४१ वर्षीय एक महिला को दो साल से सीने में दर्द की शिकायत थी। उसकी साँस फूल जाती थी तथा सीने के बाईं ओर तेज दर्द उठता था। दर्द की शुरुआत साँस लेने में मामूली भारीपन से हुई थी। शुरू में इसे अधिक काम कर लेने के कारण आई कमजोरी माना गया। कुछ समय बीतने के बाद सीने में भारीपन बढ़ने लगा। इसी के साथ साँस लेने में दिक्कतें भी बढ़ने लगीं। कुछ समय बाद जब परिस्थितियाँ बदलीं और महिला को आराम करने का वक्त मिलने लगा, तब भी दर्द में कोई कमी नहीं हो रही थी। पारिवारिक चिकित्सक की सलाह ली गई और जाँचों के बाद पता लगा कि मरीज को कोई समस्या नहीं है। उसकी सभी रिपोर्ट्स नार्मल थीं। चूँकि देखने में महिला पीली नजर आ रही थी इसलिए चिकित्सक ने आयरन की गोलियाँ खाने की सलाह दी।
महिला को समस्या में तनिक भी राहत नहीं थी। अब सीने में दर्द बढ़ने के साथ साँस लेने में तकलीफ भी बढ़ रही थी और थोड़ा पसीना भी आने लगा था। कुछ समय बीतने के बाद भी जब समस्या में कोई सुधार होता नजर नहीं आ रहा था, तब परिजनों ने विशेषज्ञ की सलाह का मन बना लिया। विशेषज्ञ ने मरीज का निरीक्षण करने के बाद पाया कि दिल की धड़कन के साथ एक फुसफुसाहट वाली ध्वनि भी निकल रही है। ईसीजी और इकोकॉर्डियोग्राफी कराने पर मालूम हुआ कि दिल के वॉल्व में खराबी है, इस वजह से धड़कन के साथ फुसफुसाहट की आवाज भी आ रही है। महिला को माइल्ड मॉइट्रल वॉल्व स्टेनोसिस विथ मॉडरेट मॉइट्रल वॉल्व रिगरजिटेशन नामक समस्या पाई गई। चूँकि समस्या बहुत जल्दी पकड़ में आ गई थी इसलिए औषधि के शीघ्र ही नतीजे सामने आने लगे। थोड़े समय ठीक रहने के बाद पुनः दर्द रहने लगा। इस बार दर्द बाँह तक पहुँचने लगा साथ ही पसीना भी आने लगा। जरा-सा काम करते ही साँस उखड़ने लगती थी और पसीना छूट जाता था। धीरे-धीरे महिला घर के कामकाज से दूर होकर अपने कमरे तक सीमित रह गई। विशेषज्ञ ने इस बार मरीज की सर्जरी की सलाह दी। किसी पारिवारिक मित्र की सलाह पर परिजनों ने होम्योपैथिक चिकित्सक को दिखाने का मन बनाया।
केस हिस्ट्री और लक्षणों के आधार हमने यह तय पाया कि महिला की समस्या की जड़ उसके दिल में हो रहे परिवर्तनों में छिपी है। इस तरह दर्द सीने से उठता हुआ बाजू तक पहुँचने और पसीना आने के लक्षणों के आधार पर उसका इलाज शुरू हुआ। मरीज को स्पिजेलिया औषधि दी। एक महीने बाद उसकी हालत में सुधार होने लगा। अब उसके सीने में दर्द उठने के साथ साँस फूलने और पसीना आने की शिकायत में कमी आ रही थी। मरीज धीरे-धीरे अपना नियमित काम करने लगी थी। लक्षणों में सुधार दिखने के साथ हमने मरीज के दिल का वॉल्व ठीक करने के लिए उसे क्रेटागस देना शुरू किया।
एक साल के इलाज के बाद मरीज को जब भी दर्द उठने के साथ पसीना आने लगता है, वह ये दोनों दवाएँ ले लेती है(डॉ. कैलाश चंद्र दीक्षित,सेहत,नई दुनिया,सितम्बर,2010 प्रथमांक)।
अवगत हुआ। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंचक्रव्यूह से आगे, आंच पर अनुपमा पाठक की कविता की समीक्षा, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
बहुत अच्छा लगा ये जानकारी पा कर..........
जवाब देंहटाएंमैं भी कुछ ऐसी ही परेशानी का मारा हूँ..........
बहुत इलाज करा चुका हूँ, लेकिन मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की............
एक सही और मुकम्मल इलाज अथवा परामर्श चाहता हूँ
धन्यवाद !
बहुत-२ आभार इस केस को हमारे साथ बांटने के लिए , ये पोस्ट हमें होम्योपैथी की उपयोगिता को हमारे संज्ञान में लाता है
जवाब देंहटाएंपर मुश्किल ये है कि हैम्योपेथिक के विश्वषणीय डॉक्टर मिलते कहां हैं। जो हैं उनकी फीस इतनी की पूछिए नहीं। वैकल्पिक चिकित्सा को नियमित जीवन का हिस्सा बनाया जाए तो काफी मुश्किलें हल हो सकती हैं।
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