कुछ ही वक्त पहले, शहद में एंटीबायटिक दवाओं की मौजूदगी की खबर ने हलचल मचाई थी। वैसे खोजा जाए तो कई खाद्य पदार्थों, खासकर पशुओं से प्राप्त होने वाले खाद्य पदार्थों में एंटीबायटिक मिल सकते हैं क्योंकि बीमारियों से बचाने के लिए पशुओं को उदारता से एंटीबायटिक दवाएं खिलाई जाती हैं । यह भी माना जाता है कि इंसानों को भी डॉक्टर कुछ ज्यादा ही एंटीबायटिक खिलाते हैं। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि लगभग 90 प्रतिशत एंटीबायटिक दवाओं का दुरुपयोग होता है । इस दुरुपयोग के कई बुरे नतीजे भी सामने आते हैं,खासतौर पर बैक्टीरिया में एंटीबायटिक के लिए प्रतिरोध पैदा हो जाता है और इससे उस एंटीबायटिक का असर कम हो जाता है । पिछले दिनों एक ‘सुपरबग’ की चर्चा भी जोरों पर थी यानी ऐसा बैक्टीरिया जिस पर आम एंटीबायटिक दवाओं का असर ही नहीं होता। ऐसे तगड़े ‘सुपरबग’ अक्सर पैदा होते रहते हैं । एंटीबायटिक दवाओं का एक आम दुष्परिणाम यह होता है कि रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया के साथ-साथ वह आंतों में मौजूद ऐसे बैक्टीरिया को भी मार देता है जो हमारे लिए फायदेमंद होते हैं। इसीलिए अक्सर इन दवाओं को लेने से पेट में गड़बड़ी या दस्त जैसी शिकायतें हो जाती हैं । इस बात की बारीकी से जांच के लिए अमेरिका में शोधकर्ताओं ने कुछ प्रयोग किए। उन्हें तीन लोगों को पांच दिन तक ‘सिप्रोफ्लॉक्सैसिन’ नामक एंटीबायटिक खिलाई । यह एंटीबायटिक आमतौर पर लाभदायक बैक्टीरिया के लिए ज्यादा नुकसानदेह नहीं मानी जाती। शोधकर्ताओं ने रोज इन लोगों के मल की जांच की। उन्होंने पाया कि पांच दिन में सभी तीन लोगों की आंतों में लाभदायक बैक्टीरिया पूरी तरह खत्म हो गए। दवा का इस्तेमाल रोकने के बाद भी कई दिन तक ये बैक्टीरिया फिर से नहीं पनप पाए। एक महिला की आंतों में बैक्टीरिया की सामान्य स्थिति बनने में महीनों लग गए। एंटीबायटिक दवाएं निश्चय ही बहुत फायदेमंद हैं और जबसे चिकित्सा विज्ञान में आई हैं तबसे इस क्षेत्र में क्रांति हो गई है । कई भयानक संक्रमण जो पहले लाइलाज थे, इनकी वजह से ठीक हो जाते हैं । सर्जरी भी इनकी वजह से बेहद सुरक्षित हो गई है । लेकिन एंटीबायटिक दवाओं के इस्तेमाल के पीछे यह विचार है कि सूक्ष्मजीव हमारे दुश्मन हैं और उन्हें मार डालना जरूरी है । अब चिकित्सा विज्ञान ने पाया है कि सूक्ष्मजीवों और हमारा रिश्ता जटिल है । वे हमारे शरीर में कई सारे काम करते हैं जो हमें अब तक समझ में नहीं आए हैं । जैसे कि इस शोध के एक शोधकर्ता ने क हा है कि हमारी आंतों का पारिस्थितिकी तंत्र या ‘इको सिस्टम’ दुनिया के सबसे जटिल ‘इको सिस्टम’ में से है। इसमें अंधाधुंध रूप से एंटीबायटिक डाल देना इस पूरे तंत्र को बिगाड़ देना है । इस तंत्र के बिगड़ने से सिर्फ पेट ही खराब नहीं होता, गंभीर बीमारियां भी हो सकती हैं । लाभदायक बैक्टीरिया हानिकारक बैक्टीरिया या दूसरे परजीवियों से बचाते हैं और हमारे रोग प्रतिरोधक तंत्र को मजबूत करते हैं । इनका नष्ट हो जाना कई सारी समस्याएं खड़ी कर सकता है । इसका अर्थ यह नहीं कि एंटीबायटिक दवाओं का बहिष्कार कर दिया जाए। इसका अर्थ यह है कि हम हमारे शरीर में मौजूदा सहजीवी सूक्ष्म जीवों की भूमिका को समझें और एंटीबायटिक दवाएं तभी लें, जब सचमुच उनकी जरूरत हो(संपादकीय,हिंदुस्तान,दिल्ली,20.9.2010)।
दवाएँ लोग कहाँ लेते हैं अपनी मर्ज़ी से.. डॉक्टर लिखते हैं तब लेना पड़ता है. यहाँ तो वायरल इंफेक्शन में भी एण्टीबायोटिक देने का चलन हो गया है. पीछे निमेसुलाइड के ख़तर्नाक असर के बारे में ख़बर आई थी, पर चल ही रहा है इनका प्रयोग. वास्तव में आवश्यकता है इन एण्टी बायोटिक को प्रेस्क्राइब करते समय इस बात का ख़याल रखा जाए कि किस व्यक्ति को उसके वज़न के अनुसार कितनी मात्रा में और कितने दिन तक वो दवा देना है. अगर इस बात का ध्यान रखा जाए तो कम से कम उस समस्या से बचा तो जा ही सकता है जिसका अंदेशा आपने व्यक्त किया है. आँख खोलने वाली पोस्ट!!
जवाब देंहटाएंइसलिए ही तो आज प्रोबाय्टिक्स का जमाना है !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंमराठी कविता के सशक्त हस्ताक्षर कुसुमाग्रज से एक परिचय, राजभाषा हिन्दी पर अरुण राय की प्रस्तुति, पधारें