैं। इतनी कम संख्या में यूरोलॉजिस्ट का होना इस बात का संकेत देता है कि यह विषय काफी मुश्किल है। इसमें करिअर बनाना आसान नहीं। लेकिन किसी के साथ इसका एक सकारात्मक पहलू भी है। इतनी कम संख्या में यूरोलॉजिस्ट के होने से इसमें यह संभावना ही बनी हुई है कि अभी भी इस क्षेत्र में कुशल पेशेवरों की बड़ी कमी है। इस कमी को पूरा करने के लिए बड़ी संख्या में यूरोलॉजिस्ट सर्जन चाहिए। अच्छी बात यह है कि यूरोलॉजी के क्षेत्र की भी कई शाखाएं हैं, इनमें एंड्रोलॉजी, आर्टिक यूरोलॉजी, न्यूरोलॉजी आदि अलग-अलग विभाग हैं। हर विभाग का अलग स्पेशलिस्ट होता है। बड़े शहरों की तुलना में छोटे शहरों में कुशल यूरोलॉजिस्ट की संख्या काफी कम है। जहां दिल्ली शहर में 100 से भी ज्यादा शिक्षित यूरोलॉजिस्ट हैं तो कानपुर शहर में इनकी संख्या सिर्फ 2 से 3 यूरोलॉजिस्ट तक ही सीमित है। इससे यह जाहिर होता है कि बड़े शहरों की तुलना में छोटे शहरों में यूरोलॉजिस्ट के रूप में करिअर बनाना ज्यादा फायेदमंद है। इस क्षेत्र में स्पेशलिस्ट बनने के लिए किसी सीनियर यूरोलॉजिस्ट के साथ काम करने का 2 से 3 वर्ष का अनुभव भी फायदेमंद होता है। अनुभव ही व्यक्ति को कुशल बनाता है, चाहे वह कोई भी क्षेत्र हो। यूरोलॉजिस्ट प्रैक्टिस को सर्जरी की सुपर स्पेशियलिटी ब्रांच माना जाता है। एक सफल यूरोलॉजिस्ट वही होता है जो यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर से जुड़ी किसी भी समस्या को बड़ी कुशलता से दूर कर दे। यूरोलॉजिस्ट के रूप में सर्जन को किडनी, यूट्रस, यूरीनरी ब्लैडर जैसे महत्वपूर्ण अंगों को डील करना होता है। इन अंगों में किसी प्रकार की कमी आने या इन्हें क्षति पहुंचने पर यूरोलॉजिस्ट बड़ी कुशलता से इस क्षति को दूर कर देता है। एक सफल यूरोलॉजिस्ट वही हो सकता है जो अच्छा श्रोता हो। ऐसा इसलिए क्योंकि एक अच्छा श्रोता ही अपने मरीज की सभी परेशानियों को ठीक से सुनकर उन्हें अपने अनुसार विभाजित करता है ताकि समस्याओं को आपस में जोड़कर एक नतीजे पर पहुंचा जा सके। बेहद जटिल मानी जाने वाले सर्जरी के काम में योग्यता के साथ धैर्य की भी आवश्यकता होती है। हड़बड़ी में किया गया कोई भी काम नुकसान ही पहुंचाता है। इसके अलावा मरीज की सभी शारीरिक व मानसिक परेशानियों को हल करने की योग्यता भी होनी चाहिए। भारत में यूरोलॉजिस्ट की कमी भले ही हो लेकिन इस क्षेत्र में प्रवेश करना प्रतिस्पर्धा से भरा हुआ है। देश में इस स्पेशलाइजेशन के लिए मात्र 150 सीटें ही हैं जबकि इन सीटों के लिए उम्मीदवार काफी ज्यादा होते हैं। ऐसे में सफलता उन्हें ही मिलेगी जो खुद को अन्य उम्मीदवारों से बेहतर साबित करेंगे। भविष्य में यूरोलॉजिस्ट की बढ़ती मांग को देखते हुए इन सीटों के बढ़ाये जाने की उम्मीद लगाई जा रही है। योग्यता : एमबीबीएस और एमएस की डिग्री के बाद मास्टर ऑफ चीरर्जिकल का इंट्रेंस इग्जाम देना होता है। इस परीक्षा में मल्टीपल च्वाइस क्वेश्चन आते हैं। वैकल्पिक प्रश्नों की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद इंटरव्यू और एक प्रैक्टिकल टेस्ट देना होता है। इन सभी में उत्तीर्ण उम्मीदवार को ही यूरोलॉजिस्ट का तमगा मिलता है। इन सभी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने के लिए जरूरी है कि आप पहले से ही यूरोलॉजी से जुड़े ऑपरेशन्स में हिस्सा ले चुके हों और आपको कई बातों का ज्ञान हो; क्योंकि प्रैक्टिस टेस्ट में ट्रांसप्लांट से जुड़े सवाल पूछे जाते हैं और उन पर कार्य करने को भी दिया जाता है। आय : बतौर यूरोलॉजिस्ट अगर आपकी नियुक्ति किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में हो गई तो आपकी आय 1 लाख रुपये प्रतिमाह तक हो सकती है। अनुभव के साथ यह कमाई बढ़ती ही जाती है। सरकारी अस्पतालों में शुरुआती आय 50 हजार रुपये प्रतिमाह से लेकर 75 हजार रुपये प्रतिमाह तक रहती है। एक प्रोफेसर के रूप में 1 लाख रुपये प्रतिमाह तक हो सकती है। यूरोलॉजिस्ट की अधिकतम आय प्राइवेट पै्रक्टिस में ही होती है। हालांकि प्राइवेट पै्रक्टिस में सफल होने के लिए पहले किसी नामी सरकारी या प्राइवेट अस्पताल में मशहूर यूरोलॉजिस्ट होना जरूरी है। प्रमुख संस्थान— संजय गांधी पीजी इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, लखनऊ वेबसाइट : www.sgpgi.ac.in पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल एजूकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़ वेबसाइट : www.pgimer. nic.in क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लौर वेबसाइट : www.cmch-vellore.edu (कीर्तिशेखर,दैनिक ट्रिब्यून,20 अक्टूबर,2010)

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