शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

कामकाजी महिलाएं और उपवास

महानगरीय महिलाओं की तेजी से बदलती जीवनशैली ने व्रत-उपवास का स्वरूप भी बदल डाला है। कामकाजी महिलाओं ने अपने वर्किंग शडय़ूल के हिसाब से आस्था का दीपक जलाए रख अब अपना फास्ट, फास्ट फूड रेस्तरां में खोलना शुरू कर दिया है। वीकएंड पर घर के अन्य सदस्य भी इस दौरान उनके साथ एन्जॉय करते दिखते हैं।

एक कंपनी में मार्केटिंग हेड शालिनी श्रीवास्तव की जॉब 10 से 5 वाली नहीं है। रोज नए टारगेट, मीटिंग्स, बिजनेस डीलिंग, सात साल का बच्चा और घर की पूरी जिम्मेदारी। ऐसे में नवरात्र के व्रत। कैसे कर पाती होंगी। वह हंसते हुए कहती हैं, ‘फास्ट रखना कठिन नहीं है। यह मां के प्रति आस्था है, जिसका अपना एक अलग ही सुख है। दूसरा ये कि इससे ससुराल वाले भी प्रसन्न रहते हैं। रही बात भूखे रहने की तो उसमें कोई मुश्किल नहीं। तमाम बड़े-छोटे रेस्तरां व्रत रखने वालों की सुविधानुसार खाने-पीने की अनेक चीजें उपलब्ध कराते हैं। कहीं फ्रूट चाट है तो कहीं कुट्टू की पकौड़ी, कहीं साबूवड़ा है तो कहीं सामक के चावल की खीर और सिंघाड़े के आटे का हलवा। मूंगफली, चौलाई और मखाने के नमकीन भी बाजार में उपलब्ध हैं। इतना ही नहीं, सिंघाड़े के आटे की भुजिया तो आलू की भुजिया का स्वाद भुला देगी।’

दूसरी तरफ बुद्धिजीवी विवेक हैं, जो कहते हैं, ‘मैं सालभर नवरात्र के महीने का इंतजार करता हूं। भला हो बाजारवाद का, आजकल व्रत थाली सजा कर देते हैं।’ क्या आप भी व्रत रखते हैं? इस पर वह हंसते हुए बोले, ‘उस थाली को खाने के लिए व्रत रखना कोई शर्त तो नहीं। भई, मैं भी उस व्रत के खाने की थाली का उतना ही मुरीद हूं, जितना कि व्रत रखने वाले। ठीक भी है इस लाजवाब स्वाद का मोह कौन छोड़ पाएगा। जब चाट बनाने वाले सिंघाड़े के आटे की पापड़ी व गोलगप्पे उपलब्ध कराएंगे तो किसके मुंह में पानी नहीं आएगा।’

आखिर ऐसा क्या है नवरात्र में जो पूरा वातावरण ही व्रत-उपवास से ओत-प्रोत नजर आने लगता है। अभी भी ऐसी महिलाओं की कोई कमीं नहीं है, जो केवल एक फल या लौंग के जोड़े पर व्रत रखने का सामरर्थ्य रखती हैं। ऐसा ही कठिन व्रत रखने वाली रिटायर प्रोफेसर मालती मेहरोत्रा कहती हैं, ‘सारे दिन चरते रहने वाला व्रत मुझे समझ में नहीं आता। मैं तो सदा से ही ऐसे ही रखती हूं।’ तो फिर दिन में काम कैसे कर पाती हैं यह पूछने पर वह बोलीं, ‘मुझ पर अब पारिवारिक जिम्मेदारियां ज्यादा नहीं हैं। रही बात नौकरी की तो अक्सर ही छुट्टियां हो जाती हैं। इसलिए कभी बहुत परेशानी नहीं हुई।’

एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाली रीना कहती हैं, ‘शरीर को इतना कष्ट क्यों देना। कौन सी किताब में लिखा है कि भगवान ऐसे कठिन व्रत व पूजा करने वालों से ही खुश होते हैं। मैं तो जैसा समय हो वैसा कर लेती हूं। सुबह जल्दी निकलना होता है, इसलिए पूजा शाम को करती हूं। मेरी देवी मां मुझ पर प्रसन्न हैं, यह मैं जानती हूं। न मुझे उनसे कोई शिकायत है और न उन्हें। सुबह अलख जगा कर बैठ जाऊं और पूरा घर मेरी वजह से अस्त-व्यस्त हो जाए तो ऐसी पूजा किस काम की।’ इसमें संदेह नहीं कि बदलते लाइफस्टाइल में जहां बहुत कुछ बदला है, वहीं ईश्वर में आम जन की आस्था पहले से कहीं अधिक बढ़ी है। इसकी मुख्य वजह है कि अब व्रत-उपवास के साथ पूजा की विधियां पहले से कहीं आसान व सुविधाजनक हुई हैं। आज की महिला अपने धर्म के साथ कर्म को भी बखूबी जानती और निभाती है। साथ ही अपने को एनर्जी से युक्त रखने के तरीके भी जानती है। तभी वह आज एक साथ इतनी भिन्न जिम्मेदारियों को हंसते-हसंते हुए निभा रही है।

मोटे तौर पर कामकाजी महिलाओं ने व्रत-उपवास को अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से देखना शुरू कर दिया है। जो महिलाएं एवं युवतियां डेडलाइंस के बीच फंसी रहती हैं, वे रेस्तरां में मिलने वाली व्रत की स्पेशल थाली के सहारे देवी मां के प्रति अपनी आस्था को पूरी करती हैं। जो इस बीच समय निकाल लेती हैं, वे घर जाकर विधि-विधान के साथ व्रत खोलती हैं और पूरे परिवार के लिए सात्विक भोजन भी बना लेती हैं।

इसमें भी संदेह नहीं कि व्रत-उपवास को लेकर महिलाओं की बदलती इस सोच से उनके शरीर और रोजाना की दिनचर्या पर भी प्रभाव पड़ता है, लेकिन अगर थोड़ी समझदारी और समय के बदलते स्वरूप के साथ चला जाए तो व्रत-उपवास टेंशन नहीं देते।

ध्यान देने योग्य बातें

शास्त्र सम्मत नियमों को मानें तो आजकल व्रत-उपवास रखना अत्यंत कठिन हो जाएगा। खासतौर से कामकाजी महिलाओं के लिए। इसलिए बेहतर है कि आप साफ और सच्चे मन से मां का ध्यान करें और अपनी सुविधा व मान्य तौर-तरीकों से पूजा करें। ईश्वर अपने भक्त को दुखी देखकर सुखी नहीं होते। व्रत का मकसद मन में आस्था और विश्वास के जरिए सकारात्मक ऊर्जा को लाना है।

1. एक बार में एक साथ पूरा भोजन करें। 2. व्रत खोलने से पहले किसी कन्या, बच्चे, महिला या वृद्ध जन को भोजन कराएं। 3. पूरे व्रत न रख पाने की स्थिति में सुबह उठ नहा-धोकर जोत जला कर मां का स्मरण कर पूजा करें। संस्कृत के श्लोक ही पूजा का आधार नहीं हैं। 4. यदि घट स्थापना की है तो नौ दिन अखंड जोत जलाएं। 5. कोशिश करें कि इन नौ दिनों में अनाज का सेवन न करें और न ही बाजार का बना खाना खाएं। 6. मन, कर्म और वचन से शुद्धता कायम रखें। जहां तक हो सके दूसरों का भला करें। 7. नौ दिन काला कपड़ा न पहनें। 8. पूजा स्थान में जोत दाईं ओर व कलश बाईं ओर रखें। 9. पूजा से 48 घंटे पहले से शुद्धता और पवित्रता का ध्यान रखें। डॉ. आनंद भारद्वाज

रखें डाइट का ख्याल

बहुत सी महिलाएं केवल यह सोच कर उपवास रखती हैं कि इस बहाने वे अपनी डाइट पर नियंत्रण रख कर सही मायनों में डाइटिंग कर पाएंगी। लेकिन नौ दिन बाद होता उलटा है। वे वजन कम करने के बजाय गेन कर लेती हैं। उसकी वजह है बाजार में उपलब्ध ढेर सारे व्यंजन और व्रत की तमाम चीजें, जो घी व तेल से भरपूर कैलोरी मिनटों में बढाती हैं। ऐसे में कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए, जिसके बारे में बता रही हैं फेमस डायटीशियन ईषी खोसला।

1. अपना फोकस क्लीयर रखें कि उपवास किसी लक्ष्य को लेकर रख रही हैं, मुद्दा धर्म और आस्था है या डाइटिंग। 2. जितना हो सके पानी व तरल पदार्थ लें। इससे डिटॉक्सिफिकेशन में मदद मिलेगी। 3. कैलोरी इनटेक पर कम व न्यूट्रीशन वैल्यू पर ध्यान दें। 4. दही, दूध, पनीर और फलों का सेवन करें। 5. हर 2-3 तीन घंटे में मधुमेह के रोगियों को कुछ खाना चाहिए, खाली पेट न रहें। 6. दिन भर भूखे रहने के बाद शाम को व्रत खोलते समय बहुत हैवी खाना न खाएं। 7. रोगियों, वरिष्ठ जनों और ब्च्चों को उपवास नहीं रखना चाहिए। 8. यदि डाइटिंग के लिए व्रत रख रही हैं तो अच्छा होगा किसी एक्सपर्ट की सलाह लें और शड्यूल बना उसे फॉलो करें। 9. यदि उपवास का आधार धर्म है तो व्रत की पार्टियां कर एवं सेलिब्रेशन मना उसे नष्ट न करें।

(आरुषी,हिंदुस्तान,दिल्ली,5.10.2010)

2 टिप्‍पणियां:

  1. ईश्वर अपने भक्त को दुखी देखकर सुखी नहीं होते।
    मन, कर्म और वचन से शुद्धता कायम रखें। जहां तक हो सके दूसरों का भला करें।

    मुझे तो बस यही दो बाते समझ में आती है और व्रत रखना अपुन के बस की बात नहीं.:)

    बहुत अच्छी पोस्ट. शुक्रिया.

    जवाब देंहटाएं

एक से अधिक ब्लॉगों के स्वामी कृपया अपनी नई पोस्ट का लिंक छोड़ें।