गुरुवार, 30 सितंबर 2010

जीवन चलने का नाम

शहरी लोगों की जिंदगी में चलना-फिरना और शारीरिक मेहनत कम ही हो पाती है। दिनभर कम्प्यूटर पर बैठकर काम करना और फिर परिवहन के किसी साधन से यात्रा करना- इससे शरीर जड़ होकर रह जाता है। शहरों में खाने की तमाम चीजें हमें इतना लुभाती हैं कि हम इन्हें अपने गले से नीचे उतारे बिना नहीं रह पाते। और चूँकि शहरी लोगों की तनख्वाहें अमूमन अच्छी होती हैं तो वे जरूरत से ज्यादा चीजें खा लेते हैं, वह भी स्वाद की खातिर। नतीजतन शरीर का वजन बढ़ता जाता है और शारीरिक सक्रियता के अभाव में हृदयरोग घेर लेते हैं।
दिल की बीमारियों से बचने का सबसे सस्ता और प्रभावी तरीका है रोजाना पैदल चलना। वास्तव में इस बात में कोई शक नहीं कि पैदल चलने से हम स्वस्थ रहते हैं। रोजाना आधे-पौन घंटे पैदल चलने से मोटापा नहीं आता, रक्तचाप नियंत्रित रहता है। मधुमेह के रोगियों के लिए यह फायदेमंद है। मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं और कुल मिलाकर सारा शरीर सेहतमंद रहता है। किंतु अफसोस की बात है कि आज के युवा प्रोफेशनल लोग इस कमाल की कसरत के प्रति उदासीन हैं। सुबह सैर पर आने वाले लोगों पर किए गए एक सर्वे से सामने आया कि सैर पर आने वालों में ४० वर्ष से कम उम्र के केवल ३० प्रतिशत लोग ही हैं और इनमें से सैर पर आने वाले पुरुषों का प्रतिशत मात्र २५ ही है। जाहिर-सी बात है कि इसीलिए आज ४० वर्ष से कम उम्र में ही कई लोग हृदयाघात का शिकार हो रहे हैं। और ४० ही क्यों, ३० से भी कम उम्र के युवा दिल के रोगों का शिकार हो रहे हैं यानी अपने जीवन के तीसरे दशक में ही कई युवा शहरी पेशेवरों की हृदय धमनियाँ बंद पड़ रही हैं। मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव निकेतन कपूर को २८ साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ा और वे हैरान रह गए। उन्होंने कहा कि मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि मुझे दिल का दौरा पड़ेगा। निकेतन बताते हैं कि यह बात तो मेरी कल्पना से भी परे थी। हार्टअटैक के बाद मुझे बहुत समय लगा अपने जीवन को ढर्रे पर लाने में। ऐसा ही किस्सा कॉर्पोरेट एक्जीक्यूटिव प्रसन्नाा का भी है। प्रसन्ना कहते हैं कि मुझे जो चीज चाहिए होती थी, मैं उसे पाने के लिए जी-जान लगा देता था। अपने सपनों को पूरा करने के लिए मैं दिन-रात लगा रहता था। आए दिन हवाई यात्राएँ करना, लंबे-लंबे टूर पर रहना, रोजाना सिगरेट व शराब- ये सब मेरे करियर का अहम हिस्से थे। लेकिन २६ साल की उम्र में एक रात जब मुझे हार्टअटैक पड़ा तो मैं हैरान रह गया। मैंने तो इसके बारे में कभी सोचा ही नहीं था। यह दुखद है कि लोग पहले नहीं चेतते बल्कि दिल की बीमारी के दस्तक देने पर जब उनका डॉक्टर कहता है तभी वे पैदल सैर करना शुरू करते हैं, मानो पैदल सैर करना भी कोई डॉक्टर की प्रिस्क्रिप्शन हो कि जब डॉक्टर बताएगा तभी करेंगे। ६३ प्रतिशत लोग इसलिए सुबह सैर करते हैं कि उन्हें उनके डॉक्टर ने ऐसा करने को कहा है। केवल ३६ प्रतिशत लोग खुद अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए सैर करते हैं। सुबह की सैर करने वाले ४० वर्ष से कम उम्र के पुरुष व महिलाओं के सर्वे पर गौर करें तो हम पाते हैं कि २४ प्रतिशत महिलाओं को हाई बीपी, २८ प्रतिशत को हाई शुगर और 17 प्रतिशत को हाई कॉलेस्ट्रॉल था। पैदल चलना भी एक व्यायाम है इसलिए यह जानना आवश्यक है कि आप यह ठीक से कर रहे हैं या नहीं। यदि आप चलते वक्त दो शब्द भी नहीं बोल पा रहे हैं,तो ज़रूरत से ज्यादा तेज़ चल रहे हैं। यदि आप आराम से बातचीत कर पा रहे हैं तो आप बहुत धीरे चल रहे हैं। सही गति वह है जब आप बिना सांस फूले एक छोटा वाक्य पूरा बोल लेते हैं। इसके अलावा,एक सामान्य तापमान वाली सुबह में,यदि आपको हल्का पसीना भी आ रहा हो तो समझिए आपकी चलने की गति ठीक है। पैदल चलना हृदय व मधुमेह रोगियों के लिए लाभकारी है। रोजाना 40 मिनट पैदल चलें। ध्यान रखें कि पहले 5 मिनट शरीर को गर्म करने के लिए और आखिरी 5 मिनट शरीर को धीरे-धीरे ठंडा करने के लिए होते हैं। हार्ट अटैक का शिकार होने के बाद निकेतन और प्रसन्ना के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन आ चुका है। निकेतन अब ठीक 5 बजे सुबह उठकर पैदल सैर पर जाते हैं। प्रसन्ना ने शराब और सिगरेट को त्याग कर जिम जाना शुरू किया है। ज़ाहिर है,दोनों लोगों के भोजन में भी स्वास्थ्यकर बदलाव हुए हैं। प्रसन्ना ने अपना वजन 10 किलो घटा लिया है। निकेतन कहते हैं,"अब कोई मेरी सेहत के बारे में पूछता है,तो मैं हंसते हुए कहता हूं कि कब की बात कर रहे हो दोस्त,वह तो पुरानी बात हो गई।" (डॉ. अशोक सेठ,सेहत,नई दुनिया,दिल्ली,सितम्बर प्रथमांक,2010)

2 टिप्‍पणियां:

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    पिछले १० वर्षों से नियमित एक घंटे मार्निंग-वाक करती हूँ।

    सुन्दर लेख ,
    आभार।

    .

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