अगर केंद्रीय स्वास्थ्य योजना (सीजीएचएस) ने किसी मरीज को निजी अस्पताल में इलाज की अनुमति दे दी तो उसके इलाज पर होने वाले तमाम खर्च सीजीएचएस को वहन करना होगा। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि सीजीएचएस अपनी जवाबदेही से पीछे नहीं हट सकता।
न्यायालय ने एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी के हक में फैसले देते यह निर्देश दिया है। न्यायालय ने सीजीएचएस को बकाया रकम चार हफ्ते के भीतर मरीज को वापस करने का आदेश दिया है। न्यायालय ने सीजीएचएस की उस दलील को खारिज कर दिया कि निजी अस्पताल ने पेसमेकर का जो दाम लिया है वह सीजीएचएस के द्वारा तय मूल्य से अधिक है। रक्षा मंत्रालय से सेवानिवृत्त हुए रत्तन लाल गुप्ता केंद्र सरकार के कर्मचारी होने के नाते सीजीएचएस सुविधा का लाभ उठाने के हकदार थे।
२९ अगस्त २००३ को सीजीएचएस के निदेशक ने उन्हें अपोलो अस्पताल से पेसमेकर लगाने की इजाजत दी थी। श्री गुप्ता इसके अगले दिन अपोलो अस्पताल में भर्ती हो गए और उसी दिन पेसमेकर लगा दिया गया। दो सितंबर को उन्हें घर जाने की अनुमति मिल गई। अस्पताल छोड़ते वक्त उन्हें १,८२,६५० रूपए का बिल थमाया गया और उनसे ४५,८३० रूपए चुकाने के लिए कहा गया। अस्पताल का कहना था कि वह सीजीएचएस से १,३६,८२० रूपए का ही दावा कर सकता है। कोई रास्ता नहीं देख श्री गुप्ता को अपनी जेब से ४५,८३० रूपए चुकाने पड़े। इस रकम में पेसमेकर की प्रक्रियात्मक लागत (१६,१६० रूपए) भी शामिल थी। जिस डॉक्टर ने पेसमेकर लगाया उसने यह भी प्रमाणपत्र दिया था कि मरीज के हृदय में पेसमेकर लगाना बेहद जरूरी था।
इसके बाद श्री गुप्ता ने सीजीएचएस से ४५,८३० रूपए वापस करने को कहा। जिसके बाद सीजीएचएच ने उन्हें महज १६,१६० रूपए का चेक थमा दिया। जिसके बाद उन्होंने शेष रकम के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था(राजीव सिन्हा,नई दुनिया,दिल्ली,18.8.2010)।
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