सोमवार, 20 सितंबर 2010

शहदःमिलावट का नया खेल

वैसे तो देश में खाद्य पदार्थ से लेकर मिठाइयों तक तक में मिलावट का खेल जारी है, पर शहद के बारे में यही धारणा थी कि वह मिलावट से दूर है। पिछले दिनों सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायर्नमेंट (सीएसई) की रिपोर्ट से यह भ्रम दूर हो गया है। सीएसई ने दिल्ली के विभिन्न इलाकों में बिकने वाले शहद के नामी-गिरामी ब्रांडों की जांच की। उनमें दो विदेशी ब्रांड भी थे, जो अपने मूल देशों में तो प्रतिबंधित हैं, लेकिन भारतीय बाजारों में कई गुना दामों पर बिक रहे हैं। सीएसई की जांच के दौरान यह पाया गया कि इनमें से 11 ब्रांडों में जरूरत से ज्यादा एंटीबायटिक हैं। इससे पहले सीएसई ने साफ्ट ड्रिंक्स में कीटनाशकों और खिलौनों में जहरीले रसायनों की मौजूदगी होने से संबंधित रिपोर्ट जारी की थी। शहद मानव को प्रकृति का अनमोल वरदान है। यह सभी धार्मिक अनुष्ठानों व सामाजिक कार्यक्रमों में प्रयुक्त होता है। शहद को चिकित्सा विज्ञान पौष्टिक आहार मानता है। इसमें सभी आवश्याक तत्व जैसे कार्बोहाइड्रेट, खनिज, अमीनो एसिड, प्रोटीन व विटामिन पाए जाते हैं। प्राचीन काल से ही शहद को एक एंटीबायटिक के रूप में महत्व मिला हुआ है। शहद का एक प्रमुख लाभ उसके पूर्ण पाचन गुण में है। यही कारण है कि घरेलू नुस्खों से लेकर आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों तक में इसका सेवन किया जाता है। सीएसई की रिपोर्ट के मुताबिक जो लोग बीमारियों से बचाव या उनसे लड़ने के लिए शहद का सेवन करते हैं, न केवल उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ जाती है, बल्कि शरीर में इन एंटीबायटिकों के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता भी विकसित हो जाती है, जिससे किसी बीमारी का इलाज और ज्यादा जटिल हो जाता है। जांच के दौरान सभी नमूनों में एंटीबायटिक की काफी मात्रा पाई गई। सीएसई की सनसनीखेज रिपोर्ट के पहले भी कई ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं, जिनसे शहद में मिलावट होने का पता चला था। इस साल जून में यूरोपीय संघ ने भारत से शहद आयात पर रोक लगा दी। इससे पूर्व अमेरिका व यूरोप के देशों ने कई बार भारतीय शहद की खेप को शुद्धता मानकों के पूरा न करने के कारण लौटा दिया था। यह स्थिति तब हुई, जब सरकार ने निर्यात किए जाने वाले शहद में एंटीबायटिक की मात्रा तय करने का मापदंड बनाया। इसके लिए बाकायदा प्रमाण पत्र भी दिया जाता है, लेकिन घरेलू बाजार में बिकने वाले शहद के लिए ऐसा कोई मापदंड नहीं है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि सरकार को घरेलू नहीं, बल्कि विदेशी उपभोक्ताओं की चिंता है। घरेलू उपभाक्ताओं के लिए कमजोर मापदंड का ही परिणाम है कि देशी-विदेशी कंपनियां मिलावटी वस्तुएं बेचकर आम लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ कर रही हैं। दूध व दूध से बनने वाले पदाथरें में डिटरजेंट का घोल, कास्टिक सोडा, एंटीबायटिक दवाओं का प्रयोग होता है। खाद्य तेल में भी मिलावट की जाती है। फल व सब्जियों में कार्बाइड गैस, भारी धातु और पशुओं से दूध निकालने के लिए लगाए जाने वाले इंजेक्शन का भी प्रयोग किया जाता है। इस साल गर्मियों में प्रधानमंत्री के कानपुर दौरे के दौरान मिलावटी खाद्य सामग्री की बात सामने आने से प्रशासन ने भले ही 42 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था, लेकिन मिलावटखोरी का धंधा बदस्तूर जारी है। यह देखा गया है कि सरकारी अधिकारी छापे मारकर नकली खाद्य सामग्री जब्त करते हैं, मामले दर्ज होते हैं, लेकिन इसके बाद क्या होता है कुछ पता नहीं चल पाता। मिलावट रोकने में कामयाबी न मिल पाने के पीछे एक बड़ा कारण यह रहा है कि इसकी जिम्मेदारी खाद्य व उपभोक्ता मामले, स्वास्थ्य, मानव संसाधन विकास सहित नौ मंत्रालयों के हिस्से बिखरी हुई थी। लोगों के लिए यह समझना मुश्किल था कि खाने-पीने की चीजों में मिलावट के लिए किसे जिम्मेदार ठहराएं। इसी को देखते हुए चार साल पहले स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन खाद्य सुरक्षा और प्रसंस्करण अधिनियम पारित किया गया था। समस्या यह है कि खाद्य पदाथरें का कारोबार इतना बिखरा हुआ है कि हर चरण पर नजर रखना आसान नहीं है। फिर देश में इतनी प्रयोगशालाएं नहीं हैं कि सभी नमूनों की समय पर और सही जांच संभव हो सके(रमेश दुबे,दैनिक जागरण,19.9.2010)।

2 टिप्‍पणियां:

  1. उफ़्फ़! कहां-कहां और क्या-क्या हो रहा है! आंखें खोलती रचना। आपके प्रयसों की जितनी सराहना की जाए कम है। हर रोज़ आप हमारे लिए काम की जानकारी मुहैया कर रहे हैं। साधुवाद! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

    और समय ठहर गया!, ज्ञान चंद्र ‘मर्मज्ञ’, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!

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