हर महिला की चाहत होती है कि शादी के बाद उसकी गोद में बच्चे की किलकारियां गूंजें, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद कभी-कभार यह सपना पूरा नहीं हो पाता है। हेल्दी व यंग कपल होने के बावजूद अगर आप कंसीव नहीं कर पा रही हैं, तो आपको इसकी वजह जानने की जरूरत है। दरअसल, कई बार आप छोटी- छोटी चीजों की जानकारी नहीं होने की वजह से भी कंसीव नहीं कर पाती हैं और आप यह सोच बैठती हैं कि आपको कोई प्रॉब्लम है। ऐसे में आपको कुछ बेसिक चीजों की नॉलेज लेने की जरूरत है, जो आपके कंसीव न कर पाने की वजह हो सकती हैं।
रॉन्ग इंटरकोर्सः
डॉक्टर्स के मुताबिक अगर कपल सही तरीके से 'पेनो- वैजाइनल' इंटरकोर्स करें, तो कंसीव करने में कोई प्रॉब्लम नहीं होती। लेकिन, ऐसा तभी संभव है, जब आपको इसका सही तरीका मालूम हो। इसके अलावा, सेक्सुअल अट्रैक्शन की कमी, सेक्सुअल एक्साइटमेंट का मिस मैच, प्री मैच्योर इजैक्युलेशन, फोर स्किन में एबनॉर्मल टाइटनेस और कोई इन्फेक्शन भी आपके कंसीव नहीं कर पाने की वजहों में से एक हो सकते हैं। हालांकि, ये सभी दिक्कतें पुरुषों से जुड़ी हैं, लेकिन कुछ परेशानियां महिलाओं को भी होती हैं। मसलन वैजाइना का सिकुड़ना, इंटरकोर्स के दौरान पेन होना और हाइमन का बेहद टाइट हो जाना। अगर आपको इनमें से कोई दिक्कत नहीं है और आपको पेनो- वैजाइनल इंटरकोर्स का तरीका भी पता है, तो आपका अगला स्टेप सीमेन टेस्ट होना चाहिए। इस टेस्ट से स्पर्म की संख्या चेक की जाती है।
लो फ्रिक्वेंसीः
कंसीव करने के लिए स्पर्म का ओवम (एग) से मिलना जरूरी है। दरअसल, हर महीने दो ओवरीज में से किसी एक से ओवम निकलता है, जो 24 से 48 घंटे तक जीवित रहता है। अगर यह ओवम स्पर्म से कनेक्ट हो जाता है, तो आपके कंसीव करने के चांस 95 फीसदी बढ़ जाते हैं। आपको बता दें कि कंसीव करने की गुंजाइश अगले पीरियड के पहले दिन से 14 दिन पहले सबसे ज्यादा और उससे पांच दिन पहले और पांच दिन बाद ज्यादा होती है। अगर स्पर्म की फ्रिक्वेंसी कम हैं, तो कपल के लिए जरूरी है कि वे नेक्सट पीरियड से 14 दिन पहले रिलेशन बनाएं। इस दिन सिर्फ एक बार इंटरकोर्स से महिला प्रेग्नेंट हो जाती हैं।
आर्टिफिशल लुब्रिकेंटः
इन दिनों लोग सेक्स इंजॉय करने के लिए या उसे आसान बनाने के लिए तमाम आर्टिफिशल लुब्रिकेंट इस्तेमाल कर रहे हैं। इसी के चलते कई बड़ी कंपनियों के साथ लोकल कंपनियों ने भी अपने लुब्रिकेंट्स मार्केट में उतारे हैं। आर्टिफिशल लुब्रिकेंट के इस्तेमाल से स्पर्म ओवम तक नहीं पहुंच पाते हैं , जिससे कंसीव करना नामुमकिन है। वैसे , तो लुब्रिकेंट के इस्तेमाल की जगह नेचरल प्रोसेस ही ठीक है , लेकिन अगर आप लुब्रिकेंट का इस्तेमाल करना चाहते हैं , तो बेहतर होगा कि ओरिजिनल प्रॉडक्ट इस्तेमाल करें।
नॉट ऑव्यूलेशलः
कुछ महिलाओं का ऑव्यूलेशन ( एग प्रोसेस ) सही तरीके से नहीं हो पाता है या फिर अनियमित रहता है। इसकी जानकारी नहीं होने की वजह से उन्हें लगता है कि अब वे कंसीव नहीं कर पाएंगी। लेकिन सोनोग्राफी से से इसका पता लगाया जा सकता है। अगर ऑव्यूलेशन का प्रोसेस ठीक नहीं है , तो इस प्रोसेस को ठीक करने के लिए भी कई ट्रीटमेंट्स है। इसके लिए आपको गायकॉलजिस्ट से संपर्क करना होगा।
यूटरस इनर लाइन डैमेजः
यूटरस की इनर लाइन डैमेज होने पर भी कंसीव नहीं होने की प्रॉब्लम आ जाती है। दरअसल , प्रेग्नेंसी के लिए यूटरस की इनर लाइन का हेल्दी रहना बेहद जरूरी है। अगर यह हेल्दी नहीं होगी , तो कंसीव करना नामुमकिन है। इसे इन्फेक्शन , एसटीडी और टीबी जैसी बीमारियों से नुकसान पहुंचता है। टेस्ट द्वारा इसका भी आसानी से पता लगाया जा सकता है।
ब्लॉक फेलोपियन ट्यूबः
ओवरी से ओवम फेलोपियन ट्यूब के जरिए ट्रांसफर होते हैं। अगर यह ट्यूब ब्लॉक है , तो ओवम को स्पर्म से मिलने में दिक्कत आएगी। वैसे , इस ट्यूब के ब्लॉक होने की वजह इन्फेक्शन और टीबी होती है , जिसका ट्रीटमेंट मौजूद है।
नॉट होल्डः
जब स्पर्म और ओवम मिलते हैं , तो कंसीव होने की गुंजाइश रहती है। लेकिन अगर उस समय आपकी बॉडी स्पर्म को होल्ड नहीं कर पाती है , तो आप कतई कंसीव नहीं कर सकती। इसकी वजह यूटरस का लूज व ढीला होना होती है। ज्यादातर मिस कैरिज भी इसी वजह से होता है। ऐसी दिक्कत होने पर लगातार मिस कैरिज होता रहता है और कंसीव होने के चांस न के बराबर रहते हैं।
कंबाइंड इनफर्टिलिटीः
ज्यादातर मामलों में इनफर्टिलिटी की दिक्कत एक ही पार्टनर को आती है। लेकिन अगर दोनों ही लोगों में कोई दिक्कत है , तो बिना ट्रीटमेंट के कंसीव करना नामुमकिन है। इसलिए अपनी - अपनी दिक्कतें समझकर उनका इलाज करवा लें।
सही जानकारी न दे पानाः
ऐसे भी कई मामले आते हैं , जिनमें कपल्स को ऊपर बताई गईं समस्याएं नहीं होतीं। फिर भी वे कपल्स बच्चा पैदा नहीं कर पाते। तकरीबन 26 फीसदी मामले ऐसे भी हैं , जो अपनी दिक्कत को खुलकर डिस्कस करने से बचते हैं। ऐसी स्थिति में डॉक्टर्स भी उनको बच्चा एडॉप्ट करने की ही सलाह देते हैं।
(डॉ.राजन भोंसले,नवभारत टाइम्स,29 सितम्बर,2010)
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