आज दैनिक भास्कर में विमल लिखते हैं कि भारत में खाद्य पदार्थो में मिलावट से लेकर मिठाइयों तक में मिलावट का धंधा जोरों पर भले रहा हो लेकिन शहद के बारे में धारणा फर्क रही है। अब सीएसई की रिपोर्ट के बाद यह भ्रम टूट गया है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या ऐसे शहद को ‘मिलावटी’ माना जाएगा। इस पूरे मामले में कुछ तकनीकी पेंच हैं, जो और भी बड़े खतरे की ओर इशारा करते हैं।
अन्य जिन पदार्थो में मिलावट किया जाता है, वे खुले रूप में बिकती हैं और डिब्बाबंद मशहूर ब्रांडों में ऐसे खतरे नहीं होते। लेकिन ऐसे ‘शहद’ के व्यापार में तो सभी बड़ी कंपनियां ही शामिल हैं और उनका उत्पाद भी ‘पैक्ड’ रहता है। ऐसे में वे सीएसई की रिपोर्ट को खारिज करने और अपने इरादों को निर्दोष साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगी।
इसकी शुरुआत एक कंपनी के प्रवक्ता ने यह कहकर कर दी है कि मधुमक्खी पालने वाले मधुमक्खियों को स्वस्थ रखने के लिए एंटीबायोटिक्स देते हैं। यानी शहद में एंटीबायोटिक्स पाए जाने के लिए कंपनियां नहीं मधुमक्खी पालक जिम्मेदार हैं। आशंका है कि ये शहद बाजार में उसी तरह बिकते रहेंगे, जैसे बोतलबंद पानी और शीतल पेय बिक रहे हैं।
उधर,नई दुनिया की रिपोर्ट है कि कई रोगों के उपचार में काम आने वाले अमृत रूपी शहद के ब्रांडों में खतरनाक एंटीबायटिक्स की हद से अधिक मात्रा मिलने के खुलासे ने आयुर्वेद में तहलका मचा दिया है । जाने माने आयुर्वेदिक वैद्य देवेंद्र त्रिगुणा ने कहा कि शुद्ध शहद सही में अमृत है लेकिन वह प्रदूषित हो जाए तो सचमुच स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है । उन्होंने कहा, ऑस्ट्रेलिया और स्विटजरलैंड के प्रदूषित शहद ब्रांड भारत में १० गुने मंहगे दामों में बिक रहे हैं । उन पर तत्काल प्रतिबंध लगाने की जरूरत है । उन्होंने फार्म मालिकों को मधुमक्खियों को स्वस्थ रखने के लिए एंटी बायटिक की जगह आयुर्वेद की विधि अपनाने की सलाह दी है । सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की स्टडी की रिपोर्ट जारी होने के बाद आयुर्वेद के इलाज पर सवालिया निशान लग गया है ।
डॉ. त्रिगुणा ने नईदुनिया से विशेष बातचीत में कहा कि मधु आयुर्वेद का एक बेहद महत्वपूर्ण रसायन है । यह शरीर को पौष्टिकता प्रदान करने के साथ साथ कफ के रोगों और पित्त शमन सहित तमाम तरह के उपचारों में काम आता है । इस विवाद के संदर्भ में यह साफ होना चाहिए कि शहद प्रदूषित हो तो वह निश्चित रूप से स्वास्थ्य के लिए खतरा है । सरकार को बिना देरी किए मधु का मानक लागू करना चाहिए । इतना तो तय है कि बाजार में बिकने वाले ब्रांड प्राकृतिक नहीं हैं । कल्चर के जरिए मधु की पैदावार होगी तो वह प्रदूषित ही होगा क्योंकि मधुमक्खियों को एंटी बायटिक्स दवा के रूप में दी जाती है । इस समस्या का हल भी आयुर्वेद में ही है । मधुमक्खियों को धूपन सामग्री, अजवायन और दाल चीनी के तेलों का छिड़काव कर स्वस्थ रखा जा सकता है । उन्हें ऐसा करना ही होगा, नहीं तो शहद कारोबार का ठप होना तय है । सरकार को भी अपने नियमों को दुरुस्त कर उसे कड़ाई से लागू करना चाहिए ।
आयुर्वेदिक वैद्य देवेंद्र त्रिगुणा ने कहा कि शुद्ध शहद सही में अमृत है लेकिन वह प्रदूषित हो जाए तो सचमुच स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ।sahi कहा
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