शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

योग

दुनिया भर में योग का कारोबार कम से कम पांच अरब डॉलर का है । अकेले अमेरिका में करीब दो करोड़ लोग योग करते हैं । इनमें नौजवानों की संख्या तेजी से बढ़ रही है । वहां योग उनकी जीवन-शैली का महत्वपूर्ण हिस्सा है । भारत में भी योग अब घर-घर दस्तक दे रहा है । दरअसल बढ़ती बीमारी, अनिश्चितता और जीवनशैली जनित चिंता तथा तनाव से त्रस्त लोगों को योग में स्वास्थ्य और प्रसन्नता की रोशनी दिख रही है ।
योग एक होलिस्टिक थेरेपी है । शरीर और मन के हर तल पर यह फायदा करता है तथा निश्चित फायदा करता है । हर इन्सान को योग करना चाहिए। योग करने का केवल एक कारण है कि आप इनसान हैं इसलिए आप योग करें । योग के बिना इनसान अपूर्ण है । योग शरीर को मजबूत बनाता है , दिमाग को सेहतमंद रखता है, तरह-तरह के टेंशन एन्जाइटी, डिप्रेशन आदि को दूर करता है और आयु लम्बी होती है । योग की हम एलोपैथिक मेडिकल साइन्स से तुलना नहीं कर सकते। दोनों अलग-अलग चीजें हैं । योग एलोपैथिक मेडिकल साइन्स का विकल्प नहीं है । योग एक लाइफ स्टाइल है । यह वैसे ही है जैसे अगर कोई आदमी अमूमन रोज स्नान करता है तो कहा जा सकता है कि उसे स्किन डिजीज नहीं होंगी। लेकिन अगर उसे कोई स्किन डिजीज हो गई है तो फिर उसे एंडीबायोटिक्स और एन्टी-फंगल क्रीम लगानी पड़ेगी, गोलियां खानी पड़ेंगी। तब सिर्फ स्नान करने से ही वह ठीक नहीं होगा। योग बीमारियों का निदान नहीं है । लेकिन हां, जो व्यक्ति लगातार योग करता है , उसे आम तौर पर बीमारियां नहीं होतीं। उसका शरीर साफ रहता है इसलिए बीमारियां नहीं होतीं। लेकिन अगर बीमारियां हो जाती हैं तो फिर दवाइयां लेनी पड़ती हैं । ठीक होने पर भी योग करता रहे तो फिर दोबारा बीमारियां होने की संभावनाएं समाप्त या काफी कम हो जाएंगी। इसकी शुरुआत हो जानी चाहिए स्कूली दिनों से ही। हर स्कूल को योग की शिक्षा देनी चाहिए। हर व्यक्ति को योग करना चाहिए। योग से सत्तर फीसदी तक बीमारियों को रोका जा सकता है । लेकिन अगर कोई बीमारी हो जाती है , तब उसका इलाज कराना चाहिए। आज जो लोग बीमार पड़ रहे हैं , जिनकी बाईपास सर्जरी हो रही है , एंजियोप्लास्टी हो रही है , वे कल बच्चे थे। उनको योग नहीं सिखाया गया तो आज उनके आपरेशन हो रहे हैं , और अन्य प्रक्रियाएं हो रही हैं । और आज अगर हम बच्चों को नहीं सिखाएंगे तो कल वे भी उसी स्थिति में पहुंच जाएंगे। योग एलोपैथिक दवा नहीं है कि इन्जेक्शन लगा दिया और आधे घंटे में बुखार 104 या 105 से उतरकर नार्मल आ जाएगा। योग का असर धीमा है लेकिन वह बहुत भीतर तक जाता है । योग मस्तिष्क और शरीर की क्रियाओं और जीन्स के प्रभाव तक में सकारात्मक बदलाव लाता है । योग के फायदे बहुत हैं वे धीरे -धीरे आते हैं , लेकिन निश्चित रूप से आते हैं । इसे दवाओं के साथ भी अपनाना चाहिए जैसा कि तमाम डॉक्टर और अस्पताल कर भी रहे हैं, और जब कोई बीमारी न हो तब भी अपनाना चाहिए। मैं तो कहूंगा कि बचपन से ही योग सिखाया जाना चाहिए। जितने अच्छे डॉक्टर हैं वे सब सलाह देंगे कि आप योग भी करिए। आप स्वस्थ ही नहीं, अच्छे भी बनेंगे मैं कह सकता हूं कि योग, ध्यान, प्राणायाम करने से व्यक्ति अच्छा व्यक्ति भी बनता है । उसका चरित्र बदल जाता है । बुरा आदमी निश्चित तौर पर अच्छा बन सकता है । आखिर यह समझना पड़ेगा कि जो आदमी झूठ बोलता है , चोरी करता है , भ्रष्टाचार में लिप्त है वह आखिर ऐसा क्यों है ? वह ऐसा इसलिए है क्योंकि अपने जीवन से असंतुष्ट है । उसको जीवन में ऐसा कुछ चाहिए जो उसे बाहर से मिलता हुआ दिखता है । जो आदमी योग करता है वह अपने आंतरिक ‘कोर’, अपने अंतरतम से जुड़ जाता है और वहां पर नैसर्गिक प्रसन्नता है , नैसर्गिक आनंद है । आप इसको ऐसा समझिए कि एक छोटा बच्चा है साल भर का, वह क्यों खुश रहता है । उसको कौन सा पैसा मिल गया, प्रमोशन मिल गया या प्रॉपर्टी उसके हाथ लग गई। लेकिन अगर उसका पेट भरा रहता है तो वह खुश रहता है क्योंकि खुश रहना हमारा नैसर्गिक अधिकार है । लेकिन जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है वह अपने स्वभाव से कटता जाता है क्योंकि उसकी कंडीशनिंग की जाती है , उसे समझाया जाता है कि खुशी पैसा कमाने में है, जब कोई प्रमोशन मिल जाए, प्रापर्टी मिल जाए तो उसमें खुशी है सम्मान है । जब इस तरह सिखाया जाता है और ऐसा ही माहौल उसके आसपास रहता है तो वह तीस-चालीस साल का होने तक पूरी तरह भूल जाता है कि हमारे अंदर भी खुशियों का कोई स्रोत है । वह भूल जाता है बचपन में हम कैसे थे और क्या थे, उसका सारा ध्यान इसी में लग जाता है कि पैसा कमाओ। चाहे बेईमानी से कमाओ, चोरी क रके कमाओ, झूठ बोलकर कमाओ, पर पैसा कमाओ, प्रॉपर्टी खड़ी करो। लेकिन वह योग करना शुरू करता है तो योग फिर उसे उसके अंतरतम से जोड़ देता है । तो उसे फिर लगता है कि उसके भीतर तो खुशी के अलावा कुछ नहीं है । फिर सारी चीजें बेमानी हो जाती हैं । तब लगने लगता है कि अब तो बेईमानी करने में टेंशन है । और जो आनंद है वह तो वैसे ही जीवन में आ रहा है । फिर सारा लालच, सारे भय सब समाप्त हो जाते हैं। जो व्यक्ति योग करेगा वह अमूमन अच्छा इनसान रहेगा। ऐसा हण्ड्रेड परसेंट है । लेकि न जितनी जल्दी शुरू किया जाए उतना अच्छा। जब केस बहु त बिगड़ जाए तब उतना लाभ नहीं होता। जैसे आपको किसी का हार्ट अच्छा रखना है तो किस उम्र में इस पर ध्यान दिया जाए। जब वह बचपन में है या जवान है , जब उसका दिल स्वस्थ है । आप ये तो नहीं इन्तजार करेंगे कि जब इसे हार्ट अटैक पड़ जाए तब हम बताएंगे कि इसे कैसे अपने हृदय को स्वस्थ रखना है। तो वैसे ही ,जब आदमी भ्रष्टतम हो जाए और भ्रष्टाचार की सारी सीमाएं लांघ जाएं तब उसको योग सिखाने का भी क्या फायदा। योग तो तब सिखाना चाहिए जब उसके अंदर बीमारियां पनपी नहीं हैं । इसे कक्षा एक से ही सिखाया जाना चाहिए जिससे दिमाग बेईमानी की तरफ जाए ही नहीं। दुर्भाग्य से भारत में पांच प्रतिशत से भी कम स्कू लों में योग सिखाया जा रहा है । सरकार की तरफ से योग शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए। बच्चे स्कूल से घर आएं तो उनके मां-बाप भी योग करें जिससे बच्चे को लगे कि स्कूल में जो बात सिखाई जा रही है वह सही है और हमारे मां-बाप भी उसे करते हैं । अभी स्कूलों में सच बोलो, ईमानदारी से रहो ऐसे पाठ पढ़ाए जाते हैं , ये नैतिक शिक्षा का हिस्सा हैं , लेकिन बच्चा देखता है कि उसके घर में और समाज में सब तरफ बेईमानी का बोलबाला है । न केवल बोलबाला है बल्कि आज ऐसा समय आ गया है कि जो जितना ज्यादा बेईमान है उसकी उतनी ज्यादा इज्जत है । तो उसको स्कूल में सिखाई गई बातें झूठ लगने लगती हैं । स्कूल में तो एक बनावटी माहौल है , नकली बातें सिखाई जा रही हैं लेकि न असली जीवन तो यहां है , स्कूल से बाहर है । वह बेईमानी का आदर होता देखता है तो वह स्कूल की बातें भूल जाता है और बेईमान बन जाता है । योग तो एक ही है योग एक ही है जो पतंजलि ने एक विज्ञान के रूप में विकसित कि या है । उन्होंने परिभाषित किया कि यह अष्टांग योग है जिसके आठ भाग होते हैं : 1-यम, 2-नियम, 3प्राणायाम, 4-प्रत्याहार, 5आसन, 6धारणा, 7-ध्यान और 8-समाधि। अब यह लोगों को समझ में आने लगा और लोग इसे फॉलो करने लगे। फॉलो करना आसान हो गया। बाद में इसी को लोगों ने अपने हिसाब से मॉडीफाई कर अपने नाम से मार्केट किया है । आत्मा या सार सभी का वही है जिसे पतंजलि ने दिया। सारे योग पूरी तरह वैज्ञानिक हैं । योग का अंतिम लक्ष्य है कि आप परम आनंद को प्राप्त हों। इससे खुशियां बढ़ ती हैं । ये खुशियां ऐसी हैं जो अंदर से प्रकट होती हैं । आपको पता चलता है कि खुशियों का स्रोत आपके अंदर है और कभी खत्म नहीं होता। तो योग से व्यक्ति वह परम आनंद प्राप्त कर सक ता है । परम आनंद, जैसे सूर्य का प्रकाश, फिर अंधेरा वहां पर हो नहीं सकता। जिस व्यक्ति को ऐसा आनंद मिलता है फि र वह चोरी, बेईमानी या कि सी नकारात्मक कार्य में कैसे संलग्न हो सक ता है । सब सुखी होंगे, रोगमुक्त होंगे योग के अमेरिका में सबसे ज्यादा फैलने का कारण यह है कि अमेरिका के लोग ज्यादा समझदार है , ज्यादा वैज्ञानिक बुद्धि वाले हैं । तार्कि क बात जल्दी समझ आती है । कोई भी मेडिकल रिसर्च होती है तो उसके परिणाम सबसे पहले अमेरिकी अपनाते हैं । लेकिन हमारे देश में वैज्ञानिक चिंतन नहीं है । कोई कहे कि उल्टे खड़े होकर राम-राम रटो तो संसार के सारे सुख मिल जाएंगे तो शायद आदमी उल्टे खड़े होकर राम-राम रटने लगेगा। वह पूछेगा नहीं कि ऐसा क्यों। यह हमारे दिमाग और शरीर को किस प्रकार प्रभावित करेगा। वह सवाल नहीं करेगा। यह वैज्ञानिक बुद्धि का अभाव है । इधर अपने देश में योग प्रचलित करने का मुख्य श्रेय मैं बाबा रामदेव को देता हूं । ये उनकी बड़ी सफ लता है । लेकि न हमारे देश में ज्यादातर लोग योग को इसलिए क र रहे हैं कि उनका दर्द ठीक हो जाए, डाटबिटीज या हार्ट ठीक हो जाए। वह इसे एलोपैथी का विकल्प समझकर कर रहा है । वह कोई बहुत बड़ा लक्ष्य देख ही नहीं रहा है । बस दर्द ठीक हो जाए और इसके लिए एलोपैथी गोली न लेनी पड़े । बड़ी छोटी सोच है उसकी। वह योग को दर्द निवारक पैरासिटेमॉल की गोली की तरह उपयोग करता है । यह उचित नहीं है । योग तो इनसान को देवता बना देता है । यह बहुत बड़ी चीज है । लेकिन रामदेवजी की भी मजबूरी है । वह बात किससे कर रहे हैं । उन लोगों से जो लालच से भरे हुए हैं । कुछ फायदा हो तो योग करें , वरना क्यों करें । तो वह उनको फुसलाते हैं कि योग से तुम्हारी तकलीफ , दर्द दूर हो जाएगा। रामदेव परम योगी हैं लेकिन वह आनंद, खुशी की बात करेंगे तो सुनने वाला कौन है ? उन लोगों को तो यह सब चाहिए नहीं। लेकिन आज इसी बहाने करोड़ों लोग योग, प्राणायाम कर तो रहे हैं । जब वे कर रहे हैं तो उनके बच्चे भी सीख रहे हैं । सकारात्मकता की यह धारा देश को बहुत आगे तक ले जाएगी और इस दृष्टि से रामदेव का काम बहुत सराहनीय है । उन्होंने देश में योग को पुनस्र्थापित किया है । मैंने आर्ट ऑफ लिविंग का भी कोर्स किया है और वह भी काफी प्रभावशाली है । मैजिक ऑफ 10 इन दस सूत्रों को जो अपनाएगा, निश्चित मानिए वह अपना सौवां बर्थडे डांस करते हुए मनाएगा। 1.संतुलित आहार 2.एरोबिक एक्सरसाइजःदौड़ लगाइए, गेम खेलिए, डांस करिए यानी जिसमें गति हो 3.योग 4.रात में सात घंटे की अच्छी नींद 5.निश्चित टाइमटेबल (सोना, जागना, योग, भोजन आदि) के हिसाब से जीवन जिएं 6.अच्छी सेक्स लाइफ 7.समय-समय पर छुट्टियों पर बाहर घूमने जाएं। हफ्ते का अंत स्पेशल हो, तीन महीने में बाहर निकलकर परिवार व मित्रों के साथ एन्जॉय करें और साल में एक बार लंबी छुट्टी पर कहीं बाहर निकल जाएं। 8.अपनी हॉबीज के लिए भी कुछ समय दें। इससे आपका सिस्टम बहुत गहरे में बदल जाता है। 9.अपने मन को गहराई दे देखें और पॉजिटिव बातों में लगाएं। 10.अपने आप को जानें। यह सबसे गहरा सूत्र है। कि तुम केवल मन नहीं हो, शरीर नहीं हो। सब कुछ बदल रहा है लेकि न अंदर कुछ ऐसा है जो आज भी वैसा ही है, जैसा एक साल की उम्र में था और जब तुम मां के पेट में थे तब भी वैसा ही था। उस ‘कॉमन थ्रेड’ को पहचानो। (प्रस्तुति : डॉ. विपिन मिश्रा से अजय विद्युत की बातचीत पर आधारित,हिंदुस्तान,दिल्ली,19 सितम्बर,2010)

3 टिप्‍पणियां:

  1. शुक्रिया इस पोस्ट को पढाने के लिए.

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  2. एक भारतीय ज्ञान..आज विदेश की भूमि पर योगा बनकर हमारे सामने आई है और हम इसे अब अपना रहे हैं!!

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  3. राधारमण जी, योग के बारे में काफी कुछ नया जानने को मिला। इसके लिए आपका शुक्रिया अदा करता हूँ।
    आपकी एक छोटी सी सलाह देने की गुस्ताखी कर रहा हूँ, यदि पोस्ट को छोटे छोटे पैरों में बांट दिया करें और हर पैरे के बीच में एक लाइन का स्पेस दे दिया करें, तो पढने में सुविधा होती है। आशा है, इसे अन्यथा नहीं लेंगे।
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    प्यार का तावीज..
    सर्प दंश से कैसे बचा जा सकता है?

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