शनिवार, 18 सितंबर 2010

शहद विवाद पर आयुर्वेदाचार्य बंटे

शहद में,स्वीकृत स्तर से अधिक एंटीबायोटिक्स होने और अन्य प्रकार की मिलावट को लेकर आयुर्वेदाचार्यों के बीच मतभेद पैदा हो गया है । एक तरफ जहां कुछ आयुर्वेदाचार्य मान रहे हैं कि शहद बनाने के लिए मधुमक्खियों पर एंटीबायटिक्स का धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है, वहीं दूसरे खेमे का कहना है कि शहद के ब्रांडों में एंटीबायटिक्स प्राकृतिक रूप से मिले होते हैं । उनके अनुसार उनका स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ता । आयुर्वेदाचार्यों के इस विरोधाभासी रुख से आम लोगों को कुछ नहीं सूझ रहा है । दवा के रूप में भारत में मधु की भारी खपत होती है । एक तरफ हैं ऑल इंडिया आयुर्वेदिक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे जाने माने आयुर्वेदाचार्य देवेंद्र त्रिगुणा तो दूसरी तरफ हैं इस विवाद के दायरे में अन्य कंपनियों के साथ आई बाबा रामदेव की कंपनी के आचार्य बालकृष्ण । वैद्य त्रिगुणा ने स्टडी के निष्कर्ष को सही माना है, वहीं आचार्य बालकृष्ण यह मानने को तैयार ही नहीं कि बाजार में बिकने वाले शहद के ब्रांडो को लेकर चिंतित होने की जरूरत है । उन्होंने स्टडी को महज शोध के जरिए लोगों में भय पैदा करने की कवायद करार दिया है। त्रिगुणा मान रहे हैं कि बाजार में बिक रहे शहद प्रदूषित और स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं लेकिन आचार्य बालकृष्ण उनसे उलट बात कह रहे हैं । उनका कहना है कि शहद का कोई भी निर्माता खुद उसमें एंटीबायटिक्स नहीं मिलाता । अगर कोई यह कहता है कि मधुमक्खी पालक मधुमक्खियों को स्वस्थ रखने के लिए एंटीबायटिक्स छिड़कते हैं तो वे बताएं कि जंगलों में एंटीबायटिक्स कहां से आ जाता है । सही बात यह है कि शहद में एंटीबायटिक्स प्राकृतिक रूप में पाया जाता है । अब मधु का सेवन कर रहे लोग कौन सी बात सही मानें, यह एक बड़ा सवाल पैदा हो गया है(धनंजय,नई दुनिया,दिल्ली,18.9.2010)।

3 टिप्‍पणियां:

एक से अधिक ब्लॉगों के स्वामी कृपया अपनी नई पोस्ट का लिंक छोड़ें।