कॉरपोरेट जगत के बिगड़ते स्वास्थ्य से राष्ट्रीय आय घट रही है। कंपनी कर्मियों की खराब जीवन शैली की वजह से वे मधुमेह, उच्च रक्तचाप और दिल के रोगों के शिकार हो रहे हैं। कंपनियों की उत्पादकता पर इन रोगों का साया अगर गहराता गया तो आर्थिक महाशक्ति बनने का देश का सपना खटाई में पड़ सकता है। अपने एक अध्ययन में निकले इन तथ्यों ने उद्योग व्यापार संगठन एसोचैम की चिंता बढ़ा दी है।
अध्ययन का निष्कर्ष यह है कि कॉरपोरेट जगत के लोग अपनी नियमित स्वास्थ्य जांच भी करवाने लगें तो रोगों की वजह से काम से उनकी अनुपस्थिति की दर में दो से तीन फीसदी की कमी की जा सकती है। रोगों की वजह से श्रम दिवसों की हो रही क्षति कॉरपोरेट जगत की बड़ी चिंताओं में शामिल है।
एसोचैम ने ३०० देशी कॉरपोरेट कंपनियों तथा वहां काम करने वाले ५०० लोगों पर अध्ययन किया है। स्टडी में २५ प्रतिशत जीवनशैली से जुड़े असाध्य रोगों से ग्रस्त पाए गए। इनमें ३२ प्रतिशत लोग जीवनशैली जनित मधुमेह, उच्च रक्तचाप व दिल के रोगों से ग्रस्त थे। २१ प्रतिशत दमे जैसे पुराने रोगों और १२ प्रतिशत गंभीर रोगों से ग्रस्त थे। २८ प्रतिशत लोग साल भर में एक से सात दिन छुट्टी पर रहे। अपनी बीमारी पर उन्होंने एक हजार रुपए से भी कम खर्च किया। १८ प्रतिशत कर्मियों ने दो हफ्ते से लेकर दो महीने तक अवकाश लिया। अपने इलाज पर एक हजार से लेकर पांच हजार रुपए तक खर्च किए(नई दुनिया,दिल्ली,30.9.2010)।
कॉर्पोरेट कर्मियों को टार्गेट का तनाव मार जाता है । उसपर अनियमित जीवन शैली । पारिवारिक जीवन पर भी असर पड़ता है ।
जवाब देंहटाएंWe need to look for reasons and solutions.
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