अतृप्त यौन जीवन जी रहे पादरियों के किस्से पहले भी सामने आते रहे हैं मगर धार्मिक मामला होने के कारण इन्हें ज्यादा तूल नहीं दिया जाता। पोप ने भी पिछले मामलों पर क्षमायाचना की है। अस्वाभाविक जीवन यौन कुंठा को जन्म देता है मगर व्यक्ति अपना छद्म रूप सार्वजनिक किए रहता है। इसी क्रम में,भास्कर डॉट कॉम ने आज तिरूवनंतपुरम् से जारी एक ख़बर कहती है कि चर्च, कॉन्वेंट में पादरियों द्वारा सेक्स से जुड़ी अंदरूनी सच्चाई एक बार फिर सामने आई है। इस बार एक पूर्व कैथोलिक फादर ने अपनी नई किताब में पादरियों के सेक्स जीवन और कॉन्वेंट में समलैंगिक संबंधों का खुलासा किया है। इस नई किताब में साफ लिखा गया है किस तरह चर्च से जुड़े शिक्षण संस्थानों में पैसे का खेल होता है और समलैंगिक संबंध बनते हैं तथा ननों का शोषण किया जाता है।
11 साल तक पादरी रहे केपी शिबु कलमपरमबिल ने अपनी नई किताब 'हेयर इज द हार्ट ऑफ ए प्रीस्ट' में कैथोलिक समुदाय में अपने जीवन के बारे में लिखा है। शिबु ने पादरियों द्वारा ननों और समुदाय के अन्य लोगों के सेक्स शोषण का खुलकर जिक्र किया है। शिबु लिखते हैं कि समलैंगिकता और ब्लू फिल्में पादरियों के जीवन का हिस्सा बन गई हैं। ननों और पादरियों का एक खास वर्ग सिर्फ विलासिता और पैसे के लिए ही इस पेशे को चुनता है। यही नहीं समुदाय द्वारा चलाए जा रहे शिक्षालयों में भी पैसों का गड़बड़झाला बड़े स्तर पर होता है। पादरियों की स्वीकारोक्तियों के आधार पर शिबू ने दावा किया है कि उनमें से 60 फीसदी पादरियों के ननों, विधवाओं और श्रद्धालु महिलाओं के साथ सेक्सुअल एनकाउंटर हो चुके हैं. अधिकतर ब्रह्मचारी आत्मदमन की प्रक्रियाओं से जूझते रहते हैं. उन्होंने एक अन्य स्थान पर लिखा है कि ये अक्सर महिलाओं, अनाथ और गरीब बच्चों की मजबूरी का फायदा उठाते हैं. उन्होंने यह आरोप भी लगाया है कि सेमिनरी में नये आगंतुकों के रैगिंग के बहाने भी इस तरह की हरकतें की जाती हैं.
शिबु लिखते हैं कि पादरियों की पाप-स्वीकारोक्ति सुनने के बाद वो इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि लगभग 60 प्रतिशत पादरी ननों, विधवाओं और समाज की औरतों के साथ सेक्स संबंध रखते हैं। शिबु ने किताब में एक जगह जिक्र किया है कि खुद को ब्रह्मचारी बताने वाले ज्यादातर पादरी भी सेक्स करते हैं। शिबु ने अपनी इस जीवनी में यह भी आरोप लगाया है कि कई पादरी बच्चों और महिलाओं की गरीबी का फायदा उठाते हुए उनका यौन शोषण करते हैं।
पिछले साल आई सिस्टर जेस्मी की किताब 'आमीन, एक नन की जीवनी' में भी ननों के जीवन की आलोचना की गई थी। ननों और पादरियों के जीवन पर नई किताब लिखने वाले 39 वर्षीय शिबु 24 वर्षों तक कैथोलिक समुदाय से जुड़े रहे। वह 13 साल तक सेमिनरी में पढ़े और फिर 11 साल तक पादरी रहे। इस साल मार्च में कैथोलिक समुदाय को छोड़ने वाले शिबु इस समय दोहा में इंडियन स्कूल में पढ़ाते हैं। वो मूल रूप से कोच्चि के नजदीक अंगामैली के रहने वाले है।
भाई ये सब हिंदू धर्म के किसी नेता, पुजारी या महात्मा के बारे में होता तो मीडिया कि दूकान खुल जाती......... पर चर्च के बारे में लिखने और बोलने के लिए हिम्मत चाहिय - जो भारतीय मीडिया के पास नहीं है....... आप सोच रहे होंगे ..... कि में लेख से भटक कर टिपण्णी कर रहा हूँ.....
जवाब देंहटाएंचर्च के पादरी - नैतिकता कि दुहाई देते देते अनैतिक यौन कुंठाओं से भर चुके हैं.......
deepak ji se sahmat....
जवाब देंहटाएंइंसानियत और मानवता कहीं खोती जा रही है और इसमें इन ईसाईयों के लोभ-लालच और दलाली का भी अहम् रोल है ...इनमे आवारा पूंजी की अधिकता है इसलिए इनका नैतिक पतन ज्यादा हो रहा है ...इस देश के नैतिक पतन में भी इनका हाथ है ...
जवाब देंहटाएंश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई ।
जवाब देंहटाएंदुराचारी का कोई धर्म नहीं होता ....
कृपया एक बार पढ़कर टिपण्णी अवश्य दे
(आकाश से उत्पन्न किया जा सकता है गेहू ?!!)
http://oshotheone.blogspot.com/
जन्माष्टमी के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
जवाब देंहटाएंकिसी भी प्रकार का दमन वर्जनाओं को जन्म देता है
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