देश के अनेक हिस्सों में डेंगू, स्वाइन फ्लू, मलेरिया का प्रकोप है। बरसात के दिनों में ये बीमारियां अपना कहर बरपाती रही हैं। सवाल यह है कि बरसात से पहले इन बीमारियों के संक्रमण को रोकने के प्रयास क्यों नहीं किए जाते? यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि सरकारी अमला पानी सिर से ऊपर उतर जाने पर इन बीमारियों की तरफ ध्यान देता है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। कुछ समय पहले डॉक्टरों ने दावा किया था कि जापानी बुखार लगभग खत्म हो चुका है, लेकिन पूवरंचल में जापानी बुखार से पीडि़त रोगियों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में जनवरी से अब तक लगभग 1060 मरीज भर्ती हो चुके हैं, जिनमें से करीब दो सौ मरीजों की मौत हो चुकी है। किंतु अफसोस की बात यह है कि गोरखपुर का मेडिकल कॉलेज डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 25 जुलाई, 2010 तक 1692 लोगों की स्वाइन फ्लू से मौत हो चुकी है। सबसे अधिक 526 मौतें महाराष्ट्र में हुई हैं जबकि दूसरे स्थान पर गुजरात में 310 मौतें तथा राजस्थान में 198 मौतें हुई हैं। हालांकि स्वाइन फ्लू की जांच करने और इसका संक्रमण रोकने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर भी अनेक शोध हो रहे हैं। स्वाइन फ्लू का टीका पहले ही बनाया जा चुका है। हाल ही में देश की कुछ कंपनियों ने स्वाइन फ्लू के वायरस की जांच करने के लिए किट तैयार की है। अभी तक स्वाइन फ्लू की जांच विदेशी किट से की जाती थी। हमारे देश में तैयार इस किट की कीमत विदेशी किट से बहुत कम है। यह किट रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन, इंपीरियल लाइफ सांइस और ओसीमम बायोसोल्यूशन के सहयोग से विकसित की गई है। आज भले ही स्वाइन फ्लू का टीका विकसित कर लिया गया हो और स्वाइन फ्लू पर लगातार शोध भी हो रहा हो, लेकिन इसकी रोकथाम तब तक संभव नहीं जब तक कि इसका संक्रमण बढ़ाने वाले कारणों पर ध्यान नहीं दिया जाएगा। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार इन कारणों पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर रही है। देश की राजधानी एवं अन्य हिस्सों में जिस तरह से डेंगू के रोगी बढ़ते जा रहे हैं वह भी चिंताजनक है। डेंगू फैलाने वाला एडीज मच्छर साफ और ठहरे हुए पानी में पैदा होता है। सरकार जागरूकता के लिए अखबारों के माध्यम से साफ-सफाई रखने की अपील करती है, लेकिन लोग इस ओर ध्यान नहीं देते। यही कारण है कि घरों में कूलरों का पानी बदलने की जहमत नहीं उठाई जाती। सड़कों के किनारे टंकियों में पानी बेकार बहता रहता है लेकिन इस ओर न ही तो जनता का ध्यान जाता है और न ही सरकार का। अमेरिका के एलर्जी और संक्रामक रोग संस्थान मे डेंगू के संक्रमण को रोकने के लिए एक टीके का परीक्षण चल रहा है। हाल में दुनिया भर में डेंगू के मामले तेजी से बढे़ हैं। डेंगू चार तरह के विषाणुओं डीइएनवी-1, डीइएनवी-2, डीइएनवी-3 और डीइएनवी-4 के कारण होता है जो एडीज मच्छरों के माध्यम से लोगों में पहुंचते हैं। डेंगू दुनिया के उष्णकटिबंधीय व मकर और कर्क रेखा से लगे क्षेत्रों में ज्यादा फैलता है, लेकिन अब यह दूसरे क्षेत्रों में भी तेजी से फैल रहा है। डेंगू से हर साल करीब एक करोड़ लोग संक्रमित हो रहे हैं। डेंगू के संक्रमण को रोकने के लिए कोई टीका उपलब्ध नहीं है और न ही कोई ऐसी दवा है जो डेंगू प्रभावित लोगों के लिए पूर्ण रूप से कारगर हो। हालांकि डेंगू के टीके का परीक्षण होना एक अच्छी खबर है, लेकिन अभी इसे एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना होगा। तब तक डेंगू से बचाव के लिए सतर्क रहना ही एकमात्र उपाय है। बहरहाल, इस समय तेजी से फैलती इन बीमारियों को लेकर राष्ट्रमंडल खेल फेडरेशन भी परेशान है। राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान विदेशों से खिलाड़ी और अन्य मेहमान यहां आएंगे। ऐसे में इन बीमारियों के महामारी के रूप में फैलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। अत: अब गंभीरता के साथ इन बीमारियों के संक्रमण को रोकने की कोशिश होनी चाहिए। राष्ट्रमंडल खेलों की बात छोड़ भी दें तो भी जनता को स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी है। सरकार को इस दिशा मे ठोस एवं सार्थक पहल करनी चाहिए(रोहित कौशिक,दैनिक जागरण,3.9.2010)।
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