बुधवार, 1 सितंबर 2010

रमजानः मधुमेह रोगी क्या करें?

एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि देश में मुस्लिमों की बड़ी आबादी मधुमेह से पीड़ित है और अधिकांश वयस्क इस पवित्र माह में उपवास रखते हैं। क्योंकि, रमजान में लोग सुबह होने से पहले से लेकर सूर्यास्त तक पूरे माह भोजन और पानी से अलग रहते हैं।

लेकिन, पवित्र कुरान भी विशेष रूप से बीमार लोगों को उपवास करने से मुक्त रखने की बात कहता है, (पवित्र कुरान, अल-बकरह, 183-185)। अगर यह किसी व्यक्ति विशेष जैसे बच्चों, गर्भवती महिलाएं, बीमार, वृद्ध, मानसिक रूप से बीमार और वैसे लोग जिन्हें उपवास रखने पर उनके स्वास्थ्य का खतरा हो। मधुमेह रोगी, क्रॉनिक किडनी रोग तथा हृदय रोग से पीड़ित लोग इस श्रेणी में आते हैं।

पवित्र कुरान ने यह भी कहा है कि अगर कोई व्यक्ति रमजाान की अवधि में बीमार पड़ जाता है, तो वह अपने उपवास को खत्म कर सकता है। मधुमेह रोगियों में हाइपोग्लीसिमिया या यों चीनी के स्तर का कम होना उपवास खत्म करने का एक कारण हो सकता है।

एक वृहद वैज्ञानिक अध्ययन में यह बात सामने आई कि उपवास के दौरान मधुमेह रोगियों में जटिलताएं (कॉम्प्लीकेशन्स) तेजी से बढ़ीं। सामान्य शब्दों में कहें तो रमजाान के दौरान मधुमेह रोगियों को सावधानी रखने की जरूरत है। वे अनिवार्य रूप से चिकित्सकों के परामर्श में रहें, ताकि इस अवधि में जटिलताओं से बचे रहें।

इस संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण बात उपवास के पूर्व ‘मेडिकेशन’ में परिवर्तन की है। खास तौर पर वैसा मरीज जो हाइपोग्लीसिमिया (ब्लड ग्लूकोज स्तर का 70 एमजी/डीएल से कम होना) के खतरे में है, के लिए ‘मेडिकेशन’ में परिवर्तन की बात खास है। भोजन में परिवर्तन की वजह से और भोजन के समय में बदलाव के कारण भी ब्लड ग्लूकोज का स्तर ऊपर की ओर भाग सकता है।

चुभने वाला उपवास शरीर में संग्रहित ग्लूकोज को उपयोग करता है और इससे हाइपोग्लीसिमिया के खतरे बढ़ जाते हैं। ऐसे में प्रभावकारी मधुमेह प्रबंधन के लिए सही तरीके की काउंसिलिंग में रहें। मरीजों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि उनके परिजन और मित्र वैसे सभी महत्वपूर्ण बातों को समझों, जो मधुमेह रोगियों के लिए अनिवार्य हैं।

इसमें खुद की देखभाल, हाइपर और हाइपोग्लीसिमिया के लक्षण, ब्लड ग्लूकोज की मॉनिटरिंग, भोजन की योजना, शारीरिक गतिविधि, मेडिकेशन प्रबंधन तथा तीव्रगति से उत्पन्न जटिलताओं का प्रबंधन शामिल हैं। बेहतर न्यूट्रीशियन तथा हाइड्रेशन का भी महत्व है। इंसुलिन ले रहे मरीजों की लगातार ग्लूकोज मॉनिटरिंग होनी चाहिए।

भोजन : पवित्र रमजान के दौरान ‘हेल्दी डायट’ लेनी चाहिए। मधुमेह रोगियों को इस दौरान अपने शरीर के बॉडी मास इंडेक्स को संतुलन में रखना चाहिए।

सहरी (सनराइज) : नपा-तुला भोजन, जिसमें हल्की मात्र में काबरेहाइड्रेट के तौर पर चावल, चपाती, साबुत अनाज वाले ब्रेड, मसूर व दलिया (ओट) लिया जाना चाहिए। इनमें से कुछ पदार्थ शुगर रिलीज करते हैं। इस वजह से यह शुगर के स्तर को संतुलित रखता है। यह लंबी अवधि तक मरीजों को दिन में भूख का कम एहसास होने देगा।

इफ्तारी (सनसेट) : पारंपरिक तौर पर इफ्तारी के दौरान खजूर लिए जाते हैं और कुछ लोग इसे ऊर्जा और फाइबर के स्रोत के तौर पर भी ले सकते हैं। सामान्य चलन है कि इस दौरान काफी मात्र में काबरेहाइड्रेट वाले खाद्य पदार्थ और फैट से भरपूर बर्फी और जलेबी उपवास तोड़ने के लिए ली जाती है। इससे बचना चाहिए। इनकी जगह प्रचुर फाइबर वाले फलों व सब्जियों का इस्तेमाल वह भी बगैर छिलका उतारे, कब्ज से बचने के लिए करना चाहिए।

तरल पदार्थ और पानी : पानी और तरल पदार्थ सेहरी के पहले और बाद में लिया जाना चाहिए। मीठी या नमकीन लस्सी जो पूरी तरह से क्रीम वाले दूध से बनी हो, आम का गूदा, केन जूस और फिज्जी ड्रिंक से बचना चाहिए। सेहरी के समय चाय-कॉफी से बचना चाहिए। क्योंकि, कैफीन पानी की कमी बढ़ाता है और अधिक पेशाब की स्थिति में डिहाइड्रेशन हो सकता है।

इंसुलिन के मरीजों के लिए वैसे मरीज जो इंसुलिन पर हैं, खासकर टाइप-1 के मरीजों को, उपवास आरंभ करने से पहले अपने फिजीशियन से मिल लेना चाहिए। कई किस्म के इंसुलिन प्रयोग में लाए जाते हैं और इसमें कई लंबी अवधि तक प्रभावकारी रहते हैं, जैसे लैंटस या लेवेमीर का छोटा डोज लेना चाहिए। कम डोज के बावजूद हाइपोग्लोसीमिया से बचने के लिए ये सुरक्षित हैं।

रैम्टिंग इंसुलिन (ह्यूमालोग, नोवेरापिड या एपिड्रा) या कम प्रभाव वाले इंसुलिन जैसे हन इंसुलिन, आर, एक्ट्रापि़ड को इफ्तार के साथ लिया जा सकता है, लेकिन डोज का संतुलन जरूरी है, अगर वे इसे एक बार से अधिक लेते हैं। वैसे लोग जो लोग मिक्सड इंसुलिन जैसे ह्यूमन मिक्स्टर्ड या हमइंसुलिन 30/70 लेते हैं। अपने सुबह के डोज को इफ्तारी के साथ तथा शाम के डोज को सहरी के साथ स्थानान्तरित कर सकते हैं। लेकिन, यह खास एडजस्टमेंट के तहत होना चाहिए।

इसके बावजूद हाइपोग्लीसिमिया (ब्लड ग्लूकोज का न्यून स्तर) हो सकता है, सभी तरह की सावधानी बरतने के बावजूद। मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति को रमजान के दौरान ब्लड ग्लूकोज के न्यून स्तर का अनुभव हो सकता है। इनमें से कुछ लक्षण, जैसे अत्यधिक पसीना, चक्कर आना, सरदर्द, कम दिखना, भूख लगना, चिड़चिड़ापन, गुस्सा आना, ध्यान केन्द्रित होने में परेशानी, कंपकंपी छूटना, अनियमित हृदयगति, बोलने में लड़खड़ाना, दोहरा दिखना आदि हैं। गंभीर लक्षण अचेत होना व झपकी आना है।

ऐसे मरीजों को अपना उपवास 150-200 एमएल नारंगी के जूस या कोक या फिर तीन चार चम्मच चीनी या ग्लूकोज को पानी में मिलाकर पीकर तोड़ना चाहिए। इसके बाद कम काबरेहाइड्रेट रिलीज करने वाले फल के दो पीस, दो सादा बिस्किट, ब्रेड का एक स्लाइस और एक छोटी चपाती लेनी चाहिए। रमजान के दौरान खान-पान हेल्दी तथा नियंत्रित होना चाहिए, जो पूरे वर्ष चले। फैटी फूड को नहीं अपनाना चाहिए, चाहे वह इफ्तारी में हो या फिर सहरी में।

मौखिक (ओरल) औषधि प्रयोग और मधुमेह भारत में मधुमेह रोगी तीन किस्म की दवाओं के मिश्रण का प्रयोग कर सकते हैं। कुछ किस्म की दवाएं (साल्ट) हाइपोग्लीसिमिया के रिस्क की दृष्टि से सुरक्षित हैं। इनमें मेटोफारमिन, पायोग्लिटाजोन, एकारबोस, भोगलिबोस व सिटाग्लिपटीन्स, विल्डालाग्लीटीन तथा सैक्साग्लिपटीन हैं। इसके तहत सही कंपोजिशन पर ध्यान देना चाहिए। उदाहरण के लिए एमैरल एम-1 में दो साल्ट हैं, ग्लिम्पीराइड और मेटफारमिन। कुछ किस्म की दवाओं में सल्फोनाइल्यूरिया (ग्लिम्पीराइड्स, ग्लिक्लाजाइड तथा ग्लिबेनक्लामाइड) होता है। यह कुछ मरीजों के लिए उपवास के दौरान उपयुक्त नहीं है, क्योंकि इनमें हाइपाग्लीसीमिया के खतरे अंतर्निहित हैं। कम प्रभावकारी सेक्रेटागोग्यूज जैसे रेपाग्लीनाइड का इस्तेमाल रमजान के दौरान हो सकता है(डॉ. सुजीत झा,हिंदुस्तान,दिल्ली,31.8.2010)

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