फलों को पकाने में कैल्शियम कार्बाइड के इस्तेमाल से स्वास्थ्य पर पड़ रहे बुरे असर से चिंतित सरकार अब इसकी जगह एथिलीन के प्रयोग के नियम लागू करने की तैयारी कर रही है। एथिलीन के इस्तेमाल को कार्बाइड के मुकाबले अधिक सुरक्षित और स्वीकार्य माना जाता है इसके लिए मानक तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इस संबंध में राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के तत्वावधान में एक समिति बनाई गई है जो एथिलीन के इस्तेमाल आदि के बारे में मानक तैयार कर रही है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के फल एवं बागवानी विभाग के प्रमुख डा. एके सिंह ने कहा कि एथिलीन के प्रयोग के बारे में मानक तैयार किए जा रहे है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड की अगुवाई में एक समिति बनाई गई है जो विभिन्न फलों के पकाने के लिए जरूरी एथिलीन की मात्रा, तापमान के स्तर और अन्य संबंधित परिस्थितियों के मानक तैयार कर रही है। सिंह समिति के सदस्य है। उन्होंने कहा कि एथिलीन के प्रयोग के मानकों को जल्द ही अंतिम रूप दे दिया जाएगा। समिति की एक बैठक पिछले सप्ताह हुई थी। विशेषों के अनुसार कैल्शियम कार्बाइड में आर्सेनिक और फास्फोरस पाया जाता है। पुन: यह वातावरण में मौजूद नमी से प्रतिक्रिया कर एसिटीलीन गैस बनाता है जिसे आम बोलचाल में कार्बाइड गैस कहते है। यह गैस फलों को पकाने में एथिलीन की तरह ही काम करती है। प्रीवेंशन आफ फूड एडल्ट्रेशन रूल, 1955 की धारा 44 एए के तहत एसिटिलीन गैस से फलों को पकाने पर प्रतिबंध है लेकिन कानून के सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं होने और विकल्पों के अभाव में इसका इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है। सिंह ने कहा कि फलों को पकाने में इस्तेमाल होने वाला कैल्शियम कार्बाइड का दिमाग, स्नायुतंत्र फेंफड़ों आदि पर बुरा असर पड़ता है। केला और आम जैसे फलों को कृत्रिम रूप से पकाने के लिए कैल्शियम कार्बाइड का इस्तेमाल करते है। यह रसायन नमी के साथ प्रतिक्रिया कर कार्बाइड गैस बनाता जो साथ रखे गए कच्चे फलों के ढेर को पका देती है। सिंह ने बताया कि महाराष्ट्र में कुछ व्यापारी एथिलीन का इस्तेमाल कर रहे है और जल्दी ही देश के अन्य हिस्सों में इसके उपयोग की उम्मीद है। आल इंडिया फ्रूट्स ग्रोअर्स एंड एक्सपोटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बाबू रमचंदानी ने मुंबई से फोन पर कहा वैसे तो वर्षों से फलो को पकाने के लिए काबाईड का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन इससे स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंता जताई जा रही है। इसी को ध्यान मे रखकर हम अब फलो को पकाने के लिए एथिलीन गैस का इस्तेमाल कर रहे हैं। एथिलीन गैस के इस्तेमाल के लिए नियंत्रित तापमान वाले चैंबर या कोठरियां बनाई जाती है जिनमें पकाए जाने वाले फलों को रखकर एथिलीन का इस्तेमाल होता है। कोठरी निर्माण पर बागवानी बोर्ड सब्सिडी देता है। केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने स्वास्थ्य सचिव को पत्र लिखकर कहा है कि फल और सब्जियों में खतरनाक रसायनों और हार्मोन के इस्तेमाल का मुद्दा उठाते हुए इसे स्वास्थ्य के लिए घातक बताया है। देश में लगभग 6.7 करोड़ टन फलों का उत्पादन होता है। दुनिया का 43 फीसदी आम अकेले भारत में होता है। भारत केला का सबसे बड़ा उत्पादक देश हैं। हालांकि फलों के सही रखरखाव के अभाव में निर्यात बेहद कम है। एथिलीन से फल पकाने से इन पर दाग नही लगते(राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,18.8.2010)।
किसी भी तरह की रासायनिक प्रक्रिया नुकसानदेहक ही होगी । बाजार के सामने सब नतमस्तक ।
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी।
जवाब देंहटाएं