हरियाणा के जींद जिले की ग्यारह वर्षीय रचना और उसकी बड़ी बहन तेरह वर्षीय सपना एक बीमारी की वजह से केवल पांच वर्ष की दिखती हैं। दोनों को हाइपोपिट्यूटेरिज्म नाम की बीमारी है, जिसमें पिटय़ूटरी ग्रंथि या तो हारमोन का निर्माण करना या तो कम देती है या फिर बिल्कुल ही बंद कर देती है।
इससे शरीर के विकास के लिए जरूरी हारमोन का निर्माण न होने के चलते एक उम्र के बाद शरीर की वृद्धि रुक जाती है। यही नहीं, बीमारी से प्रभावित व्यक्ति का व्यवहार भी उसी उम्र के अनुसार बना रहता है। अगर यह बीमारी बचपन से ही होती है तो व्यक्ति बौनेपन का शिकार हो जाता है। सपना सातवीं और रचना छठी क्लास में पढ़ती हैं। दोनों का कहना है कि अपनी उम्र से छोटा दिखने के कारण उनके सहपाठी उनका मजाक उड़ाते हैं, जिससे कई बार दोनों रोने लगती हैं। हालांकि दोनों निराश नहीं हैं।
रचना कहती है, ‘हम लोगों से अपनी दिक्कत बांट नहीं सकते, लेकिन हमारी अपनी दुनिया है। हमें संगीत पसंद है और हम रेडियो से गाना सुनते हैं और खुद भी गाते हैं।’ रचना और उसकी सपना के दो और भाई-बहन हैं, जो पूरी तरह से स्वस्थ हैं।
उनके पिता ऋषि पाल बताते हैं कि दोनों का विकास न होता देखकर मैंने पहले रोहतक के मेडिकल कालेज में उन्हें दिखाया। वहां के डॉक्टरों ने बच्चियों को दिल्ली के एम्स के लिए रेफर कर दिया। एम्स में इंडोक्राइनोलॉजी विभाग में जांच के बाद पता चला कि दोनों हाइपोपिट्यूटेरिज्म नामक रोग की शिकार हैं।
जेनेटिक डिस्आर्डर है संभव कलावती अस्पताल की पीडायट्रिशियन डॉ. अर्चना पुरी ने बताया कि जन्म से पिटय़ूराइड ग्रन्थि बच्चों के साधारण विकास में सहायक होती है, किसी कारणवश जन्म के समय ग्रन्थि पूर्ण विकसित नहीं हो पाती, जिसका असर चार से पांच साल के बाद दिखाई देता है।
हालांकि कोशिश की जाती है कि वैकल्पिक थेरेपी से बच्चों के सामान्य विकास को सुचारू किया जा सके, बावजूद इसके इलाज की संभावना केवल दस प्रतिशत ही रहती है। डॉ. अर्चना कहती हैं कि यह बीमारी दस हजार में किसी एक बच्चों को होती है, हालांकि इसका बहुत स्पष्ट कारण पता नहीं चल सका है।
बीएल कपूर अस्पताल की पीडायट्रिशियन डॉ. शिखा महाजन कहती हैं कि शारीरिक विकास न होना असामन्य विकृति है, इसके बावजूद 40 प्रतिशत मामलों में बच्चे पढ़ने और अन्य गतिविधियों में तेज होते हैं। इसलिए वह समाज की मुख्यधारा में ही शामिल होते हैं। हालांकि लोगों के बीच केवल यह धारणा बढ़ाना जरूरी है कि यह बच्चों भी अन्य बच्चों की तरह बेहतर कर सकते हैं। बीमारी के लक्षण क्योंकि पांच साल की उम्र के बाद ही पता चलते हैं, इसलिए शुरुआत में इलाज संभव नहीं कहा जा सकता(हिंदुस्तान,दिल्ली,31.8.2010)।
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