कैंसर की अत्याधुनिक व विश्वस्तरीय चिकित्सा उपलब्ध हो जाने के बाद भी भारत में ९० प्रतिशत मरीज उन डॉक्टरों के रहमोकरम पर हैं जो कैंसर के विशेषज्ञ नहीं हैं । यही कारण है कि यहां कैंसर के इलाज के अच्छे परिणाम सामने नहीं आ रहे । यह बात एक ताजा अध्ययन में सामने आई है।
कैंसर के जाने माने विशेषज्ञ अहमदाबाद के डॉ. पंकज एम शाह ने यह खुलासा किया है । गुजरात कैंसर एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. शाह को पुष्पांजलि क्रॉसले के गैलेक्सी कैंसर इंस्टीट्यूट के दो साल पूरे होने पर राजधानी में एक व्याख्यान देने के लिए बुलाया गया था । उन्होंने बताया कि इलाज में अच्छे परिणाम (प्रॉग्नोसिस) के लिए जरूरी है कि कैंसर विशेषज्ञ ही कैंसर के मरीजों का इलाज करें ।
एक खास बातचीत में उन्होंने बताया कि स्तन कैंसर के मामलों में जिस तरह से वृद्धि हो रही है, उसे देख कर लगता है कि आने वाले समय में स्तन कैंसर के मरीजों की संख्या सर्वाइकिल कैंसर से भी अधिक हो जाएगी । डॉ. शाह ने कहा कि कैंसर के इलाज की विधि बहुत उन्नत हो गई है । उन्होंने उन तमाम नई दवाइयों पर प्रकाश डाला जिसने कैंसर के इलाज में क्रांति ला दी है । ये दवाइयां सिर्फ कैंसर कोशिकाओं को मारती हैं । पहले की दवाइयां कैंसर कोशिकाओं के साथ साथ स्वस्थ कोशिकाओं को भी मारने लगती थीं। गैलेक्सी कैंसर संस्थान के रेडियेशन अंकालॉजी के निदेशक डॉ. दिनेश सिंह ने कहा कि गांवों व देहातों की अपेक्षा दिल्ली और मेट्रो शहरों की महिलाओं पर स्तन कैंसर का अधिक खतरा मंडरा रहा है। केवल दिल्ली एवं एनसीआर में हर साल लगभग ३००० महिलाएं स्तन कैंसर की चपेट में आती हैं । इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. अरुण गोयल ने कहा, शुरुआती स्टेज हो तो स्तन को निकालने की जरूरत नहीं पड़ती । महिलाएं सतर्क रहें तो स्तन कैंसर का पता पहले स्टेज में ही चल जाता है(नई दुनिया,दिल्ली,28.9.2010)।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंकाव्य प्रयोजन (भाग-१०), मार्क्सवादी चिंतन, मनोज कुमार की प्रस्तुति, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
अजब स्थितियाँ हैं...जानकारी का आभार.
जवाब देंहटाएंआज तक केंसर का इलाज भी तो नहीं मिल सका,,,और जो इलाज है भी तो उसके लिए मरीज़ को नज़दीक उपचार की व्यस्था ना होने के कारण दूर - दूर तक जाना होता है,,,अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंदरअसल जब तक कस्बे-दर-कस्बे तक प्राथमिक उपचार के बड़ें केंद्र नहीं खोले जाते तब तक ऐसा होता रहेगा। अभी हालात ये है कि मरीजों को कई बार महानगर आकर पता चलता है कि उनकी बीमारी कैंसर है। यहां तक पहुंचते-पहुंचते वो काफी कीमती वक्त खो देते हैं। वहीं महानगरों के अस्पताल भी बोझ से दबे हुए हैं जिससे आम आदमी का इलाज प्रभावित हो रहा है। कम से कम इतनी सुविधा तो सरकारी स्तर पर होनी चाहिए हर कस्बे में कि वो हर बड़ी बीमारी का पता तो आरंभिक स्तर पर ही चला सके। इससे कई बार मरीज को महानगरों की तरफ जाने की भी ज्यादा जरुरत नहीं होगी और वो अपने आसपास ही महानगरों के और विशेषज्ञ डॉक्टर का परामर्श पा सकता है।
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