मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

ब्रेस्ट कैंसर पीड़ितों के लिए वरदान साबित होगी जीन मैपिंग

कैंसर की चपेट में आए मरीजों के लिए राहत वाली खबर है। अब भारत में भी जीन मैपिंग पद्धति से कैंसर पीड़ितों की जांच की जाने लगी है। फिलहाल, यह सुविधा एम्स में ही शुरू हुई है। वहां अभी ब्रेस्ट कैंसर पीड़ितों की जांच की जा रही है। भविष्य में इस पद्धति से अन्य प्रकार के कैंसर पीड़ितों की जांच की संभावना भी बरकरार है।
इस पद्धति से न केवल बीमारी का जल्दी पता लगाना संभव है, बल्कि जटिलताओं के सही स्तर यानी स्टेज की जानकारी भी मिल सकेगी। ऐसे में कीमोथैरेपी के बजाए हार्मोन देकर भी कैंसर पीड़ितों का इलाज संभव होगा। माना जा रहा है कि 50 प्रतिशत मरीजों को कीमोथैरेपी की चुभन और उसके बाह्य प्रभाव से मुक्ति मिल सकती है।एम्स के कैंसर विभाग के प्रो. पी के जुल्का ने बताया कि ब्रेस्ट कैंसर के चार मरीजों की इस पद्धति से जांच की गई है।
इस पद्धति से जीन सिग्नेचर को पकड़ा जाता है। ऐसे में पता लगाना संभव हो जाता है कि ब्रेस्ट कैंसर कौन सी स्टेज में है। साथ ही, यह भी पता लगाया जाता है कि ब्रेस्ट कैंसर की सर्जरी के बाद मरीज को कीमोथैरेपी की जरूरत है या सिर्फ हार्मोन से ही काम चल जाएगा। बता दें कि कीमोथैरेपी या हार्मोन नहीं देने पर दोबारा कैंसर बनने का खतरा बरकरार रहता है। उनका कहना है कि अमूमन सभी मरीज को सर्जरी के बाद कीमोथैरेपी दी जाती है, लेकिन नए टेस्ट में अगर हार्मोन रिसेप्टर पॉजिटिव आता है तो मरीज को सिर्फ हार्मोन देने की जरूरत होती है। उनका कहना है कि अगर कैंसर पीड़ित के सही स्टेज का पता चल जाता है तो शुरुआती चरण वाले मरीजों को केवल हार्मोन, मिडल वाले को हार्मोन के साथ कीमोथैरेपी और एडवांस स्टेज वाले को सिर्फ कीमोथैरेपी देनी पड़ेगी। कितने प्रकार के होती है जांचः जीन मैपिंग यानी जेनेटिक जांच दो तरह की होती है। पहली, आंकोटाइप डीएक्स (21 जीन सिग्नेचर) व दूसरी मैमाप्रिंट (17 जीन रिसेप्टर)। महंगी है जांच : इस पद्धति से जांच करने में करीब तीन लाख रुपए का खर्च आता है, लेकिन पद्धति का इस्तेमाल बढ़ने पर कीमत में गिरावट आएगी। नई है तकनीक : भारत में इस तकनीक का इस्तेमाल पहली बार किया जा रहा है। हालांकि, अमेरिका में इसका इस्तेमाल पहले से ही हो रहा है। अभी बाकी है कामः डॉ. जुल्का कहते हैं कि कैंसर के चरणों को पहचाने की कोई सटीक तकनीक नहीं है, लेकिन इस पद्धति से शुरुआती चरण को पहचाने का नया तरीका मिल गया है। जबकि, मिडिल स्टेज की पहचान के लिए तकनीक पर अनुसंधान चल रहा है(धनंजय कुमार,दैनिक भास्कर,दिल्ली,5.10.2010)।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

एक से अधिक ब्लॉगों के स्वामी कृपया अपनी नई पोस्ट का लिंक छोड़ें।