गिलोय को गुर्च और अमृता के नाम से भी जाना जाता है। यह मेनीस्पर्मेसी फैमिली की वनस्पति है। इसका वैज्ञानिक नाम टीनोस्फोर कार्डी फोलिया है। आम तौर पर यह ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से उपलब्ध हो जाती है। नीम की गिलोय में सब से अधिक औषधीय गुण होते हैं। इसी लिए इसको सर्वोत्तम कहा गया है। यह बहुवर्ती दानेदार पौधा होता है। गिलोय में वात और पित्त शमन का गुण होता है। स्निग्ध ऊष्ण होने के कारण वात शमन के लिए चिकित्सक इसे लेने की सलाह देते हैं। पित्त कशाय होने के कारण यह कफ और पित्त का भी शमन करता है। इसे सभी आयु वर्ग के लोगों को दिया जा सकता है। यदि इसे घी के साथ दिया जाए तो विशेष लाभ होगा। शर्करा के साथ देने से पित्त का शमन करने में मदद मिलती है। इसी क्रम में यदि गिलोय को शहद के साथ प्रयोग किया जाये तो कफ की समस्या से छुटकारा मिलता है। जीर्ण ज्वर और विषम ज्वर में भी इसका प्रयोग लाभकारी होता है। ज्वर दाह शांत करने में डाक्टरों द्वारा इसका प्रयोग करने की सलाह दी जाती है। शरीर में अग्नि तत्व को बढ़ाने और दुर्बलता को दूर करने में भी यह सहायक होता है। गिलोय के अंग और कांड को प्रयोग किया जाता है। मरीज को जब क्वात्त के रूप में दिया जाता है तो 50 से 100 मिलीलीटर के बीच खुराक दी जाती है। चूर्ण के रूप में 3 से 6 ग्राम की मात्रा दी जाती है। इसी प्रकार यदि सत्व के रूप में दिया जाना हो तो एक से दो ग्राम तक की मात्रा लाभकारी होती है। गिलोय के प्रयोग से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। रक्त शोधन का भी गुण इसमें बड़े पैमाने पर पाया जाता है। प्रमेह के रोगियों को भी यह स्वस्थ करने में सहायक है(डा. मनोज कुमार सिंह, चिकित्साधिकारी,आयुर्वेद चिकित्सालय,दैनिक जागरण,इलाहाबाद,9.10.2010)।
achhi janakari
जवाब देंहटाएंbehad swasth jankari..pathko ko laabh milega.
जवाब देंहटाएंI have a useful mail, that you may like to share with your readers.
जवाब देंहटाएंDo send me your e-mail id.
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