भारतीय वैज्ञानिकों ने आनुवांशिक रूप से संशोधित ऐसा आलू तैयार किया है जिसमें सामान्य की तुलना में साठ प्रतिशत प्रोटीन अधिक है और उनका दावा है कि यह तीसरी दुनिया के देशों में भुखमरी से लड़ने में मदद कर सकता है। नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर प्लांट जीनोम रिसर्च (एनआईपीजीआर) के वैज्ञानिकों को यह महत्वपूर्ण सफलता हासिल हुई है। इस विशेष आलू में पहले के मुकाबले लाभदायक अमीनो एसिड अधिक होंगे। उन्होंने अपने परिणाम प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित किए हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस आलू को उपभोक्ता अन्य आनुवांशिक तौर पर संशोधित फसलों की तुलना में जल्द स्वीकार कर लेंगे। दरअसल इसमें ऐसे जीन का प्रयोग किया गया है, जो पहले से खाई जा रही फसल से लिए गए हैं। इस योजना की नेतृत्वकर्ता सुभ्रा चक्रवर्ती ने बताया, आलू विकसित और विकासशील देशों में सर्वाधिक प्रयोग में लाई जाने वाली सब्जी है, इस बात को ध्यान में रखकर हमने इसमें पोषण तत्वों को बढ़ाने का प्रयास किया है। इससे मनुष्य के स्वास्थ्य को फायदा होगा। उन्होंने कहा, हमारी नई खोज आनुवांशिक तकनीक से तैयार की जा रही अन्य फसलों के लिए भी उपयोगी साबित होगी और फसल उत्पादों में पोषक तत्व बढ़ाएगी। एनआईपीजीआर के वैज्ञानिकों ने एएमए 1 जीन (अमरंथ एलब्यूमिन 1) को सात प्रकार के आलुओं में प्रवेश कराया। उसके बाद इस फसल को दो साल तक उगाया। इस फसल से मिलने वाले आलुओं में प्रोटीन की मात्रा 35 से 60 प्रतिशत बढ़ी पाई गई। इसके अलावा इसमें अमीनो एसिड, लाइसिन, टायरोसिन और सल्फर की मात्रा में भी बढ़त देखी गई। इन बातों के अलावा इस विशेष आलू की प्रति हेक्टेयर में पैदावार भी सामान्य के मुकाबले 15 से 25 फीसदी अधिक होती है(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,22.9.2010)।"ऐसा नहीं कहा जा सकता कि आप फलां तरीक़े से स्वस्थ हैं और वो अमुक तरीक़े से। आप या तो स्वस्थ हैं या बीमार । बीमारियां पचास तरह की होती हैं;स्वास्थ्य एक ही प्रकार का होता है"- ओशो
बुधवार, 22 सितंबर 2010
अब लीजिए प्रोटीन वाला आलू
भारतीय वैज्ञानिकों ने आनुवांशिक रूप से संशोधित ऐसा आलू तैयार किया है जिसमें सामान्य की तुलना में साठ प्रतिशत प्रोटीन अधिक है और उनका दावा है कि यह तीसरी दुनिया के देशों में भुखमरी से लड़ने में मदद कर सकता है। नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर प्लांट जीनोम रिसर्च (एनआईपीजीआर) के वैज्ञानिकों को यह महत्वपूर्ण सफलता हासिल हुई है। इस विशेष आलू में पहले के मुकाबले लाभदायक अमीनो एसिड अधिक होंगे। उन्होंने अपने परिणाम प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित किए हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस आलू को उपभोक्ता अन्य आनुवांशिक तौर पर संशोधित फसलों की तुलना में जल्द स्वीकार कर लेंगे। दरअसल इसमें ऐसे जीन का प्रयोग किया गया है, जो पहले से खाई जा रही फसल से लिए गए हैं। इस योजना की नेतृत्वकर्ता सुभ्रा चक्रवर्ती ने बताया, आलू विकसित और विकासशील देशों में सर्वाधिक प्रयोग में लाई जाने वाली सब्जी है, इस बात को ध्यान में रखकर हमने इसमें पोषण तत्वों को बढ़ाने का प्रयास किया है। इससे मनुष्य के स्वास्थ्य को फायदा होगा। उन्होंने कहा, हमारी नई खोज आनुवांशिक तकनीक से तैयार की जा रही अन्य फसलों के लिए भी उपयोगी साबित होगी और फसल उत्पादों में पोषक तत्व बढ़ाएगी। एनआईपीजीआर के वैज्ञानिकों ने एएमए 1 जीन (अमरंथ एलब्यूमिन 1) को सात प्रकार के आलुओं में प्रवेश कराया। उसके बाद इस फसल को दो साल तक उगाया। इस फसल से मिलने वाले आलुओं में प्रोटीन की मात्रा 35 से 60 प्रतिशत बढ़ी पाई गई। इसके अलावा इसमें अमीनो एसिड, लाइसिन, टायरोसिन और सल्फर की मात्रा में भी बढ़त देखी गई। इन बातों के अलावा इस विशेष आलू की प्रति हेक्टेयर में पैदावार भी सामान्य के मुकाबले 15 से 25 फीसदी अधिक होती है(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,22.9.2010)।
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वाह! कमाल की जानकारी। अब यही आलू खाएंगे। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंदेसिल बयना-गयी बात बहू के हाथ, करण समस्तीपुरी की लेखनी से, “मनोज” पर, पढिए!
अच्छी जानकारी!
जवाब देंहटाएंआभार...