डोपिंग का भूत इन दिनों भारतीय खिलाडि़यों के सिर पर नाच रहा है। पहले पहलवान, फिर एथलीट और अब तैराक इसके चंगुल में फंस चुके हैं। जहां एक ओर डोपिंग के बढ़ते मामलों से देशवासी फिक्रमंद हैं, वहीं चिंता की बात यह है कि डोपिंग से बचने के उपायों का न तो डॉक्टरों को सही ज्ञान है और न ही खिलाडि़यों। स्थिति यह है कि खांसी, बुखार जैसी मामूली बीमारी में ली जाने वाली कई दवाएं भी डोपिंग के दायरे में आती हैं। लेकिन इस बात से अनजान खिलाड़ी इन दवाओं का सेवन कर बैठते हैं और फिर वो डोपिंग की गिरफ्त में फंस जाते हैं। राष्ट्रमंडल खेल के लिए प्रशिक्षण प्राप्त एक डॉक्टर नाम छापने से मना करते हुए बताते हैं कि कि उनको तीन दिन के कार्यक्रम में ट्रॉमा केयर के बारे में जानकारी दी गई, लेकिन डोपिंग को लेकर कुछ नहीं बताया गया। और न ही इस बारे में उन्हें कुछ जानकारी है। इससे साफ जाहिर होता है कि जिन तीन सौ डॉक्टरों को ट्रेनिंग दी गई है उन्हें डोपिंग के बारे में कुछ पता नहीं है। डॉक्टरों की यह हालत है तो खिलाडि़यों का क्या हाल होगा, इसका अंदाजा आप खुद ही लगा लीजिए। इंडियन फेडरेशन ऑफ स्पोर्ट्स मेडिसीन के अध्यक्ष डॉ. पीएसएम चंद्रण का कहना है कि भारतीय खिलाडि़यों का डोपिंग में नाम आना दुखद बात है। कहीं न कहीं यह जानबूझ कर या फिर उनकी लापरवाही को दर्शाता है। जनवरी में वाडा (विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी) ने नई गाइडलाइन जारी कर दी है, जिससे सभी खिलाड़ी अनजान हैं। नियम के अनुसार मिथाइल हेक्सानीमाइन डोपिंग में आता है, लेकिन हम आपको बता दें कि यह कई खाद्य तेलों में भी पाया जाता है। ऐसे में फूड सप्लिमेंट लेने के बाद भी खिलाड़ी में डोपिंग टेस्ट पॉजिटिव आ सकता है। अब जहां तक इस बारे में जानकारी की बात है तो यह काम सभी खिलाडि़यों के बस का नहीं है। दवा की लंबी लिस्ट है जिसे याद रखना बहुत मुश्किल है। डॉक्टर चंद्रण की मानें तो यह काम स्पोर्ट्स मेडिसीन के डॉक्टरों का है। और दुख की बात यह है कि पूरे देश में इसके डॉक्टर गिने चुने ही हैं। स्पोर्ट्स मेडिसीन डॉक्टरों की भारी कमी राष्ट्रमंडल खेल के दौरान खल रही है। इसकी कमी को दूर करने के लिए दिल्ली सरकार द्वारा भले ही सामान्य डॉक्टरों को प्रशिक्षित किया गया है, लेकिन नएनियम व इनके दायरे में आने वाले सभी दवाओं की जानकारी शायद उन्हें भी नहीं है। जहां तक दवाओं की लिस्ट की बात है तो सभी प्रतिबंधित दवाओं का नाम वाडा ने ऑनलाइन जारी कर दिया है। इस बारे में डॉक्टरों के प्रशिक्षण के प्रभारी डॉ. एके अग्रवाल का कहना है कि प्रतिबंधित दवाओं का नाम अगर डॉक्टर नहीं जानते हैं तो यह दुखद है(दैनिक जागरण,दिल्ली,7.9.2010)।
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इसी विषय पर आज नई दुनिया के दिल्ली संस्करण में अमित कुमार की रिपोर्ट भी देखिएः
राष्ट्रमंडल खेलों से पहले ही डोपिंग का काला साया देश के ऊपर मंडराने लगा है। खेलों को सिर्फ २६ दिन बाकी हैं और अब तक कुल १२ एथलीट प्रतिबंधित दवाओं के सेवन में पॉजीटिव पाए जा चुके हैं। इन १२ खिला़िड़यों में अगर नेटबॉल की खिला़ड़ी को छो़ड़ दिया जाए, तो सभी एक ही प्रतिबंधित दवा मिथाइलहेक्सानेमाइन के सेवन के दोषी पाए गए। खिला़ड़ियों के लिए भी यह नाम नया है। अंतरराष्ट्रीय डोपिंग रोधी एंजेसी (वाडा) ने इसी साल एक जनवरी से इसे प्रतिबंधित दवाओं में शामिल किया है। १ जनवरी, २०१० को वाडा ने अपनी वेबसाइट पर इसे डाल दिया और इसके बाद राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (नाडा) ने भी इसका पालन करना शुरू दिया।
३१ दिसंबर, २००९ तक खिला़ड़ी ऐसे कई खाद्य पदार्थ लेते रहे हैं, जिसमें मिथाइलहेक्सानेमाइन के अंश पाए जाते हैं। चाहे वह वनस्पति तेल हो या फिर फूड सप्लीमेंट। ब़ड़ा सवाल यह है कि क्या इस नई प्रतिबंधित दवा के बारे में नाडा, खेल संघों या फिर वाडा ने उचित जागरूकता अभियान चलाया था? अगर ऐसा होता तो, शायद देश ब़ड़ी शर्मिंदगी से बच जाता। राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों में जुटे अधिकतर खिला़िड़यों या कोचिंग स्टाफ के लोगों को यह पता ही नहीं है कि मिथाइलहेक्सानेमाइन क्या बला है। भला ऐसे में वो कैसे इससे बचाव के तरीके ढूंढते। ऐसा तो नहीं है कि फेडरेशन और नाडा की लापरवाही का खामियाजा अब खिला़ड़ियों को भुगतना प़ड़ रहा है।
नाडा के महानिदेशक राहुल भटनागर यह मानने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने कहा, "अज्ञानता को बहाना नहीं बनाया जा सकता। खिला़िड़यों के अलावा यह जिम्मेदारी फेडरेशन की बनती है। हमने अपनी ओर से सभी उचित उपाय किए हैं। वाडा ने भी वेबसाइट पर प्रतिबंधित दवाओं की सूची डाल दी है। हमने भी सभी फेडरेशन को प्रतिबंधित दवाओं की सूची वाली पूरी बुकलेट दी है। सभी खिला़ड़ी प्रोफेशनल्स हैं और उन्हें सब बातों का ध्यान रखना चाहिए।" वाडा की वेबसाइट पर उपलब्ध नौ पृष्ठों की सूची के सातवें पेज पर गैर उल्लेखित शक्तिवर्धक दवाओं की सूची है, जिसमें फिलहाल ३७ दवाओं के नाम हैं और मिथाइलहेक्सानेमाइन २९वें नंबर पर है। मगर खिला़ड़ियों को यह जानकारी ढंग से नहीं दी गई कि क्या खाएं और क्या न खाएं। कुश्ती में कोचिंग स्टाफ से जु़ड़े सूत्र की मानें तो खिला़ड़ी बलि के बकरे बनाए गए हैं। पहलवानों को इससे बचने के लिए उचित जानकारी ही नहीं दी गई। उन्होंने कहा, "अलग-अलग जगह पर कैंप चल रहे हैं। अलग-अलग स्पर्द्घा में खिला़ड़ी हैं, लेकिन दोषी एक ही प्रतिबंधित दवा के। साफ मतलब है कि कहीं न कहीं सिस्टम में कोई ग़ड़ब़ड़ है। डाक्टरों ने पहलवानों को इतनी सलाह तो जरूर दी कि दवाई उनसे पूछ कर लें, लेकिन मिथाइलहेक्सानेमाइन के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं दी और न ही यह जानकारी फेडरेशन या नाडा ने ही उपलब्ध कराई। वाडा की वेबसाइट पर भले ही जानकारी उपलब्ध हो, लेकिन कितने पहलवान हैं, जो इंटरनेट या कंप्यूटर पर काम करना जानते हैं। यह जिम्मेदारी तो फेडरेशन की ही बनती थी।" उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा, "राष्ट्रमंडल खेलों में भला पहलवानों को शक्तिवर्धक दवा लेने की क्या जरूरत है, जब उनके पदक कमोबेश पक्के समझे जा रहे हैं।"
पटियाला में भारोत्तोलकों के साथ राष्ट्रमंडल की तैयारियों में जुटी सहायक कोच ने बताया कि जनवरी में हमें वाडा की ओर से प्रतिबंधित दवाओं की सूची मिली थी। इसके अलावा और कुछ नहीं। क्या नए बदलाव हुए हैं, इस बारे में कुछ नहीं बताया गया। हालांकि उन्होंने इस बात पर खुशी जताई कि भारोत्तोलन संघ इस मामले में काफी सतर्कता बरत रहा है।
नेटबॉल स्पर्द्घा में तो भाग लेने वाली खिला़ड़ियों को वाडा द्वारा उपलब्ध कराई गई बुकलेट एक साथी खिला़ड़ी के पॉजीटिव पाए जाने के बाद प्राप्त हुई है। कोचिंग स्टाफ का कहना है कि यह सब जानकारी के अभाव का नतीजा है। लेकिन अब कोई भी इसके प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं लेगा। आज सभी खिला़ड़ियों को राष्ट्रमंडल खेलों से बाहर करने के बाद अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। खुश हैं कि हमने दोषियों को पक़ड़ लिया, लेकिन क्या सचमुच में उन्होंने यह सब जानबूझकर किया है।
क्या है मिथाइलहेक्सानेमाइन?
यह एक तरह की ऐसी दवा है,जिसका इस्तेमाल जुकाम आदि के लिए किया जाता है। इसे डिमेथलामाएलामाइ(डीएमएए) के नाम से भी जाना जाता है। 1940 के दौरान इसकी खोज की गई थी। वनस्पति तेल(गेरानियम नामक फूलों का तेल) में भी यह पाया जाता है और इसका इस्तेमाल शक्तिवर्धक फूड सप्लीमेंट के रूप में भी किया जाता है। इस तेल का प्रयोग खाना बनाने में भी लोग करते हैं। खेलों में इसका इस्तेमाल शक्ति बढ़ाने के लिए किया जाता है। कई एथलीट इसका सेवन ट्रेनिंग के दौरान भी करते हैं। पिछले साल जमैका के पांच एथलीट मिथाइलहेक्सानेमाइन दवा लेने के दोषी पाए गए थे। मगर वाडा की ओर से इस संबंध में कोई निर्देश नहीं था इसलिए एक(ब्रूक्स) को छोड़कर बाकी सभी एथलीटों पर तीन महीने का प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके बाद,जनवरी,2010 में वाडा की प्रतिबंधित दवाओं की नई सूची में इसे भी शामिल कर लिया गया।
जनकारी नहीं थी इस विषय पर। बहुत अच्छा लगा यह आलेख पढकर।
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